महेशमुंडा के औषधीय जलवाले कूप को लोग भूले
महेशमुंडा रेलवे स्टेशन परिसर का औषधीय जल कूप अब पुरानी यादें बन गया है। पहले इस कुएं का पानी बिहार और बंगाल तक ले जाया जाता था, लेकिन अब नई पीढ़ी इसे भूल गई है। हालांकि, स्थानीय लोग आज भी इस कुएं के...

बेंगाबाद। औषधीय जल कूप के नाम से विख्यात महेशमुंडा रेलवे स्टेशन परिसर का कुआं अब पुरानी यादें बन कर रह गई है। वर्षों पहले इस कूप से जल बिहार, बंगाल तक ले जाया जाता था। इस कुआं से पानी लेनेवालों का तांता लगा रहता था। पानी के लिए दूर दराज से लोग यहां पहुंचते थे। विशेषकर पश्चिम बंगाल के बंगाली परिवार इस कुआं के पानी को औषधि के रूप में सेवन करता था। कुआं से पानी लेनेवालों की भारी भीड़ लगी रहती थी। रेल सेवा के माध्यम से पश्चिम बंगाल के कई शहरों में इस कूप के जल को भेजा जाता था और इस पानी की बड़ी डिमांड थी लेकिन नये जेनरेशन ने धीरे धीरे इस कुआं को लोग भूल गए।
जिससे कुआं पर सन्नाटा पसरा रहता है परंतु स्थानीय स्तर पर आज भी इस औषधीय गुणों से भरे जल कूप को लोग नहीं भूले हैं। जानकारों का कहना है कि पूर्व में कोलकाता, आसनसोल, दुर्गापुर सहित कई शहरों से लोग यहां पानी लेने के लिए आते थे और ट्रेन से जार, गैलन, ब्लाडर सहित अन्य पात्रों में पानी भरकर ले जाते थे। पानी की खासियत की चर्चा करते लोग नहीं थकते थे लेकिन कुआं के पानी की विशेष खासियत क्या थी यह बात आज तक अबूझ पहेली बन कर रह गयी है। बताया जाता है कि महेशमुंडा रेलवे परिसर के कुआं का पानी मीठा और औषधीय गुणों से युक्त है। ब्रिटिश काल में बना है कूप... महेशमुंडा रेलवे स्टेशन परिसर का यह कुआं ब्रिटिश शासन काल का बना हुआ है। महेशमुंडा के लिए यह धरोहर से कम नहीं है। बताया जाता है कि इसकी बनावट अनोखी है और देखने में बड़ा अद्भुत है। सुर्खी, चुना और उरद-बेसन से बनाया गया कूप आज भी चकचक लगता है। कुआं का पानी बिल्कुल स्वच्छ और साफ है। हालांकि सुरक्षा के दृष्टिकोण से रेलवे विभाग द्वारा इसकी घेराबंदी कर ऊपर से जाली लगा दी गई है। ताकि आंधी या तेज हवा से कुआं मे कूड़ा कचरा भर नहीं जाए। बता दें कि प्रचंड गर्मी में भी कुआं का जल नहीं सूखता है।
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