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भारत को राष्ट्रीय न्यायिक सेवा की जरूरत, एक समान हो भर्ती परीक्षा; पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने दिया सुझाव

  • पूर्व CJI ने कहा कि न्यायाधीशों की संख्या जनसंख्या अनुपात के हिसाब से बहुत कम है और इसमें सुधार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता है।

Amit Kumar हिन्दुस्तान टाइम्स, देबब्रत मोहंती, भुवनेश्वरWed, 19 Feb 2025 09:45 PM
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भारत को राष्ट्रीय न्यायिक सेवा की जरूरत, एक समान हो भर्ती परीक्षा; पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने दिया सुझाव

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक भर्ती प्रक्रिया को अनिवार्य बताया। उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस (AIJS) की आवश्यकता है, हालांकि इसमें संघीय चिंताओं का संतुलन भी बनाए रखना होगा। भुवनेश्वर में स्थानीय टीवी चैनल OTV के वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए पूर्व CJI ने भारत की न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने के लिए न्यायिक भर्ती प्रक्रिया के राष्ट्रीयकरण की वकालत की। उन्होंने कहा, "हम अब एक अत्यधिक विकसित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं और न्यायिक सुधारों के मामले में भारत 1960 या 70 के दशक से पूरी तरह अलग है। यदि हमें देश को अगले स्तर तक ले जाना है, तो न्यायिक सुधार बेहद महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि कानून का शासन और एक कुशल न्यायिक प्रणाली नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है।"

न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता

पूर्व CJI ने कहा कि न्यायाधीशों की संख्या जनसंख्या अनुपात के हिसाब से बहुत कम है और इसमें सुधार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "हमें अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता है। दूसरा, हमें जिला अदालतों से लेकर उच्च न्यायालयों तक न्यायिक अवसंरचना में सुधार करने की जरूरत है। साथ ही, भारतीय न्यायपालिका में रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाना चाहिए।"

उन्होंने यह भी कहा कि ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस लागू करने को लेकर राज्य सरकारें संघीय ढांचे के कारण चिंतित हैं। उन्होंने कहा, "क्या हम अखिल भारतीय न्यायिक सेवा ला सकते हैं? मुझे लगता है कि वर्तमान संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है। आज, राज्य सरकारें कहती हैं कि हमारे पास एक संघीय ढांचा है और वे इस तथ्य से चिंतित हैं कि एक भारतीय न्यायिक सेवा भारतीय संघवाद को कमजोर कर सकती है।" पूर्व सीजेआई ने कहा कि हालांकि जिला न्यायपालिका भर्ती एक राज्य का विषय है, लेकिन संघीय चिंताओं को दूर करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है।

ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विस की जरूरत

पूर्व CJI ने सुझाव दिया कि पूरे देश के लिए एक समान भर्ती परीक्षा होनी चाहिए, ताकि न्यायपालिका को पूरे भारत से सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार मिल सकें। उन्होंने कहा, "तमिलनाडु का कोई व्यक्ति ओडिशा में न्यायाधीश बन सकता है और ओडिशा का व्यक्ति मेघालय में सेवाएं दे सकता है। इससे भारत की एकता को भी बढ़ावा मिलेगा।" उन्होंने आगे कहा कि "एक सामान्य प्रवेश परीक्षा हो सकती है, जिसमें एक मेरिट लिस्ट के आधार पर भर्ती की जाए और प्रत्येक राज्य में आरक्षण नियमों को लागू किया जाए।"

जमानत देने में जिला अदालतों की हिचकिचाहट पर चिंता

पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने जमानत देने में निचली अदालतों की हिचकिचाहट पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि "जिला न्यायपालिका आम नागरिकों के लिए न्यायिक प्रणाली का पहला संपर्क बिंदु है। यह महत्वपूर्ण है कि वे दो सिद्धांतों को अपनाएं— पहला, किसी भी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाए जब तक कि उसका अपराध सिद्ध न हो जाए, और दूसरा, जमानत को सामान्य नियम माना जाए तथा जेल को अपवाद के रूप में देखा जाए।"

हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गंभीर अपराधों के मामलों में जमानत देने से पहले न्यायाधीशों को समाज की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि "अगर किसी पर बलात्कार या हत्या का आरोप है, तो क्या समाज की सुरक्षा को देखते हुए उसे जमानत देना उचित होगा? लेकिन कुछ मामलों में, जहां सैकड़ों गवाह होते हैं और मुकदमा 7-8 साल तक चल सकता है, तब आरोपी को कितने साल जेल में रखा जाएगा?" उन्होंने कहा, "हमें अपने सरकारी अधिकारियों पर भरोसा नहीं है और न्यायाधीश भी अपवाद नहीं हैं। अगर जिला न्यायाधीश जमानत देते हैं और जमानत रद्द हो जाती है, तो हमें जिला न्यायाधीश पर नैतिक आरोप नहीं लगाने चाहिए। अगर जमानत गलत तरीके से दी गई है, तो इसे उच्च न्यायालय द्वारा पलटा जा सकता है।"

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अयोध्या फैसले पर विचार

चंद्रचूड़ ने ऐतिहासिक अयोध्या फैसले सहित कई विषयों पर खुलकर बात की और कहा कि यह एक जटिल मामला था और इस पर देश में कई बदलाव हुए। इसमें अनेक कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखना पड़ा। उन्होंने कहा, "जब भी हम इस तरह के मामलों की सुनवाई करते हैं, तो हमें यह समझना होता है कि यह सुप्रीम कोर्ट में पहली अपील थी, क्योंकि पहली बार निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था। हमारा काम किसी भी मामले में समान कानूनी सिद्धांतों को लागू करना होता है।"

अयोध्या मामले में आए तथ्यों पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "इस केस में 30,000 पन्नों के रिकॉर्ड, 300-400 साल पुराने संस्कृत, उर्दू, गुरुमुखी समेत कई भाषाओं के दस्तावेज और बड़ी संख्या में गवाहों के बयान शामिल थे। इसके अलावा, समय की भी चुनौती थी, क्योंकि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई सेवानिवृत्त होने वाले थे।"

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