भारत-पाक के बीच तीसरा पक्ष पहले भी रहा है, फर्क इतना है कि इस बार ट्रंप ने... कांग्रेस नेता क्या बोले
देश की मुख्य विपक्षी पार्टी केंद्र की मोदी सरकार से भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर की सर्तों पर सवाल खड़े कर रही है और पूछ रही है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में आकर ये सीजफायर किया गया है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने मंगलवार को कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौते के बावजूद तीसरे पक्ष की मध्यस्थता पहले भी होती रही है, चाहे इस वास्तविकता को कोई स्वीकार करे या न करे। उन्होंने यह भी कहा कि पहले और अब में फर्क यह है कि अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप खुलकर श्रेय लेते हैं। कांग्रेस सांसद तिवारी ने यह टिप्पणी उस वक्त की है कि जब भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष को रोके जाने पर बनी सहमति को ट्रंप ने अपनी ‘मध्यस्थता’ का नतीजा बताया है और इसको लेकर कांग्रेस मोदी सरकार पर निशाना साध रही है।
तिवारी ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘भारत और पाकिस्तान के बीच तीसरे पक्ष की मध्यस्थता 1990 से चली आ रही एक वास्तविकता है। आप इसे पर्दे के पीछे से किए गए कार्य, ‘ब्रोकरिंग’, मध्यस्थता, किसी भी नाम से पुकार सकते हैं।’’ उनका कहना है कि 1947-1972 तक भारत-पाकिस्तान संबंधों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों, 1972-1990 तक शिमला समझौते, 1990 के बाद तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप द्वारा नियंत्रित किया गया।
1999 में कारगिल के दौरान पर्दे के पीछे से बात हुई
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बस तथ्यों को उसी तरह रख रहे हैं, जैसे वे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री के अनुसार, 1999 में कारगिल के दौरान पर्दे के पीछे से बात हुई और नवाज शरीफ बिना बुलाए और बिना बताए व्हाइट हाउस पहुंच गए तथा भारत की शर्तों पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हुआ।
उरी सर्जिकल स्ट्राइक के साथ भी यही हुआ था
तिवारी ने इस बात का उल्लेख किया, ‘‘2001-02 में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के लिए लामबंदी के बीच अमेरिका के नेतृत्व में फिर से बहुत सक्रिय रूप से पर्दे के पीछे बात हुई। 2008 में जब मुंबई हमला हुआ, तो यह सुनिश्चित करने के लिए पर्दे के पीछे बात की गई होगी कि चीजें थोड़े संयमित रहें। उनके अनुसार, 2016 में उरी सर्जिकल स्ट्राइक के साथ भी यही हुआ था।
कांग्रेस नेता ने कहा कि पहले गोपनीय ढंग से पर्दे के पीछे बातचीत होती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है तथा डोनाल्ड खुलकर श्रेय लेते हैं। उनका कहना है, ‘‘चाहे आप इसे पसंद करें या न करें, शिमला समझौते के बावजूद, तीसरे पक्ष की मध्यस्थता एक वास्तविकता है। हो सकता है कि आप इस हकीकत को स्वीकार न करना चाहें, लेकिन ये हकीकत है।” तिवारी ने कहा कि जब दो परमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच मिसाइलें दागी जाने लगती हैं तो तीसरे पक्ष हरकत में आते हैं।