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महाकुंभः शादी के दो माह बाद ही सबकुछ त्यागकर किया खुद का पिंडदान, किन्नर अखाड़े की बनीं महामंडलेश्वर

दो महीने पहले गृहस्थी बसाने वाली ममता वशिष्ठ ने महाकुंभ में खुद का पिंडदान कर दिया। वह संन्यास की राह पर चल पड़ी हैं। किन्नर अखाड़े ने उन्हें महामंडलेश्वर की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए बकायदा उनका पट्टाभिषेक किया गया। दो माह पहले ममता का विवाह दिल्ली के संदीप वशिष्ठ से हुआ था।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, महाकुम्भ नगर वरिष्ठ संवाददाताMon, 20 Jan 2025 11:27 PM
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महाकुंभः शादी के दो माह बाद ही सबकुछ त्यागकर किया खुद का पिंडदान, किन्नर अखाड़े की बनीं महामंडलेश्वर

दो महीने पहले गृहस्थी बसाने वाली ममता वशिष्ठ ने महाकुम्भ में खुद का पिंडदान कर दिया। वह संन्यास की राह पर चल पड़ी हैं। किन्नर अखाड़े ने उन्हें महामंडलेश्वर की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए बकायदा उनका पट्टाभिषेक किया गया। दो माह पहले ममता का विवाह दिल्ली के संदीप वशिष्ठ से हुआ था। लेकिन अब उन्होंने नई राह चुन ली है। वह संन्यासी बन सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना चाहती हैं। संन्यासी बनने से पहले खुद का और परिवार वालों का पिंडदान करना होता है, यह इस बात का परिचायक होता है कि संन्यास के बाद अब उसे मृत्यु का भय नहीं और सांसारिक मोह माया भी उसके लिए मायने नहीं रखती है।

ममता ने संन्यासी बनने के लिए महाकुम्भ स्थित किन्नर अखाड़े के शिविर में बकायदा अपना पिंडदान किया। जिसके बाद किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उन्हें अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया है। ममता ने कहा कि उनका हमेशा से सनातन धर्म में मन लगता था। ऐसे में उन्होंने संन्यास की राह पकड़ ली है।

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उनके इस निर्णय में उन्हें पति और सास का पूरा सहयोग मिला है। वो अब सनातन धर्म की सेवा करना चाहती हैं और इसी माध्यम से मानव कल्याण के लिए काम करेंगी। डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि ममता की रुचि थी और दो महीने पहले उनका विवाह हुआ था। अब उन्हें महामंडलेश्वर बनाया गया है। महाकुम्भ में ही उन्होंने अपना पिंडदान किया और फिर यहां पर संन्यास की दीक्षा ली। इस बार अखाड़े में पिंडदान करने वाले किन्नर या महिला संत का मुंडन संस्कार नहीं कराया जा रहा है।

धर्म रक्षा को जूना अखाड़े से जुड़ीं 100 महिलाएं

सनातन धर्म की बागडोर संभालने के लिए जूना अखाड़े की फौज में 100 महिलाएं रविवार को शामिल हुईं। त्रिवेणी मार्ग पांटून पुल के बगल में सभी ने पहले गंगा स्नान कर मुंडन कराया। अपने परिवार का पिंडदान कर उनसे सभी रिश्ते नाते तोड़े और पूरा जीवन सनातन धर्म को समर्पित करने के लिए संन्यास दीक्षा ग्रहण कर ली।

जूना अखाड़े के संन्यासिन अखाड़े में संतों को दीक्षा देने का काम शुरू हुआ। सुबह ही सभी महिला संत संन्यासिन अखाड़े की अध्यक्ष व मनकामेश्वर मंदिर महंत देव्या गिरि की मौजूदगी में महिला संतों का मुंडन संस्कार हुआ। इसके बाद सभी ने जनेऊ धारण कर अग्नि कुंड के सामने अग्नि परीक्षा देकर आहुतियां दीं। पूरी प्रक्रिया में शाम हो गई। शाम होने के बाद सभी ने एक बार फिर स्नान किया और पूजन किया। मध्य रात्रि में जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि की मौजदूगी में गुरु की पर्ची दिखाकर सभी अखाड़े में शामिल हो गईं।

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