Hindi Newsदेश न्यूज़RJD MP Manoj Jha files intervention application in Supreme Court in Places of Worship Act, 1991 matter after CPIM

सियासी पैंतरा या मुस्लिम तुष्टिकरण? प्रकाश करात के बाद मनोज झा हस्तक्षेप याचिका ले क्यों पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 'प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट' यानी पूजा स्थल कानून बनाया गया था। इसे स्पेशल प्रोविजन के तहत बनाया गया था।

Pramod Praveen लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीWed, 11 Dec 2024 03:18 PM
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उत्तर भारत की कई मस्जिदों के नीचे मंदिर होने के दावे और इन मामलों को अदालतों में घसीटे जाने के बाद अब देश भर में एक बार फिर 1991 के पूजा स्थल कानून को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। ताजा मामले में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की संवैधानिकता से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की है। इनसे पहले सीपीआई (मार्क्सवादी) की तरफ से पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रकाश करात ने भी इसी तरह की याचिका शीर्ष अदालत में दायर की है।

प्रकाश करात ने अपनी अर्जी में दलील दी है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम देश में सार्वजनिक व्यवस्था, भाईचारा, एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथन की तीन जजों की विशेष पीठ गुरुवार यानी 12 दिसंबर को दोपहर बाद करीब साढ़े तीन बजे इस मामले की सुनवाई कर सकती है। बता दें कि शीर्ष अदालत में पहले से ही छह याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें वकील अश्विनी उपाध्याय और पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा कानून के कुछ प्रावधानों के खिलाफ दायर जनहित याचिकाएं भी शामिल हैं।

माकपा ने पोलित ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात के माध्यम से याचिका दायर की और कहा, "पार्टी का उद्देश्य भारतीय संविधान में निहित महत्वपूर्ण सिद्धांतों जैसे भाईचारा, धर्मनिरपेक्षता, समानता, और कानून के शासन को बनाए रखना है। पार्टी का मानना है कि यदि इस कानून में कोई बदलाव किया गया तो इससे भारत का सांप्रदायिक सौहार्द और धर्मनिरपेक्ष ताने बाने को नुकसान हो सकता है, और इसलिए इस मामले में हस्तक्षेप की आवश्यकता है।"

महाराष्ट्र की मुंब्रा-कलवा सीट से हाल ही में एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के टिकट पर चुने गए विधायक जितेंद्र सतीश आव्हाड ने भी अपनी याचिका में इस अधिनियम के संवैधानिक और सामाजिक महत्व पर जोर देने की मांग की है। उन्होंने आशंका जताई कि इसमें किसी भी प्रकार के परिवर्तन से भारत की सांप्रदायिक सद्भावना और धर्मनिरपेक्षता को खतरा हो सकता है, जिससे देश की संप्रभुता और अखंडता पर आंच आ सकती है।

क्या है 1991 का पूजा स्थल अधिनियम

वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 'प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट' यानी पूजा स्थल कानून बनाया गया था। इसे स्पेशल प्रोविजन के तहत बनाया गया था, जिसके मुताबिक 15 अगस्त 1947 से पहले भारत में जिस भी धर्म का जो पूजा स्थल था, उसे किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है या जुर्माना या दोनों हो सकता है। इस कानून में यह भी प्रावधान है कि किसी दूसरे धर्मस्थल पर कब्जे के सबूत मिलने पर भी कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है। हालांकि अयोध्या में राम मंदिर के मामले को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।

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सियासी पैंतरा या मुस्लिम तुष्टिकरण

दरअसल, ज्ञानवापी मस्जिद, अजमेर शरीफ दरगाह, संभल के शाही मस्जिद प्रकरण में हालिया कानूनी कार्रवाइयों से मुस्लिम समाज ठगा हुआ महसूस कर रहा है और 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत देश भर की मस्जिदों और अन्य पूजा स्थलों का संरक्षण चाहता है। भाजपा से जुड़े लोग जहां इस अधिनियम की वैधता पर सवाल उठा रहे हैं और उसके प्रावधानों पर आपत्ति जता रहे हैं। वहीं राजद, सीपीआई(एम) और शरद पवार की एनसीपी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM समेत कई ऐसी पार्टियां जो मु्स्लिम हितों की समर्थक रही हैं और जिनका मुस्लिम वोट बैंक रहा है, वह 1991 के अधिनियम के तहत देश भर की मस्जिदों का संरक्षण चाहती है, ताकि मु्स्लिम समाज में यह संदेश जा सके कि ये दल उनके सच्चे हिमायती हैं और उनके समाज की परवाह करते हैं। अगर कोर्ट से राहत नहीं मिली है, तब भी ये दल अल्पसंख्यक समाज को यह संदेश देने में कामयाब रहेंगे कि उन्होंने उनके हितों की अनदेखी होने नहीं दी और सुप्रीम कोर्ट तक इसके लिए लड़ाई लड़ी है।

 

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