जब संकट में थी अटल सरकार, ओपी चौटाला के एक ऐलान ने मुरझाए चेहरों पर बिखेर दी थी मुस्कान
ओपी चौटाला उस वक्त जिंद में थे। खुराना ने वहीं जाकर उनसे मुलाकात की और आडवाणी के मदद की दरकार का संदेशा दिया। सत्ता के माहिर खिलाड़ी चौटाला ने तब खुराना को कोई आश्वासन नहीं दिया।
बात 1999 की है। अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। उनकी सरकार समता (नीतीश कुमार की समता पार्टी), ममता (ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस) और जयललिता के सहयोग और बैसाखी पर चल रही थी। अहम मंत्रालय और अपने खिलाफ आपराधिक केस वापस लेने और तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार को बर्खास्त करने के लिए तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता अटल सरकार पर लगातार दबाव बना रही थी और जब ऐसा नहीं हुआ तो नाराज जयललिता की पार्टी के सभी मंत्रियों ने 6 अप्रैल, 1999 को पीएम वाजपेयी को अपने इस्तीफे भेज दिए। दो दिनों बाद प्रधानमंत्री ने उन इस्तीफों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
कुछ दिनों बाद जब जयललिता दिल्ली पहुंची तो राजधानी में सियासी तापमान चढ़ गया। अगले कुछ दिनों तक दिल्ली में रहने के बाद उन्होंने 11 अप्रैल 1999 को राष्ट्रपति के आर नारायणन से मिलकर उन्हें अटल सरकार से समर्थन वापसी की चिट्ठी सौंप दी। 1998 में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार 13 महीने में ही अल्पमत में आ गई। उसे अब लोकसभा में बहुमत साबित करना था क्योंकि राष्ट्रपति ने उन्हें ऐसा करने को कह दिया था।
अप्रैल के पहले हफ्ते में ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके साथियों के अहसास हो चुका था कि जयललिता समर्थन वापस लेने जा रही हैं। जब AIADMK के मंत्रियों ने इस्तीफा दिया तो उसके अगले ही दिन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपने खास दूत और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री मदन लाल खुराना को हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पास भेजा था और उनसे ये मदद मांगी थी कि लोकसभा में विश्वास मत परीक्षण के दौरान वह सरकार का समर्थन करें।
चौटाला उस वक्त जिंद में थे। खुराना ने वहीं जाकर उनसे मुलाकात की और आडवाणी के मदद की दरकार का संदेशा दिया। सत्ता के माहिर खिलाड़ी चौटाला ने तब खुराना को कोई आश्वासन नहीं दिया। सिर्फ इतना कहा कि पार्टी नेताओं से विचार-विमर्श कर इस बारे में जानकारी देंगे। उस वक्त चौटाला के पास चार सांसद थे। 17 अप्रैल को लोकसभा में विश्वास मत परीक्षण था। उसके एक दिन पहले 16 अप्रैल 1999 को जब तरबूज का जूस पीते हुए ओमप्रकाश चौटाला ने घोषणा की थी कि वह राष्ट्रीय हित को देखते हुए वाजपेयी सरकार को दोबारा समर्थन देंगे तो सरकार के खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई थी। भाजपा के मुरझाए चेहरों पर मुस्कान बिखर गई थी, क्योंकि भाजपा ने बहुमत का जुगाड़ करीब-करीब कर लिया था।
हालांकि, अगले दिन जब लोकसभा में बहुमत परीक्षण होने लगा, तभी लोकसभा अध्यक्ष की तरफ से एक पर्ची लोकसभा के महासचिव एस गोपालन की तरफ बढ़ाई गई। गोपालन ने उसे पढ़कर टाइप करने के लिए भेज दिया और जब वह कागज छपकर आया तो उसमें लोकसभा अध्यक्ष की रूलिंग थी, जिसमें कांगेस सांसद गिरधर गोमांग को विवेक के आधार पर वोट देने की इजाजत दी गई थी। दरअसल, गोमांग फरवरी में ही ओडिशा के मुख्यमंत्री बनाए गए थे लेकिन उन्होंने तब तक लोकसभा से अपना इस्तीफा नहीं सौंपा था। जब वोटिंग हुई तो गिरधर गोमांग ने सरकार के खिलाफ वोट किया और इस तरह एक वोट से अटल सरकार 13 महीने बाद फिर से गिर गई थी।