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अतुल सुभाष सुसाइड में हाईकोर्ट का आया फैसला, सभी को अग्रिम जमानत, लेकिन चाचा को ही राहत

अतुल सुभाष सुसाइड मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आ गया है। हाईकोर्ट ने अतुल सुभाष की पत्नी, सास, साले और पत्नी के चाचा को अग्रिम जमानत दे दी है। हालांकि पत्नी, सास और साला पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं ऐसे में यह राहत अब उनके किसी काम की नहीं रह जाती है।

Yogesh Yadav हिन्दुस्तान, विधि संवाददाता, प्रयागराजMon, 16 Dec 2024 11:13 PM
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अतुल सुभाष सुसाइड मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का भी फैसला आ गया है। हाईकोर्ट ने अतुल सुभाष की पत्नी निकिता, सास निशा, साले अनुराग और पत्नी के चाचा सुशील सिंघानिया को अग्रिम जमानत दे दी है। हालांकि पत्नी, सास और साला पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं ऐसे में यह जमानत अब उनके किसी काम की नहीं रह जाती है। अब केवल अतुल की पत्नी के चाचा सुशील सिंघानिया को राहत मिल जाएगी। उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी।

अतुल के सुसाइड के बाद भाई की तहरीर पर चारों के खिलाफ केस दर्ज हो गया था। इसी के बाद कर्नाटक पुलिस जौनपुर स्थित घर पहुंची और नोटिस चस्पा की थी। इसी के बाद सभी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी। इस पर सोमवार की डेट लगी थी। इससे पहले ही रविवार को पत्नी, सास और साले को कर्नाटक पुलिस ने गिरफ्तार कर बंगलुरु की कोर्ट में पेश कर दिया था। जहां से तीनों को न्यायिक हिरासत में जेल भी भेजा जा चुका है।

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अग्रिम जमानत की याचिका पर सोमवार को न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने सुनवाई की। उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि याची मृतक की पत्नी, सास और साले हैं। उन्हें बेंगलुरु पुलिस ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया है और उनकी अग्रिम जमानत अर्जी का कोई मतलब नहीं है।

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अब अग्रिम जमानत अर्जी केवल सुशील सिंघानिया के लिए है। यह तर्क दिया गया कि गिरफ्तारी एक सुसाइड नोट और एक वीडियो के आधार पर की गई है, जो इंटरनेट पर वायरल हो गए हैं और सुशील सिंघानिया को मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़ रहा है। यह भी तर्क दिया गया कि सुशील सिंघानिया 69 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति हैं, जिन्हें पुरानी बीमारी है और वह लगभग अक्षम हैं। आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई सवाल ही नहीं है।

यह भी कहा गया कि आत्महत्या के लिए उकसाने और उत्पीड़न के बीच एक अंतर है और यदि सुसाइड नोट को सही मान लिया जाता है, तो सबसे ज्यादा आरोप उत्पीड़न के लिए लगाए जाएंगे, जो मृतक को झूठे मामलों में फंसाने और बड़ी रकम निकालने के लिए हैं।

किसी भी मामले में बीएनएस की धारा 108, 3(5) के तहत आत्महत्या का अपराध नहीं कहा जा सकता है। यह भी तर्क दिया गया कि सुशील सिंघानिया को उचित समय के लिए सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ताकि वह अपना पक्ष कर्नाटक की अदालत और संबंधित अधिकारियों के सामने प्रस्तुत कर सकें।

कोर्ट ने सुशील सिंघानिया की अग्रिम जमानत सशर्त मंजूर करते हुए कहा कि यदि सुशील सिंघानिया को गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें 50 हजार रुपए के व्यक्तिगत बंधपत्र और दो जमानतदारों के प्रस्तुत होने पर मजिस्ट्रेट/अदालत के संतुष्ट होने पर रिहा किया जाएगा।

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