पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ पर भड़के एडवोकेट हरीश साल्वे, इंटरव्यू में इस बात का लगा बुरा
- बीबीसी पत्रकार स्टीफन शाकुर ने पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ से बातचीत में आर्टिकल 370 को लेकर सवाल किया था कि इसे खत्म करने का फैसला क्यों किया गया।
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सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की एक इंटरव्यू को लेकर कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि इसके चलते चंद्रचूड़ नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की सवालों के घेरे में आ सकता है। उन्होंने कहा कि न्यायिक फैसलों के बारे में चर्चा अदालत में की जानी चाहिए, किसी इंटरव्यू में नहीं। पूर्व सीजेआई ने BBC से बातचीत में अनुच्छेद 370 खत्म करने पर चर्चा की थी।
रिपब्लिक टीवी से बातचीत में साल्वे ने कहा, 'आप बीबीसी के पत्रकार से बात कर रहे हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि आप मुसीबत में फंसने जा रहे हैं। दूसरी सबसे जरूरी चीज यह है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश भारत की सर्वोच्च अदालत का हिस्सा होते हैं और मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस पर बात करनी चाहिए कि कोर्ट क्या करता है। क्योंकि इससे वह नहीं, बल्कि इंटरव्यू के दौरान सुप्रीम कोर्ट ही सवालों के घेरे में आ गया।'
उन्होंने आगे कहा, 'हम हमेशा कहते हैं कि जजों को सिर्फ अपने फैसलों के जरिए ही बात करनी चाहिए।' एडवोकेट ने अदालत के बाहर न्यायिक फैसलों पर चर्चाओं को लेकर चिंता भी जाहिर की है। उन्होंने पूर्व सीजेआई की तरफ से दी गई सफाई की भी कड़ी आलोचना की है और कहा है कि अदालत के बाहर फैसलों की स्क्रूटनी या जांच नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'फैसले में बताया गया है कि क्यों इसे खत्म किया गया, लेकिन यही मुद्दा जब निजी इंटरव्यू में उठाया जाता है, तो फैसले के उद्देश्यों पर सवाल उठते हैं।'
पूर्व सीजेआई ने क्या कहा था
बीबीसी पत्रकार स्टीफन शाकुर ने पूर्व सीजेआई चंद्रचूड़ से बातचीत में आर्टिकल 370 को लेकर सवाल किया था कि इसे खत्म करने का फैसला क्यों किया गया। इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'चूंकि केस में फैसला लिखने वालों में से मैं भी एक था और इस पेशे में अपने फैसले का बचाव या आलोचना करने में कुछ प्रतिबंध होते हैं...। संविधान के जन्म के समय जब आर्टिकल 370 को लाया या गया था, तब यह 'ट्रांजीशनल अरैंजमेंट्स' या 'ट्रांजीशनल प्रोविजन्स' का हिस्सा था।'
पूर्व सीजेआई ने आगे कहा, 'बाद में इसे 'टेम्परेरी एंड ट्रांजीशनल प्रोविजन्स' के रूप में बदल दिया गया और जब संविधान का जन्म हुआ तो माना गया कि जो भी ट्रांजीशनल था, उसे खत्म करना होगा और इसे पूरे पाठ के साथ मिलाना होगा। अब ट्रांजीशनल प्रोविजन को खत्म करने के लिए 75 साल से ज्यादा का समय बहुत कम है।' उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को भी ध्यान में रखा कि अगर चुनी हुई सरकार प्रावधान को खत्म करने का फैसला करती है, तो यह स्वीकार्य है।
साल्वे भड़के
एडवोकेट साल्वे का कहना है कि अगर ऐसे सार्वजनिक तौर पर अदालत के फैसलों पर बात की जाएगी, तो इससे न्यायिक उद्देश्यों पर सवाल उठ सकते हैं, जिससे संस्थान पर भरोसा कम हो सकता है। साथ ही उन्होंने बीबीसी को भी घेरा। उन्होंने कहा, 'हमारा सुप्रीम कोर्ट किसी केस पर सुनवाई क्यों करता है या क्यों नहीं करता है? यह सवाल करने वाले वह पत्रकार कौन हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट ने जातियों और समुदायों में संतुलन बनाए रखने का अपना कर्तव्य खो दिया है।'
साल्वे का कहना है कि बीबीसी जैसे संस्थान के साथ ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बात करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्होंने कहा, 'अगर आप इस तरह इंटरव्यू करेंगे, तो आपको पता होना चाहिए कि आप परेशानी मोल ले रहे हैं।' उन्होंने कहा, 'अगर आप प्रशासनिक कामों के बारे में इंटव्यू देना चाहते हैं तो दीजिए, लेकिन कभी भी फैसलों पर बात मत कीजिए।'