वक्फ कानून पर अंतरिम आदेश देगा सुप्रीम कोर्ट? पूरे दिन होगी अहम सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट वक्फ कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज पूरा दिन सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि इस कानून को लेकर अंतरिम आदेश की जरूरत है या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम राहत पर विचार करने के मसले पर शुक्रवार को अहम सुनवाई करने वाला है। सीजेआई बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने गुरुवार को अगली तारीख मुकर्रर करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि वह 1995 के वक्फ कानून के प्रावधानों को स्थगित करने की किसी भी याचिका पर उस दिन विचार नहीं करेगी।
पीठ ने कहा कि अदालत अधिनियम के प्रावधानों को स्थगित करने वाले अंतरिम आदेश के पक्ष और विपक्ष में पूरे दिन दलीलें सुनेगी। कानून की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत को अगले सप्ताह सुनवाई करने का सुझाव दिया। दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि सुनवाई अगले सप्ताह 20 मई के लिए तय की जा सकती है।
इसके बाद पीठ ने सिब्बल और मेहता से कहा कि वे 19 मई तक अपने-अपने लिखित नोट अदालत के समक्ष दाखिल कर दें। बेंच के सामने एक अन्य पक्ष की ओर से पेश ऐडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने इससे पहले उन्होंने वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों को चुनौती दी थी। उन्होंने कहा कि नई याचिका में उनके मुवक्किलों ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती दी है। उनके मुवक्किल वक्फ अधिनियम 1995 के कुछ प्रावधानों से भी दुखी हैं, जिसे 2025 में संशोधित किया गया है।
जैन ने बेंच से अनुरोध किया कि उन्हें दलीलें पेश करने के लिए 30 मिनट का समय दिया जाए। इस पर पीठ ने जैन से पूछा कि आपकी शिकायत क्या है? उन्होंने वक्फ न्यायाधिकरण को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि यह अभी भी मौजूद है और कई अन्य धाराएं हैं जो कठोर हैं और वे अभी भी कानून में मौजूद हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जैन से पूछा, वे धाराएं कब से मौजूद हैं। इस पर अधिवक्ता जैन ने कहा कि 1995 से और 2025 में भी।
बेंच ने कहा, 'अगर वे 1995 से अस्तित्व में हैं और उन्हें चुनौती नहीं दी गई है और यदि उन्हें चुनौती दी गई थी तो कब दी गयी। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि 1995 के अधिनियम को पहले भी चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने उन्हें उच्च न्यायालय में जाने को कहा था। इन दलीलों के साथ उन्होंने कहा, “हमने 140 याचिकाएँ दायर की हैं जो विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं और अब हमने वर्तमान रिट याचिका दायर की है, जो एक नया मामला है।'
इसके बाद पीठ ने पूछा कि न्यायालय 2025 में 1995 के अधिनियम को चुनौती देने की अनुमति कैसे दे सकता है। जब न्यायालय 20 मई को मामले पर सुनवाई करेगा, तो वह 1995 के पहले के वक्फ कानून के प्रावधानों पर रोक लगाने की किसी भी याचिका पर विचार नहीं करेगा।
पीठ ने कहा, 'हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि 1995 के अधिनियम के किसी भी प्रावधान पर रोक लगाने के किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेंगे। सिर्फ इसलिए कि कोई 2025 के संशोधन को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है और कोई बस 1995 के अधिनियम को चुनौती देना चाहता है, इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी।'cइसके बाद मेहता ने कहा कि श्री जैन कहना चाहते हैं कि वह लंबे समय से उस स्थगन का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन इस अदालत ने उनके मुवक्किलों को उच्च न्यायालय जाने का निर्देश दिया और 1995 के अधिनियम के संबंध में प्रार्थना पर कभी विचार नहीं किया।
वकीलों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने उनसे कहा कि वे तैयार होकर आएं और अपनी दलीलों का समेकित नोट प्रस्तुत करें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि मामले की सुनवाई 20 मई को स्थगित न हो। गौरतलब है कि इस मामले में इससे पहले तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना (जो 13 मई 2025 को सेवानिवृत हो गए) और न्यायमूर्ति संजय कुमार तथा न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने विचार किया था।
शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के आश्वासन के बाद 17 अप्रैल को हाल में किए गए वक्फ कानून (वर्ष 2025 के इस संशोधित कानून में) में बदलावों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया था कि वक्फ बोर्डों और परिषदों में कोई भर्ती नहीं की जाएगी और उपयोगकर्ताओं द्वारा वक्फ के रूप में घोषित या पंजीकृत वक्फ संपत्तियों को अगली सुनवाई की तारीख तक वक्फ की संपत्ति बनी रहेगी और बदलाव नहीं किया जाएगा। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने संशोधित वक्फ अधिनियम 2025 का बचाव करते हुए 25 अप्रैल को एक प्रारंभिक हलफनामा दायर किया। हलफनामे में केंद्र ने इस संबंध में संसद में पारित कानून पर अदालत द्वारा किसी भी तरह की रोक का विरोध किया था।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश खन्ना की पीठ ने कहा था कि वक्फ मामले में केवल पांच याचिकाओं को ही मुख्य याचिका माना जाएगा और अन्य रिट याचिकाओं को हस्तक्षेप आवेदन माना जाएगा। गौरतलब है कि वक्फ अधिनियम के खिलाफ शीर्ष अदालत में अब तक 100 से अधिक याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं।