जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं कर सकते जज, सीजेआई बीआर गवई ने ऐसा क्यों कहा
जस्टिस बीआर गवई ने न्यायिक रिक्तियों के मुद्दे का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ये रिक्तियां मामलों के लंबित रहने का प्रमुख कारण हैं। उन्होंने कॉलेजियम की रिक्तियों को कम करने की प्रतिबद्धता को दोहराया।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की ओर से शनिवार को नई दिल्ली में एक समारोह आयोजित हुआ, जिसमें हाल ही में नियुक्त 52वें मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई को सम्मानित किया गया। बीसीआई के समारोह में चीफ जस्टिस बीआर गवई ने शानदार भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने न्यायाधीशों को सामाजिक वास्तविकताओं को समझने और उन पर प्रतिक्रिया देने की अहम भूमिका पर जोर दिया। जस्टिस गवई ने कहा कि आज का न्यायपालिका केवल कानूनी मामलों को काले-सफेद नजरिए से नहीं देख सकता, बल्कि मानवीय अनुभवों की जटिलताओं को भी ध्यान में रखना होगा।
सीजेआई गवई ने अपने शुरुआती दिनों की हिचकिचाहट को याद किया। उन्होंने कहा, 'मेरे पिता ने बताया था कि वकील के तौर पर काम जारी रखने से आर्थिक समृद्धि मिलेगी, मगर कोर्ट में जज के रूप में सेवा करने से डॉ. बीआर अंबेडकर के सामाजिक और आर्थिक न्याय के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने का अवसर मिलेगा।' अपने पिता की सलाह को मानते हुए गवई ने अपने 22 साल तक हाई कोर्ट जज और 6 साल सुप्रीम कोर्ट जज के कार्यकाल पर संतुष्टि जताई। उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा न्यायिक प्रणाली को अपना बेहतर देने का प्रयास किया।
कैसा होना चाहिए सुप्रीम कोर्ट के जज का व्यवहार
चीफ जस्टिस ने जोर देकर कहा कि अदालत में अलगाव प्रभावी नजरिया नहीं है। उन्होंने इस धारणा को खारिज किया कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को लोगों से दूरी बनाए रखनी चाहिए। हाशिए पर रहने वाले समुदायों और महिलाओं के प्रतिनिधित्व की वकालत सही है। उन्होंने पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और विभिन्न हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के साथ एक सम्मेलन को याद किया, जहां चंद्रचूड़ ने समाज के कम प्रतिनिधित्व वाले वर्गों से उम्मीदवारों पर विचार करने की अपील की थी। जस्टिस गवई ने कुछ पदों के लिए महिला उम्मीदवारों की पहचान में चुनौतियों को स्वीकार किया। उन्होंने मुख्य न्यायाधीशों को सुप्रीम कोर्ट की कुशल महिला वकीलों पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया।