छह वर्षों से बंद पड़ा है बेलहर के घोड़बहियार गांव का नल जल योजना
बोले बांकाबोले बांका प्रस्तुति- पीके विश्वकर्मा - 40 घरों के 400 लोगों को नहीं मिल रहा पीने का स्वच्छ पानी। - गांव में रहता है सिर्फ महादलित परिवार।

बेलहर(बांका), निज प्रतिनिधि। बांका जिला अंतर्गत बेलहर प्रखंड के घोड़बहियार पंचायत स्थित घोड़बहियार गांव में रहने वाले महादलित समुदाय के लोगों की जिंदगी बदहाल है। यह गांव बदुआ नदी के किनारे बसा हुआ है और यहां लगभग 40 महादलित परिवार निवास करते हैं। इन परिवारों की कुल जनसंख्या लगभग 400 है। लेकिन आज भी यह गांव सरकारी योजनाओं से उपेक्षित और विकास से कोसों दूर है। स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करने के लिए बिहार सरकार द्वारा शुरू की गई “हर घर नल का जल” योजना के अंतर्गत इस गांव में भी छह वर्ष पहले कार्य शुरू किया गया था। लेकिन अफसोस की बात है कि यह योजना केवल कुछ ही दिनों तक सुचारू रूप से चली और उसके बाद यह पूर्ण रूप से ठप हो गई। ग्रामीणों के अनुसार, योजना के ठप हो जाने के बाद कभी भी पीएचईडी विभाग के अधिकारी या कर्मचारी गांव में झांकने तक नहीं आए। नतीजतन, गांव के लोग आज भी पीने के लिए साफ पानी से वंचित हैं और बारिश या नदी का पानी या फिर हैंडपंप के सहारे अपनी जरूरतें पूरी करने को मजबूर हैं। नल-जल योजना के अंतर्गत लगाए गए पाइप, नल, टंकी आदि सब जर्जर हो चुके हैं। लाखों रुपये की लागत से खड़ी की गई इस परियोजना से गांव को कोई लाभ नहीं मिल सका। हैरानी की बात यह है कि विभागीय रिपोर्ट में इसे अभी भी "सक्रिय" दिखाया जा रहा है। इस योजना के देखरेख की जिम्मेदारी जिनके कंधों पर थी, वह केयर टेकर विजय तुरी रोजगार की तलाश में कोलकाता चले गए। जब योजना बंद हो गई और लगातार शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, तब उन्होंने भी उम्मीद छोड़ दी और अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए गांव छोड़ दिया। यह इस बात का प्रतीक है कि सरकारी योजनाओं के प्रति विभागों की जवाबदेही कितनी कम है। स्वच्छता की बात करें तो गांव की स्थिति अत्यंत दयनीय है। पूरे गांव में कहीं भी नाली नहीं बनी है। लोग अपने घरों का गंदा पानी घर के सामने या पीछे जमा करने को मजबूर हैं, जिससे जगह-जगह जलजमाव और बदबू की स्थिति बनी रहती है। गंदगी से गांव में मच्छर, मक्खी और अन्य बीमारियां फैलने का खतरा हमेशा बना रहता है। विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दो वर्ष पहले गांव के बाहर महिला और पुरुषों के लिए सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया गया था, जो शुरुआत में तो उपयोग में आया, लेकिन देखरेख और मरम्मत के अभाव में अब पूरी तरह बेकार हो गया है। टंकी टूटी हुई है, पानी की कोई व्यवस्था नहीं है और सफाई भी नहीं होती। ऐसे में लोग दोबारा खुले में शौच के लिए मजबूर हो गए हैं, जो स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्यों के लिए एक बड़ा धब्बा है। गांव में एक भी विद्यालय नहीं है। नजदीकी विद्यालय चित्रसेन मध्य विद्यालय या सहाबगंज मध्य विद्यालय की दूरी लगभग तीन किलोमीटर है। आंगनबाड़ी केंद्र भी इतने ही दूर स्थित है। ऐसे में छोटे बच्चों को शिक्षा से वंचित होना पड़ता है। ग्रामीण बताते हैं कि पैदल तीन किलोमीटर की दूरी तय करके बच्चों का स्कूल जाना मुश्किल होता है, खासकर बारिश या गर्मी के मौसम में। परिणामस्वरूप अधिकांश बच्चे नियमित रूप से विद्यालय नहीं जा पाते और शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं। गांव में बिजली की आपूर्ति तो है, लेकिन बिजली बिल की समस्या ग्रामीणों के लिए एक नई मुसीबत बन गई है। हर एक परिवार को 40,000 से 50,000 रुपये तक का बिजली बिल थमाया गया है, जो उनके आर्थिक सामर्थ्य से बहुत बाहर है। कई उपभोक्ताओं की बिजली काट दी गई है। ग्रामीणों की मांग है कि विद्युत विभाग गांव में शिविर लगाकर इन बिलों की जांच करे और सुधार करे, ताकि वे वास्तविक और उचित राशि का भुगतान कर सकें। बदुआ नदी किनारे स्थित गांव के पास एक छोटा खेल मैदान है, जो गांव के युवाओं और बच्चों के खेलने का एकमात्र स्थान है। यह मैदान नदी किनारे बालू की पट्टी पर स्थित है। लेकिन पिछले कुछ समय से यह मैदान बालू माफियाओं की नजर में आ गया है। ये माफिया हर रात यहां बालू की अवैध खुदाई करते हैं और मैदान को धीरे-धीरे खत्म कर रहे हैं। कई बार ग्रामीणों ने प्रशासन से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। खेल का यह मैदान अब लगभग समाप्त होने की कगार पर है। घोड़बहियार गांव के लोग पीढ़ियों से सूप, डलिया बनाने का काम करते आ रहे हैं। यह काम उनकी पारंपरिक आजीविका है, जिसे वे हाट-बाजार में बेचकर गुजर-बसर करते हैं। लेकिन इस व्यवसाय को कभी भी सरकार की तरफ से बढ़ावा नहीं मिला। नतीजतन, वे आज भी उसी सीमित दायरे में जीवनयापन करते हैं। ग्रामीण चाहते हैं कि सरकार उद्योग विभाग के माध्यम से उनके इस व्यवसाय को तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता देकर आगे बढ़ाए ताकि वे इस पारंपरिक हस्तशिल्प को एक बड़े स्वरूप में विकसित कर सकें और उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके। इन सभी समस्याओं को लेकर ग्रामीण कई बार अपने जनप्रतिनिधियों, पंचायत प्रतिनिधियों और सरकारी अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं। हर बार उन्हें आश्वासन मिला, लेकिन जमीनी स्तर पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। लोग अब हताश हो चुके हैं, लेकिन फिर भी अपनी आवाज उठाते रहना चाहते हैं ताकि एक दिन उनके गांव की तस्वीर बदल सके। घोड़बहियार गांव की स्थिति बिहार में आज भी उपेक्षित और विकास से वंचित गांवों की सच्ची तस्वीर पेश करती है। जहां स्वच्छ पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, बिजली, खेल और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाएं भी लोगों को मयस्सर नहीं हैं। ऐसे गांवों की हालत को सुधारना सिर्फ सरकारी योजनाओं का विज्ञापन छापने भर से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए जमीनी स्तर पर ईमानदार प्रयास, जवाबदेही और जन भागीदारी की जरूरत है। बेलहर विधायक मनोज यादव ने कहा कि घोड़बहियार गांव की पानी की समस्या के संबंध में आज तक उनके संज्ञान में नहीं था। इस संबंध में पीएचईडी विभाग से बात कर दो दिन के अंदर नल जल योजना चालू कराया जाएगा। ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर सरकार सजग है।
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