लालकृष्ण आडवाणी के जिन्ना की तारीफ पर क्या था अटल बिहारी वाजपेयी का रिएक्शन
- अटल बिहारी वाजपेयी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आडवाणी जी के बयान को गलत ढंग से पेश किया गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कई सीनियर नेता जैसे सरोजिनी नायडू की भी मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में वही राय थी, जो आडवाणी ने जाहिर की। उन्होंने कहा कि जिन्ना ने भी आजादी के संग्राम में भूमिका निभाई थी।
लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया था और लंबे अरसे से कांग्रेस केंद्रित चली आ रही राजनीति में दूसरा ध्रुव तैयार किया था। इसका श्रेय आडवाणी और अटल बिहारी वाजेपयी की जोड़ी को हमेशा ही दिया जाएगा। यही नहीं दोनों नेताओं की जुगलबंदी ऐसी थी कि जिन आडवाणी को पीएम पद का दावेदार माना जा रहा था, उन्होंने ही अटल जी के नाम का प्रस्ताव रख दिया था। यही नहीं दोनों नेता जब तक राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहे, उनके संबंधों में मधुरता बनी रही। यहां तक कि लालकृष्ण आडवाणी जब 2005 में पाकिस्तान गए और मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर दिए बयान पर घिर गए, तब भी अटल बिहारी वाजपेयी ने उनका बचाव किया था। यह वह वक्त था, जब संघ नेतृत्व आडवाणी के खिलाफ था और चाहता था कि वे अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दें। यहां तक कि वह इस्तीफा ले भी लिया गया था।
इस संबंध में जब अटल बिहारी वाजपेयी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि आडवाणी जी के बयान को गलत ढंग से पेश किया गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कई सीनियर नेता जैसे सरोजिनी नायडू की भी मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में वही राय थी, जो आडवाणी ने जाहिर की। उन्होंने कहा कि मोहम्मद अली जिन्ना ने भी देश की आजादी के लिए छिड़े संग्राम में भूमिका निभाई थी। यह बात सही है कि उन्होंने बाद में पाकिस्तान की मांग की और उनके विचारों में परिवर्तन भी आ गया था। उन्होंने कहा था कि जिन्ना पाकिस्तान के जनक थे, लेकिन वह चाहते थे कि भारत के साथ संबंध अच्छे बने रहें। लेकिन उनके बाद आने वाले शासकों ने कभी इस कोशिश को आगे नहीं बढ़ाया।
आडवाणी कराची में क्या बोल आए, जिस पर मचा था विवाद
आडवाणी ने मोहम्मद अली जिन्ना की याद में बने मकबरे की यात्रा के दौरान कराची में लिखा था, 'दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। लेकिन उससे भी कम लोग वे होते हैं, जो इतिहास बनाते हैं। मोहम्मद अली जिन्ना ऐसी ही दुर्लभ शख्सियत थे।' इसके आगे जो उन्होंने जिन्ना को लेकर कह दिया था, उस पर जमकर विवाद हुआ था। उन्होंने कहा था, 'जिन्ना के शुरुआती दिनों में सरोजिनी नायडू ने उन्हें हिंदू मुस्लिम एकता का दूत करार दिया था। पाकिस्तान की असेंबली में उन्होंने 11 अगस्त, 1947 को भाषण दिया था, वह क्लासिक है। वह बताता है कि कैसे वह एक सेकुलर देश चाहते हैं, जिसमें हर नागरिक को अपने धर्म के पालन का अधिकार हो। एक ऐसा देश जिसमें नागरिकों के बीच आस्था के आधार पर कोई भेद न हो। ऐसे शख्स को मेरी श्रद्धांजलि है।'
कैसे संघ ने मांगा था आडवाणी से इस्तीफा
जिन्ना को सेकुलर बता देने वाले इस बयान पर संघ परिवार हैरान था। आडवाणी के राजनीतिक जीवन का भी यह एक अलग ही चक्र था। कहां तो उनकी 1990 में राम मंदिर आंदोलन के लिए हिंदुत्व वाली छवि थी तो वहीं 2005 में उन्होंने जिन्ना पर बयान दिया और फिर बात हाथ से निकलती चली गई। संघ परिवार इस पर इतना खफा था कि तब के संगठन महामंत्री संजय जोशी के माध्यम से भाजपा के अध्यक्ष पद से उनका इस्तीफा ही ले लिया गया। लेकिन ऐसे वक्त में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने आडवाणी का बचाव करने का प्रयास किया था।