ताइवान और दक्षिण कोरिया आबादी के संकट में टॉप पर हैं। दोनों देशों की औसत जन्मदर 1.1 है। यह रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से भी कम है, जो आबादी के स्थायी रहने का मानक है। दोनों देशों में ऐसे दंपतियों की संख्या तेजी से बढ़ी है, जो कोई बच्चा ही नहीं पैदा करना चाहते। इससे यहां आबादी का संकट बढ़ रहा है। दक्षिण कोरिया में तो इसके लिए अलग से मिनिस्ट्री ही बना दी गई है।
वहीं युद्ध की मार झेल रहे यूक्रेन में आबादी का संकट भी है। यहां औसत जन्मदर महज 1.2 है। यूक्रेन के अलावा हॉन्गकॉन्ग और मकाउ की भी ऐसी ही स्थिति है।
यूरोपीय देशों इटली, स्पेन और पोलैंड की आबादी भी बढ़ने की बजाय घट रही है। यहां औसत जन्मदर 1.3 ही है।
अब एशियाई मुल्क जापान की बात करें तो यहां जन्मदर 1.4 ही है। जापान के एक मंत्री ने तो पिछले दिनों यहां तक कहा था कि यदि ऐसे ही हालात रहे तो हमारे सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा। जापान की सरकार विवाह की संस्था को मजबूत करने और लोगों को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
जापान के अलावा बेलारूस, ग्रीस, मॉरीशस जैसे देशों में भी जन्मदर 1.4 ही है।
बीती कुछ सदियों में तेजी से दुनिया की आबादी बढ़ी थी। यूएन पॉपुलेशन फंड के अनुसार साल 2100 तक दुनिया की आबादी में ग्रोथ जारी रहेगी, लेकिन कुछ देशों में संकट की स्थिति होगी, जहां लोग बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे। लेकिन 2100 के बाद तो वैश्विक जन्मदर भी कम होगी और आबादी घटने लगेगी।
बता दें कि बीते 200 सालों में ही दुनिया की आबादी में 7 गुना तक का इजाफा हुआ है। यह वैश्विक इतिहास में सबसे अहम कालखंड रहा है, जब किसी दौर में आबादी में इतनी तेज ग्रोथ देखी गई।
भारत की बात करें तो भले ही दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी यहां है। लेकिन 2024 में भारत की जन्मदर 2.03 ही रही है। इसका अर्थ है कि लोग फैमिली प्लानिंग को अपना रहे हैं।