राज से रुखसती तक; अरविंद केजरीवाल का शीला दीक्षित वाला हाल, 3 बातें एक जैसी
2013 से 2025 तक दिल्ली की राजनीति में सबसे ताकतवर नेता रहे अरविंद केजरीवाल को कुछ उसी तरह सत्ता के गलियारे से विदा होना पड़ा है जिस तरह उन्होंने कभी शीला दीक्षित को रुखसत किया था।
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2013 से 2025 तक दिल्ली की राजनीति में सबसे ताकतवर नेता रहे अरविंद केजरीवाल को कुछ उसी तरह सत्ता के गलियारे से विदा होना पड़ा है जिस तरह उन्होंने कभी शीला दीक्षित को रुखसत किया था। इसे अद्भुत संयोग ही कहा जाएगा कि दिल्ली पर तीन बार राज करने से लेकर अपनी सीट भी हारकर विदाई तक दोनों के बीच कई समानताएं रहीं।
दोनों ने तीन बार ली दिल्ली के सीएम पथ की शपथ
शीला दीक्षित की तरह ही अरविंद केजरीवाल ने भी लगातार तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। 2013, 2015 और 2020 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यह बात अलग है कि वह शीला दीक्षित की तरह वह तीन बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। पहली बार 49 दिन बाद दो तीसरे कार्यकाल में साढ़े चार साल बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। सिर्फ दूसरे कार्यकाल में वह पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे।
करप्शन और पानी के मुद्दे पर घिरे दोनों नेता
जिस तरह शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार, दिल्ली में पानी की कमी और टैंकर माफिया के कब्जे जैसे मुद्दे को प्रमुखता से उछालकर कांग्रेस का किला ढहाया, ठीक उसी तरह भाजपा भी उनके खिलाफ घोटाले और घरों में गंदे पानी की आपूर्ति की समस्या को लेकर उनकी छवि ध्वस्त करने में कामयाब रही। यह भी अजब संयोग है कि 2012-13 में जिस तरह केजरीवाल ने शीला दीक्षित के बंगले और उसमें सुख-सुविधाओं का मुद्दा उछाला ठीक उसी तरह उन्हें भी कथित शीशमहल और उसमें करोड़ों रुपए के खर्च को लेकर घेरा गया। शीला के खिलाफ प्रचार करते हुए केजरीवाल जनता को बताया करते थे कि उनके बंगले में 12 एसी लगे हैं।अब भाजपा भी केजरीवाल के बंगले में 52 एसी, सोने के टॉयलेट सीट और 29 लाख की टीवी का दावा करते हुए जनता में उनकी छवि धूमिल करने में कामयाब रही।
अपनी सीट हारकर सत्ता से विदाई
दोनों की सत्ता से विदाई भी लगभग एक जैसी ही रही। जिस तरह शीला दीक्षित 2013 में नई दिल्ली सीट से हारकर सत्ता से रुखसत हुईं उसी तरह अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली के साथ अपनी सीट भी हार गए। दोनों को ही नई दिल्ली सीट पर पराजय का मुंह देखना पड़ा। अरविंद केजरीवाल ने तब शीला दीक्षित को हराकर सीट पर कब्जा जमाया था। ठीक उसी तरह भाजपा के प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को सीधी टक्कर देते हुए उन्हें हराया और दिल्ली की सत्ता से विदाई तय कर दी। यह अलग बात है कि केजरीवाल कुछ महीने पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके थे, लेकिन वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार जरूर थे।