जजों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी के फैसले पर विचार करने का समय: जगदीप धनखड़
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न्यायाधीश वास्तव में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवक हैं, लेकिन उसने कहा कि किसी जज पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है, जिसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी। उन्होंने हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े नकदी बरामदगी मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी पर भी सवाल उठाया। धनखड़ ने मामले की जांच कर रही तीन न्यायाधीशों की आंतरिक समिति की ओर से गवाहों से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जब्त करने के कदम को भी गंभीर मुद्दा बताया। उन्होंने कहा, ‘यह एक गंभीर मुद्दा है। ऐसा कैसे किया जा सकता है?’
जगदीप धनखड़ ने मामले में वैज्ञानिक आपराधिक जांच की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि देश में हर कोई सोच रहा है कि क्या यह मामला दब जाएगा, क्या यह समय के साथ ठंडे बस्ते में चला जाएगा। एक पुस्तक के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि के. वीरास्वामी फैसले पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। वर्ष 1991 का वीरास्वामी बनाम भारत संघ मामला सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया अहम निर्णय है, जो उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों को भ्रष्टाचार-रोधी कानूनों के दायरे में लाने से संबंधित है। यह न्यायिक स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करता है।
अपने फैसले में क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि न्यायाधीश वास्तव में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवक हैं, लेकिन उसने कहा कि किसी जज पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीशों सहित सभी रिटायर्ड जज समान पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभों के हकदार हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि पेंशन और सेवानिवृत्ति संबंधी लाभों के हकदार स्थायी या अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में कार्यरत सभी होंगे। पीठ ने कहा कि नियुक्ति के तरीके के आधार पर न्यायाधीशों के बीच सेवानिवृत्ति के बाद के लाभों में अंतर करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद समानता के अधिकार की गारंटी देता है।