Supreme Court Calls for Regulation of Obscenity on OTT Platforms and Social Media संशोधित... ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अश्लीलता गंभीर मुद्दा, इसके नियमन की है आवश्यकता- सुप्रीम कोर्ट, Delhi Hindi News - Hindustan
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संशोधित... ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अश्लीलता गंभीर मुद्दा, इसके नियमन की है आवश्यकता- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने ओटीटी प्लेटफार्मों और सोशल मीडिया पर अश्लीलता को गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि इसकी रोकथाम के लिए कुछ नियमन की आवश्यकता है। जस्टिस गवई ने कहा कि यह मामला कार्यपालिका और विधायिका के...

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 28 April 2025 05:55 PM
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संशोधित... ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अश्लीलता गंभीर मुद्दा, इसके नियमन की है आवश्यकता- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर अश्लीलता को गंभीर मुद्दा और चिंताजनक बताते हुए कहा कि कुछ नियमन की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने सोशल मीडिया मंचों और ओटीटी पर अश्लील सामग्री के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए सरकार को उचित दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है।

जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि है कि याचिका एक बड़ी चिंता को उजागर करती है और इस मुद्दे के समाधान के लिए कार्यपालिका और विधायिका को समुचित कदम उठाने हैं, क्योंकि यह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। जस्टिस गवई ने ‘हाल ही में न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र हड़पने के लगे आरोपों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह मामला हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है। उन्होंने कहा कि वैसे भी, हम (न्यायपालिका) पर ढ़ेर सारे आरोप लग रहे हैं कि हम विधायिका और कार्यपालिक की शक्तियों का अतिक्रमण कर रहे हैं। इसके साथ ही पीठ ने केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षकारों को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर जवाब मांगा है। पीठ मामले में ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, ऑल्ट बालाजी, उल्लू डिजिटल, मुबी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स कॉर्प, गूगल, मेटा इंक और एप्पल को नोटिस जारी किया। जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से कहा कि ‘नेटफ्लिक्स आदि को भी यहां रहने दें, उनकी भी सामाजिक जिम्मेदारी है। इसके साथ पीठ ने इस मुद्दे पर पहले से लंबित याचिकाओं के साथ इस याचिका को भी सुनवाई के लिए संलग्न कर दिया।

हम कुछ ऐसा लेकर आएंगे जो अभिव्यक्ति की आजादी को संतुलित करेगा- केंद्र

मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत से कहा कि सरकार इस याचिका को वाद-प्रतिवाद के रूप में नहीं लेगी। उन्होंने पीठ से कहा कि ‘कृपया यहां इस पर गौर करें, हम कुछ ऐसा लेकर आएंगे, जो अभिव्यक्ति की आजादी को संतुलित करेगा और जिसमें संविधान के अनुच्छेद 19 (2) का भी ध्यान रखा जाएगा। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने पीठ से कहा कि ‘सोशल मीडिया मंचों और ओटीटी पर कुछ सामग्री न सिर्फ अश्लील होती हैं बल्कि विकृत भी होती है। उन्होंने कहा कि वैसे तो इस बारे में कुछ नियमन अस्तित्व में हैं, लेकिन कुछ और नियमन बनाने पर विचार किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पीठ से कहा कि यह मामला कोई ‘प्रतिकूल मुकदमा नहीं है, बल्कि यह वास्तविक चिंता को उजागर करता है। उन्होंने पीठ के समक्ष सोशल मीडिया पर बिना किसी नियमन या जांच के प्रसारित हो रही सामग्री के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) मंचों पर ऐसी सामग्री के प्रसारण पर गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि ऐसी सामग्री बेरोक-टोक दिखायी जा रही है। इस पर जस्टिस गवई ने सॉलिसिटर जरनल मेहता से कहा कि आपको कुछ करना चाहिए। इस पर मेहता ने कहा कि अब बच्चों का इस तरह की सामग्री से अधिक पाला पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि नियमित कार्यक्रमों में दिखाई जाने वाली कुछ चीजें, फिर चाहे वह भाषा हो या विषय-वस्तु... न केवल अश्लील, बल्कि विकृत भी होती हैं। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ओटीटी पर कुछ कार्यक्रम तो इतने विकृत होते हैं कि दो सम्मानित पुरुष भी एक साथ बैठकर नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि एकमात्र शर्त यह है कि ऐसे कार्यक्रम 18 साल से अधिक उम्र के दर्शकों के लिए हैं, लेकिन इन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इस पर जस्टिस गवई ने बच्चों के स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने का जिक्र किया। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वे (बच्चे) इस्तेमाल में माहिर हैं। यह अच्छी बात है, बशर्ते वे सही वेबसाइट पर जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश उदय माहुरकर एवं अन्य की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन द्वारा दाखिल याचिका पर यह आदेश दिया है।

उपराष्ट्रपति और भाजपा सांसद ने लगाए थे न्यायपालिका पर आरोप

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने पिछली सुनवाई पर ही कहा था कि यह मामला कार्यपालिका/ विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है। सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई ने ‘न्यायपालिका के खिलाफ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की टिप्पणियों की तरफ इशारा किया। उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायपालिका पर राष्ट्रपति के लिए फैसले लेने की समयसीमा निर्धारित करने को लेकर सवाल उठाया था। उन्होंने न्यायपालिका पर ‘सुपर संसद के रूप में काम करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल नहीं दाग सकता। वहीं, भाजपा सांसद दुबे ने कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।

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