Haldi Ghati and Tropex exercise helped India deploy military rapidly for Operation Sindoor 'हल्दी घाटी' अभ्यास ने ऑपरेशन सिंदूर में किया कमाल, पाकिस्तानी ड्रोन कैसे हो गए फुस्स, India News in Hindi - Hindustan
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'हल्दी घाटी' अभ्यास ने ऑपरेशन सिंदूर में किया कमाल, पाकिस्तानी ड्रोन कैसे हो गए फुस्स

भारत ने 18-21 अप्रैल के बीच 'हल्दी घाटी' त्रि-सेवा युद्ध अभ्यास आयोजित किया, जिसका उद्देश्य थलसेना, नौसेना और वायुसेना के बीच निर्बाध संचार सुनिश्चित करना था। अभ्यास में तीनों सेवाओं के बीच बाधारहित संवाद स्थापित करना काफी काम आया।

Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तानSun, 18 May 2025 08:53 PM
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'हल्दी घाटी' अभ्यास ने ऑपरेशन सिंदूर में किया कमाल, पाकिस्तानी ड्रोन कैसे हो गए फुस्स

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत तेजी से सैन्य तैनाती के लिए 'हल्दी घाटी' और 'ट्रोपेक्स' अभ्यास का पूरा लाभ उठाया। हल्दी घाटी एक तरह का त्रि-सेवा युद्ध अभ्यास था, जो 18-21 अप्रैल तक किया गया। इसका मकसद तीनों सेनाओं (थलसेना, नौसेना, वायुसेना) के बीच बिना किसी रुकावट के संचार सुनिश्चित करना था। इस अभ्यास के चलते सेनाओं को आपस में संवाद मजबूत करने में बहुत मदद मिली। उसी समय भारतीय नौसेना की ओर से अरब सागर में 'ट्रोपेक्स' एक्सरसाइज चल रही थी, जिसमें नौसेना के लगभग सभी प्रमुख युद्धपोत शामिल थे।

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22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ। रक्षा मंत्रालय ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान के नेतृत्व में तुरंत 'हल्दी घाटी' से मिले अनुभवों को लागू किया। अधिकारियों ने तीनों सेनाओं के बीच संचार को निर्बाध बनाने के लिए सफल परीक्षण किए। 7 मई को वास्तविक हमले से पहले का समय संचार में सुलभता सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किया गया। इसके अलावा, भारत-पाकिस्तान सीमा पर अग्रिम क्षेत्रों में तीनों सेनाओं के संयुक्त वायु रक्षा केंद्र स्थापित किए गए, जहां वायु रक्षा हथियार प्रणालियां और कमांड-कंट्रोल सिस्टम एक साथ लाए गए।

पाकिस्तानी ड्रोन हमलों को विफल करने में मदद

इस संयुक्त संचार प्रणाली और वायु रक्षा नेटवर्क की सफलता ने कमाल कर दिया। 7, 8 और 9 मई को पाकिस्तानी सेना की ओर से ड्रोन हमलों का सामना करने में काफी मदद की। संयुक्त संचार के चलते दिल्ली मुख्यालय में कमांडरों को युद्धक्षेत्र की वास्तविक स्थिति की तस्वीर मुहैया कराई गई। दूसरी ओर, 'ट्रोपेक्स' ने भारतीय नौसेना को अरब सागर के हर कोने में तैनाती करने में सक्षम बना दिया। इसके कारण पाकिस्तानी नौसेना को अपने संसाधनों को मकरान तट के पास सीमित रखना पड़ा। वहीं, भारतीय नौसेना के सभी प्रमुख युद्धपोत अग्रिम स्थानों पर तैनात थे और कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार थे।