job of judge is neither to dominate nor to surrender CJI Sanjeev Khanna taught lesson on his last day before leaving SC जज का काम न हावी होना, न सरेंडर करना; जाते-जाते आखिरी दिन क्या-क्या पाठ पढ़ा गए CJI संजीव खन्ना, India News in Hindi - Hindustan
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जज का काम न हावी होना, न सरेंडर करना; जाते-जाते आखिरी दिन क्या-क्या पाठ पढ़ा गए CJI संजीव खन्ना

वरिष्ठ अधिवक्ता एवं ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने न्यायाधीश के तौर पर दो दशक लंबे कार्यकाल में भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को मंगलवार को रेखांकित किया।

Pramod Praveen भाषा, नई दिल्लीTue, 13 May 2025 11:10 PM
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जज का काम न हावी होना, न सरेंडर करना; जाते-जाते आखिरी दिन क्या-क्या पाठ पढ़ा गए CJI संजीव खन्ना

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना ने मंगलवार को अपने कार्यकाल के आखिरी दिन कानूनी पेशे में आए बड़े बदलाव को रेखांकित किया और बार से कहा कि वह डोमेन (खास क्षेत्र का) विशेषज्ञ बनने पर ध्यान केंद्रित करे और मध्यस्थता जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) के विकल्प का पता लगाए। जस्टिस खन्ना ने ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) की ओर से आयोजित अपने विदाई समारोह में कहा कि वह दिन दूर नहीं जब मुकदमेबाजी के बजाय मध्यस्थता विवाद समाधान के ‘डिफॉल्ट मोड’ के रूप में प्राथमिकता हासिल करेगी।

निवर्तमान सीजेआई ने कहा, ‘‘आज हम कानूनी पेशे में बड़ा बदलाव देख रहे हैं। अदालत कक्ष की गतिशीलता वक्तृत्व कौशल से अब खास विषय वस्तु की विशेषज्ञता की ओर बढ़ रही है। जैसे-जैसे तैयारी का स्तर बढ़ रहा है, वकीलों के लिए डोमेन विशेषज्ञ बनने पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।’’ उन्होंने देश में मध्यस्थों की संख्या बढ़ाने और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए बड़ी प्रगति करने के वास्ते शीर्ष अदालत की सराहना की।

मुकदमेबाजी की जगह मध्यस्थता को प्राथमिकता

उन्होंने कहा, “वह दिन दूर नहीं जब विवाद समाधान के लिए मुकदमेबाजी की जगह मध्यस्थता को प्राथमिकता दी जाएगी। मध्यस्थता का मतलब सिर्फ विवादों को सुलझाना नहीं है, बल्कि इसका मतलब ऐसा समाधान खोजने से है, जो संबद्ध पक्षों के हितों को पूरा करें।” अपने पेशेवर सफर के बारे में विस्तार से बताते हुए खन्ना ने कहा, ‘‘मैंने 20 साल तक न्यायाधीश के तौर पर सेवा की है। मेरे मन में कोई मिश्रित भावना नहीं है। मैं बस खुश हूं। मैं भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होने पर खुद को धन्य महसूस करता हूं। दिल्ली उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनना अपने आप में एक सपना सच होने जैसा था।"

जज का काम न तो अदालत पर हावी होना, न आत्मसमर्पण करना

सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीश का काम न तो अदालत पर हावी होना है और न ही आत्मसमर्पण करना है। उन्होंने कहा, "मैं एक ऐसी बात के बारे में बात करूंगा जो मुझे परेशान करती है, (और वह है) हमारे पेशे में सच्चाई की कमी। एक न्यायाधीश के रूप में सबसे पहले सच्चाई की तलाश करनी चाहिए। महात्मा गांधी का मानना ​​था कि सत्य ईश्वर है और इसके लिए प्रयास करना चाहिए।’’

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उन्होंने यह भी कहा, ‘‘फिर भी, हम तथ्यों को छिपाने और जानबूझकर गलत बयान देने के मामले देखते हैं। मेरा मानना ​​है कि यह गलत धारणा से उपजा है कि जब तक सबूतों में कुछ जोड़-तोड़ नहीं की जाती, तब तक कोई मामला सफल नहीं होगा। यह मानसिकता न केवल गलत है, बल्कि काम नहीं करती। इससे अदालत का काम और कठिन हो जाता है।"

बार और बेंच दोनों ही स्वर्णिम रथ के दो पहिए

इस अवसर पर प्रधान न्यायाधीश के रूप में नामित जस्टिस बी आर गवई ने भी बात की। जस्टिस गवई ने कहा कि बार और बेंच दोनों ही स्वर्णिम रथ के दो पहिए हैं और एक दूसरे के बिना काम नहीं कर सकते। उन्होंने जोर दिया कि मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों हाथों को मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘न्यायिक कदाचार के मामलों से निपटने में न्यायमूर्ति खन्ना ने दृढ़ और सैद्धांतिक नेतृत्व का प्रदर्शन किया। ऐसे दो मामलों में, उन्होंने अपने सहयोगियों का विश्वास और भरोसा बनाए रखा और अदालत की गरिमा कायम रखने के लिए विवेक और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया।" उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल तमाशा या शोर मचाकर ध्यान आकर्षित करने के लिए नहीं, बल्कि न्यायपालिका के भीतर विकास के लिए बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिए था।