कांग्रेस के पेंशन प्लान की काट को भाजपा उठा रही UCC मुद्दा? क्यों कर्नाटक चुनाव के बाद उठी चर्चा
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हट ही चुका है और राम मंदिर पर काम चल रहा है। भाजपा के तीन कोर मुद्दे रहे हैं, जिनमें से दो पर काम वह कर चुकी है। अब तीसरा मसला समान नागरिक संहिता का बचता है।
विधि आयोग की रिपोर्ट में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही गई है और उसके बाद से ही भाजपा इसे मुद्दा बना रही है। उत्तराखंड और गुजरात जैसे राज्यों में इस मसले पर पहले ही पैनल बना चुकी भाजपा चाहती है कि इस पर देश भर में चर्चा हो। फिलहाल इस मामले पर लोगों से राय मांगी जा रही है। लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है और उससे ठीक पहले इस मसले पर चर्चा गरम करने से राजनीतिक निहितार्थ भी निकलते ही हैं। कुछ जानकार मानते हैं कि भाजपा विकास के अपने नैरेटिव के साथ ही हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को मजबूती से जोड़ देना चाहती है ताकि ध्रुवीकरण में कोई कसर ना रहे।
खासतौर पर ऐसे वक्त में जब कांग्रेस ने हिमाचल जैसे राज्य में पुरानी पेंशन स्कीम के मुद्दे पर जीत हासिल की और फिर कर्नाटक में करप्शन को मुद्दा बनाकर विजय पा ली। यही नहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी कांग्रेस ने पुरानी पेंशन स्कीम के ऐलान कर दिए हैं। कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कर्मचारी वर्ग को साधने के लिए इस मसले को उठाने जा रही है। माना जा रहा है कि इसकी काट के लिए ही भाजपा ने समान नागरिक संहिता की चर्चा तेज कर दी है। इसके अलावा भाजपा अपने इस कोर मुद्दे को लागू करने के प्लान से पहले जमीन भांपना चाहती है कि आखिर इसका कितना समर्थन है और कितना विरोध है।
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हट ही चुका है और राम मंदिर पर काम चल रहा है। भाजपा के तीन कोर मुद्दे रहे हैं, जिनमें से दो पर काम वह कर चुकी है। अब तीसरा मसला समान नागरिक संहिता का बचता है। यही वजह है कि भाजपा समान नागरिक संहिता के जरिए वोटों का जुगाड़ करना चाहती है। इसके अलावा अपने वैचारिक आधार को भी मजबूत बनाने की कोशिश है। विधि आयोग ने बीते सप्ताह ही सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं से इस बारे में राय मांगी थी। भाजपा भी अपने ईकोसिस्टम के जरिए इस पर चर्चा शुरू कर चुकी है।
भले ही पार्टी फोरम पर सीधे तौर पर इसे लेकर उतनी सक्रियता ना दिखे, लेकिन आरएसएस और उसके आनुषांगिक संगठन इसके लिए माहौल बनाना शुरू कर सकते हैं। संघ परिवार और भाजपा के रणनीतिकारों का मानना है कि इस मसले पर किसी नतीजे पर पहुंचने से माहौल बना लिया जाए। सितंबर में जी-20 की मीटिंग हैं और उससे पहले सरकार समान नागरिक संहिता पर कोई फैसला नहीं लेना चाहती। सरकार को लगता है कि इस फैसले को ऐसा लिया जाए कि वैश्विक स्तर पर इसकी चर्चा ना हो।
भाजपा और मोदी सरकार के पास 2024 के चुनाव से पहले आखिरी मौका संसद का शीत सत्र होगा। इसमें समान नागरिक संहिता को लेकर विधेयक पेश हो सकता है। लेकिन समस्या यह है कि इस दौरान मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं। तीनों ही राज्यों में अच्छी खासी आदिवासी आबादी है। यह समुदाय समान नागरिक संहिता को अपनी परंपरा और रिवाजों के खिलाफ मान सकता है। कम से कम विपक्ष ऐसा प्रचार करने की कोशिश करेगा। ऐसे में भाजपा चाहती है कि फिलहाल समान नागरिक संहिता पर ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो, जिससे ध्रुवीकरण में मदद मिले और फिर उचित समय पर लागू करने का फैसला लिया जाए।