संविधान के तीनों स्तंभ समान, मिलकर करना चाहिए काम; प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने पर CJI नाराज
देश के चीफ जस्टिस पद को संभालने वाले और यहां तक पहुंचने वाले दूसरे दलित सीजेआई ने मुंबई में सम्मान समारोह में भाग लिया। इस दौरान जस्टिस गवई ने बाबासाहेब आंबेडकर के स्मारक चैत्य भूमि का भी दौरा किया।

देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने संविधान की अहमियत पर रविवार को बड़ा बयान दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि न तो न्यायपालिका और न ही कार्यपालिका, बल्कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और इसके स्तंभों को मिलकर काम करना चाहिए। इस सप्ताह की शुरुआत में 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति गवई ने शपथ ली थी। उन्होंने आज मुंबई में बार काउंसिल महाराष्ट्र और गोवा की ओर से आयोजित अभिनंदन समारोह व राज्य वकीलों के सम्मेलन को संबोधित किया। सीजेआई ने कहा कि उन्हें खुशी है कि देश न केवल मजबूत हुआ है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर भी विकसित हुआ है और यह जारी है।
चीफ जस्टिस गवई ने कहा, 'न तो न्यायपालिका, न ही कार्यपालिका और न ही संसद सर्वोच्च है, बल्कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और तीनों अंगों को संविधान के अनुसार काम करना है।' न्यायमूर्ति गवई ने इस बात पर जोर दिया कि देश का बुनियादी ढांचा मजबूत है और संविधान के तीनों स्तंभ समान हैं। उन्होंने कहा, 'संविधान के सभी अंगों को एक-दूसरे के प्रति उचित सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए।' इस कार्यक्रम के दौरान न्यायमूर्ति गवई की ओर से सुनाए गए 50 उल्लेखनीय निर्णयों पर आधारित पुस्तक का विमोचन भी किया गया।
प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने पर जताई नाराजगी
जस्टिस गवई ने महाराष्ट्र दौरे के दौरान अगवानी के लिए राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त के अनुपस्थित रहने पर नाराजगी जताई। गवई ने कहा, ‘मैं जब वहां पहुंचा तो मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक या मुंबई पुलिस आयुक्त मौजूद नहीं थे। अगर वे नहीं आना चाहते थे तो उन्हें सोचना चाहिए था कि मेरे (शपथ ग्रहण करने के बाद) पहली बार यहां पहुंचने पर ऐसा करना सही रहेगा या नहीं।’ महाराष्ट्र से ही ताल्लुक रखने वाले गवई ने कहा कि यह संस्था के अन्य संगठनों का न्यायपालिका के प्रति सम्मान का सवाल है। सीजेआई ने कहा कि वह प्रोटोकॉल के पालन पर जोर नहीं दे रहे हैं। गवई ने कहा, ‘जब किसी संगठन या संस्था का प्रमुख पहली बार राज्य में आ रहा हो खास तौर पर जब वह भी उसी राज्य का हो, तो उन्हें खुद सोचना चाहिए कि उनके साथ जो व्यवहार किया गया वह सही था या नहीं।’
सीजेआई ने कहा कि वह ऐसी छोटी-मोटी चीजों में नहीं पड़ना चाहते, लेकिन उन्हें इसका जिक्र करने की जरूरत महसूस हुई ताकि लोगों को इसके बारे में पता चले। गवई ने हल्के अंदाज में कहा, ‘अगर मेरी जगह कोई और होता तो अनुच्छेद 142 के प्रावधानों पर विचार किया जाता।’ भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को अपने समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक समझे जाने वाले आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है। यह न्यायालय को व्यक्तियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए आदेश देने की भी अनुमति देता है।
(एजेंसी)