जस्टिस वर्मा का मामला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इस मामले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े किए हैं।
बीते दिनों भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए उन्हें फटकार लगाई है।
पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस और वकील प्रशांत भूषण की ओर से दायर याचिकाओं पर विचार करते हुए कहा कि मामले की विस्तृत सुनवाई 31 जुलाई को की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केवल शादी से इनकार करने के आधार पर आरोपी को बलात्कार के लिए मुकदमे का सामना नहीं करना चाहिए।
इससे पहले SC ने इन-हाउस जांच लंबित रहने के कारण अपने न्यायिक आदेश में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न केवल इस न्यायालय के आदेश, बल्कि ईपीए की धारा 5 के तहत जारी निर्देशों को राज्यों के सभी कानून प्रवर्तन तंत्रों के माध्यम से सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दोषियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि दो जजों की बेंच उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई नहीं कर सकती, क्योंकि यह मामला 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड में 11 आरोपियों को मौत की सजा सुनाए जाने से जुड़ा है।
अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ती बीआर गवई को 14 नवंबर 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। वह 12 नवंबर 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने।
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नकदी मिलने के बाद पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण अदालत यानी सभी जज ने एक अप्रैल, 2025 को अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने की घोषण की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने समाय रैना, विपुल गोयल और तीन अन्य इंफ्लुएंसर को नोटिस जारी करते हुए अगली तारीख पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया।