अमेरिका, रूस समेत 15 देशों के विदेशियों ने किया पिंडदान, पितृपक्ष के बाद भी गया में जमघट
पिंडदान कराने वाले गयापाल विजय लाल विह्वल ने बताया कि अमेरिका, रूस समेत करीब 15 देशों के 60 पिंडदानियों का जत्था रविवार को विष्णुपद पहुंचा। सभी सनातन धर्म को मानने वाले हैं। सनातनी परंपरा के अनुसार अपने पूर्वजों के लिए सबसे पहले फल्गु के देवघाट पर बैठकर पिंडदान किया।
पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए विदेशियों का जत्था रविवार को विष्णुपद पहुंचा। फल्गु के घाट पर बैठकर गयाश्राद्ध किया। एक दिनी पिंडदान के तहत फल्गु, विष्णुपद और अक्षयवट वेदी का विधान किया। फल्गु में तर्पण, विष्णुचरण पर पिंडदान अर्पित कर पितरों के विष्णुलोक की कामना की। पितृपक्ष के बाद भी धर्मनगरी गया में विदेशों के श्रद्धालुओं का आना जारी है। यहां आकर विदेशी सैलानी अपने पूर्वजों और प्रियजनों का पिंडदान कर रहे हैं।
पिंडदान कराने वाले गयापाल विजय लाल विह्वल ने बताया कि अमेरिका, रूस समेत करीब 15 देशों के 60 पिंडदानियों का जत्था रविवार को विष्णुपद पहुंचा। सभी सनातन धर्म को मानने वाले हैं। सनातनी परंपरा के अनुसार अपने पूर्वजों के लिए सबसे पहले फल्गु के देवघाट पर बैठकर पिंडदान किया। इसके बाद फल्गु में पिंड अर्पण करने के बाद तर्पण किया। इसके बाद विदेशियों का जत्था विष्णुपद मंदिर पहुंचे। यहां गर्भगृह में विष्णुचरण के पिंड चढ़ाए।
विदेशी मेहमानों ने पिंडदान के साथ ही विष्णुचरण के दर्शन-पूजन कर पितरों के मोक्ष की कामना की। इसके बाद सभी अक्षयवट पहुंचे। यहां पिंडदान के बाद सुफल लेकर गयाश्राद्ध संपन्न किया। गयापाल ने बताया कि जत्थे में अमेरिका व रूस सहित करीब 15 देशों के सतातन धर्म मानने वाले विदेशी हैं। इन्हें गयाजी में श्राद्ध करने से पितरों के मोक्ष की जानकारी मिली। गया जी की महता और पूर्वजों के मोक्ष की बात जनाकर काफी प्रभावित हुए। इसके बाद सभी गयाजी पहुंचकर पितरों के लिए एक दिनी पिंडदान किया।
दो माह में तीन जत्थे ने किया पिंडदान
महज दो माह के अंदर तीन बार विदेशी पिंडदानियों का जत्था गयाजी आकर पिंडदान कर चुके हैं। पहली बार पितृपक्ष पखवारे में 30 सितंबर को 10 विदेशी पिंडदानियों ने गयाश्राद्ध किया था। दक्षिण अफ्रीका, यूक्रेन, जर्मन,रूस, काजिकस्तान, नाइजेरिया व यूएसए के रहने वाले लोगों ने पिंडदान किया था। दूसरी बार 7 अक्टूबर की सुबह फल्गु नदी के संगतघाट पर 161 विदेशी पिंडदानियों ने किया पिंडदान। ये सभी इस्कॉन मंदिर से जुड़े और अधिकतर रूस के रहने वाले थे।