जनसंख्या आधारित परिसिमन होने से दक्षिण के राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व कम होने की आशंका- जस्टिस नागरत्ना
सुप्रीम कोर्ट ने जनसंख्या आधारित परिसीमन के प्रभाव पर चिंता जताई है, जिससे दक्षिणी राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व कम हो सकता है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि दक्षिण भारत में जनसंख्या वृद्धि कम हो...

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मौखिक तौर पर आशंका जाहिर की है कि ‘जनसंख्या के आधारित परिसीमन से देश की संसद में दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा क्योंकि उत्तर के राज्यों के मुकाबले दक्षिण में जनसंख्या बढ़ोतरी कम हो रही है। शीर्ष अदालत ने सरोगेसी के जरिए दूसरा बच्चा चाहने वाले दंपतियों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। जस्टिस नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान मौखिक तौर पर कहा कि ‘जनसंख्या के आधारित परिसीमन से देश की संसद में दक्षिणी राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा क्योंकि उत्तर के राज्यों के मुकाबले दक्षिण में जनसंख्या बढ़ोतरी कम हो रही है।
उन्होंने कहा कि भारती के दक्षिणी राज्यों में परिवार कम होते जा रहे हैं क्योंकि दक्षिण भारत में जन्म दर कम हो रही है, जबकि इसके मुकाबले उत्तर भारत में बहुत से लोग हैं जो लगातार बच्चे पैदा कर रहे हैं... ऐसे में अब इस बात की आशंका है कि यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो उत्तर भारत की जनसंख्या के कारण देश की संसद में दक्षिण के राज्यों की प्रतिनिधियों की संख्या कम हो जाएगी। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी सवाल किया कि याचिकाकर्ता सरोगेसी का विकल्प क्यों चुनना चाहते हैं। इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने पीठ से कहा कि वे सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 के नियम 14 के अंतर्गत आते हैं, जिसमें कहा गया है कि यदि महिला किसी ऐसी चिकित्सा स्थिति से पीड़ित है जो जीवन के लिए खतरा है, या इच्छित माता-पिता गर्भधारण करने में विफल रहे हैं, या महिला ने कई बार गर्भधारण किया है, तो वह सरोगेसी का विकल्प चुन सकती है। पीठ को बताया गया कि जहां तक याचिकाकर्ताओं का सवाल है तो दोनों दम्पतियों ने इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) की कोशिश की, लेकिन यह विफल रही। इस पर पीठ ने सवाल किया कि दंपति एक और बच्चा क्यों चाहते हैं, जबकि उनके पास पहले से ही एक जैविक बच्चा है जो पूरी तरह स्वस्थ है। इस पर अधिवक्ता ने कहा कि दोनों दम्पतियों की छोटी लड़कियां हैं और वे बस अपना परिवार बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल जीवित बच्चे के सर्वोत्तम हित में है, और यह दंपति की व्यक्तिगत पसंद का मामला है। इस पर जस्टिस नागरत्ना ने अधिवक्ता मोहिनी प्रिया से कहा कि ‘आप देखिए, फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्तियों के पहले से ही दो बच्चे हैं। उस व्यक्ति के पास दो सरोगेसी और तीसरा बच्चा है। यह एक फैशन नहीं बनना चाहिए, अब हर कोई एक बच्चा चाहता है। कोई भी दूसरा नहीं चाहता। इस पर अधिवक्ता प्रिया ने कहा कि ‘कुछ लोग हैं जो अभी भी अपने परिवार का विस्तार करना चाहते हैं... सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल, कि क्या दंपति में से किसी ने बच्चे का लिंग लड़की होने का पता लगाने के बाद गर्भपात करवाया था। प्रिया ने जवाब दिया कि दंपति ने गर्भपात नहीं करवाया था। इसके अलावा, कानून में लिंग निर्धारण की अनुमति नहीं है। अधिवक्ता ने पीठ से कहा कि ‘गर्भपात नहीं हुआ था, बच्चे को गिराना पड़ा क्योंकि उसे जानलेवा बीमारी थी। हमारे पास डॉक्टरों की पूरी रिपोर्ट है। पीठ को बताया गया कि दंपति को पहला बच्चा 2016 में पैदा हुआ था और 8 साल से वे दूसरे बच्चे की कोशिश कर रहे हैं। यह वास्तव में एक चिकित्सा समस्या है। इस पर, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ‘हम सचमुच जनसंख्या से भरे हुए हैं। एक बच्चा जैविक रूप से, दूसरा बच्चा सरोगेसी के माध्यम से...दक्षिण में आप देख सकते हैं, परिवार सिकुड़ रहे हैं। दक्षिण भारत में जन्म दर में कमी आ रही है। इस पर याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि ‘चीन में भी ऐसा ही हुआ था और जन्म दर में इतनी भारी गिरावट आई थी कि सरकार दो बच्चों की नीति को बढ़ावा दे रही है, तो जस्टिस नागरत्ना ने जवाब दिया कि भारत में ऐसा नहीं होगा क्योंकि उत्तर के राज्यों में बहुत से लोग बच्चे पैदा कर रहे हैं... यह एक आशंका है कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है, तो उत्तर भारत की जनसंख्या के कारण दक्षिण के प्रतिनिधियों की संख्या कम हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यदि आपके पास एक बच्चा है, तो दूसरा बच्चा क्यों लाएं। बड़े देश के हित को देखें। बहुत से लोगों ने बच्चे न पैदा करने का फैसला किया है। हम आपको बताते हैं कि स्थिति क्या है, ससुराल वाले पूजा-पाठ और तीर्थयात्रा के लिए जा रहे हैं और दंपति ने बच्चे न पैदा करने का फैसला किया है। हालांकि पीठ ने इस मामले में औपचारिक रूप से सरकार को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि इसी तरह के अन्य मामले के साथ इस पर भी विचार किया जाएगा।
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