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एक व्यक्ति एक फैमिली के रास्ते पर है भारत; बिखरते परिवारों पर क्यों SC को भी ऐसा कहना पड़ा

  • अदालत ने बिखरते परिवारों पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि फैमिली की अवधारणा ही खत्म हो रही है। देश एक व्यक्ति एक परिवार की स्थिति में पहुंच रहा है। बेंच ने कहा, 'भारत में हम वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते हैं। लेकिन आज हम अपने परिवारों में भी एकता नहीं बना पा रहे।

Surya Prakash लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 28 March 2025 11:58 AM
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एक व्यक्ति एक फैमिली के रास्ते पर है भारत; बिखरते परिवारों पर क्यों SC को भी ऐसा कहना पड़ा

भारत में वसुधैव कुटुम्बकम की बात होती रही है यानी पूरा विश्व एक परिवार है। फिर भी आज हालात ऐसे हैं कि देश एक व्यक्ति एक परिवार के मुहाने पर खड़ा है। यानी एक व्यक्ति अकेला ही रहना चाहता है और वही अपने आप में एक फैमिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मां और बेटे के बीच छिड़े संपत्ति विवाद की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने परिवार व्यवस्था बिगड़ने पर गहरी चिंता जाहिर की। अदालत ने कहा कि आज ऐसी स्थिति है कि लोग अपने निकट संबंधियों के साथ भी रहने के लिए तैयार नहीं हैं। जस्टिस पंकज मित्तल और एसवीएन भट्टी की बेंच ने 68 साल की समतोला देवी की अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। यूपी के सुल्तानपुर की रहने वालीं समतोला देवी ने अपने घर से बड़े बेटे कृष्ण कुमार को निकालने की मांग करते हुए अर्जी दाखिल की है।

इस केस की सुनवाई करते हुए अदालत ने बिखरते परिवारों पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि फैमिली की अवधारणा ही खत्म हो रही है। देश एक व्यक्ति एक परिवार की स्थिति में पहुंच रहा है। बेंच ने कहा, 'भारत में हम वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते हैं। लेकिन आज हम अपने परिवारों में भी एकता नहीं बना पा रहे। फिर पूरी दुनिया को ही परिवार मानने वाली बात कैसे होगी।' सुल्तानपुर में समतोला देवी और उनके स्वर्गीय पति कल्लूमल के नाम पर एक मकान है, जिसमें तीन दुकानें भी हैं। उनके तीन बेटे हैं और दो बेटियां हैं। लेकिन परिवार के सबसे बड़े बेटे कृष्ण कुमार और पैरेंट्स के बीच विवाद छिड़ गया। 2014 में कल्लूमल ने बेटे पर आरोप लगाया कि उसने उन्हें गालियां दी हैं और बदतमीजी की है। एसडीएम के पास भी ऐक्शन के लिए गए थे।

इसके बाद फैमिली कोर्ट में भी मामला पहुंचा। इस पर अदालत ने कहा कि पैरेंट्स को हर महीने 8000 रुपये कृष्ण कुमार और जनार्दन देंगे। यही नहीं मेंटनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट के तहत कृष्ण कुमार को घर से बेदखल करने की मांग समतोला देवी और उनके पति ने की थी। इस पर अदालत ने कृष्ण कुमार को आदेश दिया कि वह पैरेंट्स की परमिशन के बिना अपने घर के किसी हिस्से में अतिक्रमण नहीं कर सकते, लेकिन उन्हें निकालने का आदेश नहीं दिया। इस फैसले से असंतुष्ट पैरेंट्स ने फिर से केस फाइल किया तो कृष्ण कुमार को निकालने का आदेश जारी हो गया। लेकिन इस पर हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया और फिर फैसले को ही पलट दिया था। उच्च न्यायालय में केस चलने के दौरान ही कल्लूमल की मौत हो गई। फिर उनकी पत्नी यानी कृष्ण कुमार की मां ही उनके खिलाफ केस लड़ती रहीं।

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महिला का कहना था कि यह मकान उनके पति की खुद की खरीदी हुई संपत्ति है। इसलिए कृष्ण कुमार के पास कोई अधिकार नहीं है कि वह यहां रहे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा है। बेंच ने कहा कि सीनियर सिटिजंस ऐक्ट में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि पैरेंट्स से जुड़ी संपत्ति से बच्चों को बाहर कर दिया जाए। यही नहीं बेंच ने कहा कि ऐसा भी कोई सबूत पैरेंट्स नहीं दे पाए हैं कि कृष्ण कुमार ने उनका उत्पीड़न या फिर अपमान किया था। अदालत ने कहा कि यदि कृष्ण कुमार ऐसा करता तो फिर इस पर विचार किया जा सकता था कि उसे घर से बाहर निकाला जाए।