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जिंदा बच्ची को मरने के लिए टॉयलेट में छोड़ा, कोर्ट ने माता-पिता को सुनाई 3 साल की सजा; आरोपियों ने क्या दी दलील

गुजरात की एक अदालत ने नवजात बच्ची को त्यागने और उसे मरने के लिए छोड़ने वाले माता-पिता को तीन साल की सजा सुनाई है। पांच साल पहले दंपति ने मेहसाणा जिले में अपनी नवजात बेटी को छोड़ दिया था।

Sneha Baluni लाइव हिन्दुस्तान, मेहसाणाMon, 24 Feb 2025 02:25 PM
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जिंदा बच्ची को मरने के लिए टॉयलेट में छोड़ा, कोर्ट ने माता-पिता को सुनाई 3 साल की सजा; आरोपियों ने क्या दी दलील

गुजरात की एक अदालत ने नवजात बच्ची को त्यागने और उसे मरने के लिए छोड़ने वाले माता-पिता को तीन साल की सजा सुनाई है। पांच साल पहले दंपति ने मेहसाणा जिले में अपनी नवजात बेटी को छोड़ दिया था। दंपत्ति बच्ची को अपने पास नहीं रखना चाहते थे। नवजात की मां ने गर्भपात के लिए पांच गोलियां खाई थीं। मेहसाणा सेशन कोर्ट ने प्रकाशजी ठाकोर और उनकी पत्नी चेतना को बच्चे को छोड़ने का दोषी ठहराया और सजा सुनाई।

कोर्ट ने सजा सुनाते समय उदारता दिखाई और दंपति को अधिकतम सजा, जो इस मामले में 10 साल है, नहीं दी, क्योंकि उन्हें दो अन्य बच्चों की देखभाल करनी है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 21 फरवरी, 2020 को अंबलियासन कस्बे के स्टेशन क्षेत्र में पब्लिक टॉयलेटके पास एक नवजात बच्ची को लावारिस हालत में पाया गया था। बच्ची जीवित थी और उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां चार दिन बाद इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

टीओआई के अनुसार, लिस ने बच्ची को छोड़ने और उसकी मौत का कारण बनने के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 317, 304 और 114 के तहत लंघनाज थाने में एफआईआर दर्ज की। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों की जांच की और आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए 40 दस्तावेज पेश किए। दंपति ने अपने कृत्य का बचाव करने की कोशिश करते हुए कहा कि यह गर्भपात था और बच्ची मृत पैदा हुई थी, इसलिए उन्होंने उसे छोड़ दिया।

ट्रायल के बाद मुख्य जिला न्यायाधीश जे आर शाह ने एक निजी डॉक्टर की गवाही का हवाला दिया, जिससे दंपति कंसल्ट कर रहे थे। जज ने कहा कि महिला लड़की को जन्म नहीं देना चाहती थी, क्योंकि उसने गर्भावस्था खत्म करने के लिए पांच गोलियां ली थीं। अदालत ने आगे कहा, 'अगर लड़की मृत पैदा हुई थी, तो कोई भी माता-पिता पहले उसे डॉक्टर के पास ले जाएगा, बजाय यह मानकर घर चला जाए कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ है। बेशक यह मान लिया गया जाए कि आरोपियों ने लड़की को मरा हुआ समझा, उन्हें उसे शौचालय जैसी जगह पर छोड़ने के बजाय शव के डिस्पोजल के लिए उचित व्यवस्था करनी चाहिए थी।'

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