Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Mahakumbh Rakhi age of 13 became Sadhvi got initiation in Juna Akhara name now Gauri

प्रयागराज में जागा वैराग्य, महाकुंभ आई 13 साल की राखी बन गई साध्वी, नाम अब गौरी

आगरा से महाकुंभ में प्रयागराज आई नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली राखी का सपना आईएएस बनने का था लेकिन अब वह जूना अखाड़ा में साध्वी बन गई है। अखाड़े के श्रीमहंत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ राखी का अखाड़े में प्रवेश कराया और गौरी नाम दिया।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, महाकुम्भ नगर संवाददाताTue, 7 Jan 2025 09:25 PM
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आगरा से महाकुंभ में प्रयागराज आई नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली राखी का सपना आईएएस बनने का था लेकिन अब वह जूना अखाड़ा में साध्वी बन गई है। अखाड़े के श्रीमहंत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ राखी का अखाड़े में प्रवेश कराया और गौरी नाम दिया। गेरूआ चोला धारण करने के बाद गौरी ने शेष जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का संकल्प लिया है। साध्वी गौरी को अखाड़े की दिनचर्या और चुनौतियों से बिल्कुल घबराहट नहीं है। परिवार रिश्तेदार और सहेलियों का मोह भी वह छोड़ चुकी है।

माता-पिता को अब वह गुरु मानने लगी हैं। वहीं, शिविर में ठहरे पिता दिनेश सिंह और मां रीमा धाकरी बिटिया की खुशी में ही अपनी खुशी देख रहे हैं। साथ में आई छोटी बहन निक्की अपनी दीदी गौरी (राखी) के वस्त्र और बदले व्यवहार को देखकर मायूस है।

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आगरा के पेठा व्यवसायी रोहतान सिंह के बेटे दिनेश सिंह परिवार के साथ महाकुम्भ घूमने आए थे। अचानक दिनेश की 13 वर्षीय बेटी राखी के मन में वैराग्य का भाव जागृत हो गया। रीमा और दिनेश बेटी की इच्छा सुन ठिठके जरूर मगर राखी की सोच को बदल नहीं सके। 14 मढ़ी जूना अखाड़ा के श्रीमहंत कौशल गिरि दिनेश के ममेरे भाई हैं।

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दिनेश ने कौशल गिरि को बेटी की इच्छा से अवगत कराया। जिस पर कौशल गिरि ने भी राखी को समझाने का बहुत प्रयास किया। यहां तक कि राखी के दादा, नाना-नानी, मौसी, स्कूल के शिक्षक और प्रिंसिपल पीसी शर्मा ने भी समझाया पर वह अपने फैसले पर अटल रही। अंततः श्रीमहंत ने परंपराओं का निर्वहन करते हुए राखी को अखाड़े में शामिल कर लिया।

सहेली के रोने पर गौरी हुई थीं भावुक

राखी (अब साधवी गौरी) बताती हैं कि शुरू में तीन दिन मेला घूमने के दौरान धुनी रमाए साधु-संतों को देख अजीब सी घबराहट हुई। चौथे दिन अचानक मन जो भाव आया और वही दृढ़ हो गया। वह बताती हैं स्कूल में अपनी कक्षा में हमेशा से अव्वल रही। उन्हें प्रिंसिपल और सभी शिक्षक बहुत प्यार करते हैं। उसकी सबसे बेस्ट फ्रेंड लक्षिता है। लक्षिता फोन पर बहुत रो रही थी। मुझे संन्यास की राह में जाने से बहुत रोकना चाहा। उसका रोना सुनकर एक पल के लिए भावुक जरूर हुई मगर विचलित नहीं। अब तो सनातन धर्म के लिए ही जीना मरना ठान लिया है।

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