बेल बॉन्ड भरने से प्रशांत किशोर का इनकार, पीके सशर्त जमानत को तैयार नहीं, जेल जाने का खतरा
- जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर को पटना सिविल कोर्ट ने जमानत दे दी है, मगर पीके बेल बॉन्ड भरने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने सशर्त जमानत लेने से इनकार कर दिया है।
पटना के गांधी मैदान से सोमवार की अहले सुबह लगभग 4 बजे अनशन से गिरफ्तार कर लिए गए जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर को पटना सिविल कोर्ट ने जमानत दे दी है। हालांकि, पीके बेल बॉन्ड भरने को तैयार नहीं हैं। उनके वकील ने बताया कि प्रशांत किशोर ने अदालत से सशर्त जमानत लेने से इनकार कर दिया है। बता दें कि कोर्ट ने उन्हें 25 हजार रुपये के पीआर बॉन्ड (निजी मुचलके) पर रिहा करने का आदेश दिया है।
प्रशांत किशोर के वकील ने सोमवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि अदालत ने शर्त रखी है कि वह भविष्य में इस तरह का अपराध दोबारा नहीं करेंगे। अगर पीके यह शर्त मानते हैं और बेल बॉन्ड पर साइन करते हैं तभी उन्हें जमानत पर रिहा किया जाएगा। दूसरी ओर, पीके का कहना है कि उन्होंने किसी तरह का अपराध नहीं किया है। धरना प्रदर्शन करना उनका अधिकार है। आगे भी अगर वह कोई धरना देंगे तो इस शर्त के आधार पर सरकार उनपर कार्रवाई कर लेगी। उन्होंने जज से जमानत की शर्त हटाने की अपील की। हालांकि, जज ने कहा कि आदेश जारी हो गया है और अब उन्हें इस शर्त के साथ ही जमानत लेनी होगी।
फिलहाल पीके बेल बॉन्ड नहीं भरने पर अड़े हुए हैं। उनके वकील समझाइश में जुटे हैं। कानूनी जानकारों के अनुसार अगर प्रशांत किशोर बेल बॉन्ड नहीं भरते हैं तो उन्हें जमानत नहीं मिलेगी और जेल जाना पड़ेगा। 2022 में जन सुराज पदयात्रा से राजनीति में कदम रखने के दो साल बाद उनकी यह पहली जेल यात्रा साबित हो सकती है।
बिहार लोक सेवा आयोग की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा दोबारा कराने को लेकर आंदोलन कर रहे परीक्षार्थियों के समर्थन में उतरे प्रशांत किशोर पर पटना जिला प्रशासन ने कुल दो मुकदमे दर्ज किए थे। पहला केस 26 दिसंबर को गांधी मैदान में परीक्षार्थियों की भीड़ जुटाने और उनको लेकर मार्च करने के कारण हुआ। उस दिन प्रशांत किशोर के मार्च से निकल जाने के बाद पुलिस ने पानी और लाठी की बौछार कर दी थी।
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दूसरा मुकदमा प्रशांत किशोर के बिना इजाजत गांधी मैदान में गांधी प्रतिमा के पास बेमियादी भूख हड़ताल पर बैठने को लेकर दर्ज की गई थी। जिला प्रशासन ने नोटिस जारी कर उनसे कहा था कि वो अनशन गर्दनीबाग में करें जहां हाईकोर्ट के आदेश के तहत धरना-प्रदर्शन की जगह निर्धारित है। बिना इजाजत गांधी मैदान में भूख हड़ताल पर बैठने के लिए केस दर्ज होने के बाद प्रशांत ने कहा था कि ये सार्वजनिक जगह है और अगर उनके साथ जोर-जबर्दस्ती की गई तो अगली बार वो पूरे गांधी मैदान पर कब्जा कर लेंगे।
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प्रशांत किशोर पर जो मुकदमे दर्ज हुए हैं उनमें उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 132 भी लगाई गई है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में यह धारा 353 हुआ करती थी। यह धारा तब लगाई जाती है जब कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को उसकी ड्यूटी करने से रोकता है या रोकने की कोशिश करता है। भारतीय न्याय संहिता में यह धारा संज्ञेय अपराध के तौर पर दर्ज है और गैर जमानती भी है। अधिकतम सजा 2 साल है इसलिए कोर्ट से जमानत मिलने की प्रबल संभावना थी, लेकिन बेल या जेल वकीलों की दलील और जज के विवेक पर निर्भर है। पुराने समय में आईपीसी की धारा 353 के तहत दर्ज मुकदमों में कई लोग जेल गए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस बात की वकालत करता रहा है कि 7 साल के कम सजा वाली धारा के आरोपियों को जेल भेजने के बदले बेल दे देना चाहिए। देखना होगा कि पटना कोर्ट में प्रशांत किशोर के साथ क्या होता है।
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बीपीएससी आंदोलन की ताजा स्थिति ये है कि आयोग ने पटना के बापू परीक्षा केंद्र की रद्द परीक्षा 4 जनवरी को दोबारा करवा लिया है। कुछ लोग इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं जहां इस मामले की शुरुआती सुनवाई की तारीख अभी नहीं आई है। आंदोलनकारी पूरी परीक्षा रद्द करने और दोबारा सबकी परीक्षा लेने की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि 4 जनवरी को परीक्षा देने वालों के प्रश्न 13 दिसंबर को परीक्षा दे चुके लोगों से अलग होंगे। आयोग नॉर्मलाइजेशन करेगा जो परीक्षार्थियों के हित में नहीं है।