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'बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है’, सुप्रीम कोर्ट में हुई गरमा-गरम बहस

  • तुषार मेहता ने कहा कि हलाल प्रमाणित करने वाली एजेंसियां ​​शुल्क ले रही हैं और इस प्रक्रिया में एकत्र की गई कुल राशि लाखों करोड़ हो सकती है। उन्होंने कहा कि आटा और बेसन को भी हलाल प्रमाणित किया जाता है।

Niteesh Kumar भाषाTue, 21 Jan 2025 07:01 AM
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'बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है’, सुप्रीम कोर्ट में हुई गरमा-गरम बहस

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने छड़ और सीमेंट जैसे गैर मांस उत्पादों के हलाल प्रमाणीकरण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया। उन्होंने सवाल किया कि जिनका इससे कोई लेना देना नहीं है, उन लोगों को हलाल प्रमाणित उत्पादों के लिए अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए? उन्होंने ये दलीलें शीर्ष अदालत के समक्ष दीं, जो (निर्यात के लिए उत्पादित वस्तुओं को छोड़कर) उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाणन वाले खाद्य उत्पादों के भंडारण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। मेहता ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष कहा, ‘जहां तक ​​हलाल मांस का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। लेकिन न्यायाधीशों को यह जानकर आश्चर्य होगा, जैसा कि मुझे हुआ था कि सीमेंट और छड़ जैसे उत्पादों को भी हलाल प्रमाणित किया जाता है।’

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तुषार मेहता ने कहा कि हलाल प्रमाणित करने वाली एजेंसियां ​​शुल्क ले रही हैं और इस प्रक्रिया में एकत्र की गई कुल राशि लाखों करोड़ हो सकती है। मेहता ने सवाल किया, ‘आटा और बेसन को भी हलाल प्रमाणित किया जाता है। बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है?’ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने कहा कि केंद्र की नीति कहती है कि यह जीवनशैली का मामला है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह सब स्वैच्छिक है। कोई किसी पर दबाव नहीं बना रहा है। सॉलिसिटर जनरल ने उन लोगों का जिक्र किया जो हलाल उत्पादों में यकीन नहीं रखते या हलाल-प्रमाणित उत्पादों का उपभोग नहीं करते। मेहता ने सवाल किया कि उन्हें केवल इसलिए अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए क्योंकि कुछ लोग हलाल-प्रमाणित उत्पाद चाहते हैं।

जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्ते का समय

याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि यह उनकी पसंद का मामला है। पीठ को बताया गया कि केंद्र ने इस मामले में हलफनामा दाखिल किया है। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया और कहा कि मामले की सुनवाई 24 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में की जाएगी। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के प्रावधान के अंतर्गत आयुक्त, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन, उत्तर प्रदेश के कार्यालय की ओर से 18 नवंबर, 2023 की अधिसूचना जारी की गई। शीर्ष अदालत में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत उत्तर प्रदेश के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन द्वारा जारी 18 नवंबर, 2023 की अधिसूचना से संबंधित है, जो पूरी तरह से राज्य के अधिकार क्षेत्र और प्राधिकार के अंतर्गत आती है।

आखिर हलफनामें में क्या कहा गया

हलफनामे में कहा गया कि केंद्र के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ऐसे राज्य स्तरीय विनियमनों या अधिसूचनाओं पर कोई भूमिका या अधिकार नहीं है। हलाल प्रमाणन से संबंधित एक मामले में लखनऊ में एक याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। हलफनामे में कहा गया कि मंत्रालय मुख्य रूप से भारत में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू व्यापार, औद्योगिक विकास एवं निर्यात संवर्धन के विनियमन और संवर्धन से संबंधित है। शीर्ष अदालत ने 2024 में निर्यात के लिए उत्पादित वस्तुओं को छोड़कर उत्तर प्रदेश के भीतर हलाल प्रमाणन वाले खाद्य उत्पादों के विनिर्माण, भंडारण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली अलग-अलग याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य से जवाब मांगा था।

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