शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने वाली बात नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
- ट्रायल कोर्ट की तरफ से भी अपीलकर्ता महिला को राहत नहीं मिली थी, जिसके बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी आदेश को बरकरार रखा था। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या से जुड़े केस में अहम टिप्पणी की है। अदालत का कहना है कि शादी के लिए असहमति जताना ही आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का आधार नहीं हो सकता। उच्चतम न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है और अपीलकर्ता को राहत दी है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी।
अपीलकर्ता मां और युवक के परिवार के अन्य सदस्यों पर युवती को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप लगे थे। अदालत ने कहा, 'अगर अपीलकर्ता ने बाबू दास और उसकी प्रेमिका की शादी को लेकर आपत्ति जताई थी, तो भी आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता है।' अदालत ने यह भी कहा है कि मृतका से यह कहना है कि अगर वह प्रेमी से शादी के बगैर नहीं रह सकती, तो भी इसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है।
खास बात है कि ट्रायल कोर्ट की तरफ से भी अपीलकर्ता महिला को राहत नहीं मिली थी, जिसके बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी आदेश को बरकरार रखा था। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया। सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने पाया है कि अपीलकर्ता और उसके परिवार ने मृतका पर बाबू दास और उसके बीच रिश्ते को खत्म करने के लिए दबाव नहीं डाला है।
कोर्ट ने कहा, 'बल्कि, मृतका का परिवार ही था, जो रिश्ते से खुश नहीं था।' कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की तरफ से उठाए गए कदम किसी भी तरह से IPC यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 306 को आकर्षित नहीं करते हैं। साथ ही ऐसे भी कोई आरोप नहीं है, जो यह दिखाते हों कि मृतका के पास आत्महत्या जैसा कदम उठाने के अलावा कोई भी रास्ता नहीं था।