आपके मुवक्किल जेल में हैं और आप तारीख पर तारीख ले रहे, SC जज ने वकील की लगा दी क्लास
हालांकि, खंडपीठ ने अंत में युवा वकील पर नरम रुख अपनाया और मामले की सुनवाई अगली तारीख तक टाल दिया और नई तारीख पर मामले की लिस्टिंग करने का आदेश दिया।
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक युवा वकील को जमकर फटकार लगाई, जिसने एक आपराधिक मामले में बार-बार स्थगन की मांग की थी। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने वकील से पूछा कि आपके मुवक्किल इतने लंबे समय से सलाखों के पीछे हैं और आप केस में स्थगन की मांग कर रहे हैं और तारीख पर तारीख ले रहे हैं। क्या यह उचित है?
जस्टिस नरसिम्हा ने उस वकील से पूछा, "क्या आप नहीं देख रहे हैं कि हम आपराधिक मामलों का फैसला कैसे कर रहे हैं? क्या यह आपके लिए बहस करने का अच्छा दिन नहीं है? आपके मुवक्किल इतने लंबे समय से सलाखों के पीछे हैं और आप स्थगन ले रहे हैं। क्या यह अच्छी बात है।" इस पर युवा वकील ने जोर देकर कहा कि इस मामले पर उनके वरिष्ठ द्वारा बहस की जानी चाहिए।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि, खंडपीठ ने अंत में युवा वकील पर नरम रुख अपनाया और मामले की सुनवाई अगली तारीख तक टाल दिया और नई तारीख पर मामले की लिस्टिंग करने का आदेश दिया। बता दें कि भारत में आपराधिक मामलों में बार-बार स्थगन और तारीख पर तारीख लेना एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जिसके लिए न्यायपालिका को अक्सर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।
इनमें से कई स्थगन वकीलों के अनुरोध पर दिए जाते हैं, जिन्हें कभी-कभी उनके मुवक्किलों द्वारा ऐसा करने के निर्देश दिए जाते हैं, जबकि अधिकांश मामलों में अदालत अगली तारीख देता है। हाल ही में, शीर्ष अदालत ने संकेत दिया था कि वह आपराधिक अपीलों की बढ़ती हुई संख्या और लंबित मामलों के निपटने के लिए उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों (अस्थायी न्यायाधीशों) की नियुक्ति के लिए शर्तों में ढील देने पर विचार कर रहा है।
दो दिन पहले ही चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत की विशेष पीठ ने कई उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों के आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि अकेले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 63,000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय में यह आंकड़ा 13,000 है, और इसी प्रकार कर्नाटक, पटना, राजस्थान और पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालयों में क्रमशः 20,000, 21,000, 8,000 और 21,000 आपराधिक मामले लंबित हैं।
पीठ ने कहा कि वह 2021 के फैसले को आंशिक रूप से संशोधित कर सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली खंडपीठों द्वारा आपराधिक अपीलों पर फैसला करने के लिए अस्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाए। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि कोई उच्च न्यायालय न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या के 80 प्रतिशत के साथ काम कर रहा है तो वहां किसी भी अस्थायी न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं की जानी चाहिए। (भाषा इनपुट्स के साथ)