बांके बिहारी कॉरिडोर के लिए मंदिर कोष के इस्तेमाल की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को श्रीबांके बिहारी मंदिर से प्राप्त धन का उपयोग कॉरिडोर विकास के लिए पांच एकड़ भूमि के अधिग्रहण में करने की अनुमति दी। इस निर्णय में कहा गया कि अधिग्रहित जमीन देवता के नाम...

नई दिल्ली, विशेष संवाददाता सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। इसके तहत यूपी सरकार श्रीबांके बिहारी मंदिर से प्राप्त धन का उपयोग कॉरिडोर विकास के लिए पांच एकड़ भूमि के अधिग्रहण में कर सकेगी। शीर्ष अदालत ने मंदिर निधि का इस्तेमाल इस शर्त पर करने की अनुमति दी है कि अधिग्रहीत जमीन देवता के नाम पर पंजीकृत होगी। जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस एससी शर्मा की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को संशोधित करते हुए राज्य सरकार को कॉरिडोर परियोजना के लिए मंदिर निधि के इस्तेमाल की इजाजत दी है। हाईकोर्ट ने मंदिर के आसपास की भूमि के अधिग्रहण के लिए सरकार को मंदिर के धन के उपयोग पर रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि कॉरिडोर के लिए सरकार की 500 करोड़ रुपये की विकास योजना की जांच करने के बाद मंदिर की सावधि जमा के उपयोग की अनुमति दी। सरकार ने कॉरिडोर विकसित करने के लिए 500 करोड़ से अधिक की लागत वहन करने का बीड़ा उठाया है। हालांकि, सरकार ने भूमि खरीदने के लिए मंदिर के धन के उपयोग का प्रस्ताव रखा था, जिसे हाईकोर्ट ने 8 नवंबर, 2023 को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। योजना पूरी तरह लागू करने की अनुमति शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि हम राज्य सरकार को इस योजना को पूरी तरह से लागू करने की अनुमति देते हैं। बांके बिहारीजी ट्रस्ट के पास देवता/मंदिर के नाम पर सावधि जमा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की राय है कि सरकार को प्रस्तावित भूमि का अधिग्रहण करने के लिए सावधि जमा में पड़ी रकम के उपयोग की अनुमति दी जाए। भगदड़ के बाद कॉरिडोर पर निर्णय कॉरिडोर के लिए सरकार की विकास परियोजना को कोर्ट की मंजूरी विशेष रूप से बांके बिहारी मंदिर में 2022 की भगदड़ जैसी घटना के आलोक में आई है। उस घटना ने ब्रज क्षेत्र के मंदिरों में व्यापक कुप्रबंधन पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया और इस बात पर जोर दिया कि प्रभावी मंदिर प्रशासन न केवल एक कानूनी आवश्यकता है, बल्कि सार्वजनिक और आध्यात्मिक कल्याण का भी मामला है। मथुरा-वृंदावन के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत : सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उप्र. ब्रज योजना और विकास बोर्ड अधिनियम, 2015 का हवाला दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने में सरकार की भूमिका को स्वीकार किया कि पार्किंग, भक्तों के लिए आश्रय, शौचालय, सुरक्षा चौकियां और अन्य सुविधाएं विकसित करके बुनियादी ढांचे, सुरक्षा और विरासत संरक्षण को प्राथमिकता दी जाती है। कहा कि मथुरा और वृंदावन में आरामदायक तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढांचे में तत्काल सुधार की आवश्यकता है। कहा कि धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व से भरपूर मथुरा और वृंदावन हर साल लाखों तीर्थयात्रियों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, इसलिए इस आमद को समायोजित करने के लिए, चौड़ी सड़कें, पार्किंग, धर्मशालाएं, अस्पताल और सार्वजनिक सुविधाएं, जैसे बेहतर बुनियादी ढांचे की तत्काल जरूरत है। सामूहिक प्रयास किए जाएं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मथुरा और वृंदावन ऐतिहासिक शहर हैं और इनका वर्णन अधिकांश धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। पीठ ने कहा कि इनका विकास किसी एक पक्षकार द्वारा नहीं किया जा सकता है। चाहे वह मंदिरों का प्रबंधन करने वाले विभिन्न ट्रस्ट हों या फिर सरकार। इसके लिए सरकार, ट्रस्ट, मथुरा और वृंदावन के लोगों और अन्य एजेंसियों द्वारा सामूहिक प्रयास किया जाना चाहिए। यमुना पर ध्यान देने की जरूरत पीठ ने कहा कि यमुना को हिंदू धर्म में देवी माना जाता है और मृत्यु के देवता यम की बहन के रूप में पूजनीय माना जाता है। उस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कहा कि यमुना को पवित्र करने वाला माना जाता है और उसमें डुबकी लगाने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं, ऐसे में काशी घाट और विश्राम घाट के विस्तार और जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। इसी तरह फूलों की झील यानी कुसुम सरोवर जो गोवर्धन पर्वत के पास स्थित है, उसका भी सौंदर्यीकरण करने की आवश्यकता है।
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