मना करने के बाद भी भाषण पर अड़े रहे नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव, स्थगित हुई विधान परिषद की कार्यवाही
यूपी विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता लाल बिहारी यादव मना करने के बाद भी भाषण पर अड़े रहे। उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के लिए कोई समय सीमा नहीं होती है। ऐसे में विप में हंगामा हुआ और सोमवार तक के लिए इसे स्थगित करना पड़ गया।

विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव के भाषण की समयावधि को लेकर विवाद की स्थिति हो गई। इसे लेकर अधिष्ठाता और नेता प्रतिपक्ष के बीच खासी बहस भी हो गई। दरअसल, भोजनावकाश के बाद शुक्रवार को सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो बजट पर नेता प्रतिपक्ष ने बोलना शुरू किया। करीब 45 मिनट के भाषण के बाद अधिष्ठाता डा. जयपाल सिंह व्यस्त ने उन्हें समय सीमा का ध्यान रखने और जल्द भाषण खत्म करने को कहा। इस पर नेता प्रतिपक्ष उखड़ गए। कहा कि नेता प्रतिपक्ष के लिए समय की कोई सीमा तय नहीं है।
इस पर अधिष्ठाता ने कहा कि नियमावली में सब कुछ तय है। कार्यवाही के लिए निर्धारित कुल घंटों के हिसाब से दलों की संख्या के आधार पर उनका समय निर्धारित किया जाता है। इसलिए समय सीमा का ध्यान रखा जाना चाहिए। इस पर नेता प्रतिपक्ष बोले कि नेता सदन के भाषण के दौरान समय को लेकर कोई रोक-टोक नहीं हुई तो उन्हें क्यों रोका जा रहा है। उन्होंने अधिष्ठाता से नियमावली मांगने के साथ ही भाषण खत्म करने की बात से इंकार कर दिया।
उसके बाद अधिष्ठाता ने उन्हें चेतावनी देते हुए कहा कि क्या आप पीठ का निर्देश भी नहीं मानेंगे। नेता प्रतिपक्ष फिर भी अड़े रहे। इस बीच भाजपा के अश्वनी त्यागी, धर्मेंद्र राय, सुरेंद्र चौधरी ने भी पीठ का निर्देश न मानने पर नेता प्रतिपक्ष को घेरा। अंतत: पीठ का निर्देश न मामने पर अधिष्ठाता ने सदन की कार्यवाही सोमवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी। इससे पूर्व नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव ने शिक्षा की बदहाली और महिला अपराध के मुद्दे को सदन में प्रमुखता से उठाया।
इससे पहले लाल बिहारी को जबरिया मार्शलों के द्वारा विधान परिषद से बाहर भी निकलवाया गया था। 19 फरवरी को यूपी विधान परिषद में सदन की कार्यवाही के दौरान नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव को मार्शलों ने निकाल कर बाहर फेंक दिया था। लालबिहारी सभापति से कुंभ पर चर्चा का समय बढ़ाने की मांग कर रहे थे। इसी दौरान सपा के सभी सदस्य वेल में थे। पीठ की व्यवस्था न मानने पर उन्हें मार्शलों को बाहर निकालने का निर्देश दिया गया। इसके बाद लाल बिहारी यादव को उठाकर सदन से बाहर कर दिया गया।