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एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर क्रूरता नहीं; दिल्ली हाईकोर्ट ने पति को दी जमानत, क्या था मामला?

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि किसी शख्स का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तब तक क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आता जब तक यह साबित न हो जाए कि…

Krishna Bihari Singh लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, हेमलता कौशिकTue, 13 May 2025 09:03 PM
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एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर क्रूरता नहीं; दिल्ली हाईकोर्ट ने पति को दी जमानत, क्या था मामला?

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी व्यक्ति का विवाहेतर संबंध यानी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तब तक क्रूरता या आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जाता, जब तक यह साबित न हो जाए कि इससे पत्नी को परेशान या पीड़ा हुई है। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने यह टिप्पणी दहेज हत्या के आरोपी पति को जमानत देते हुए की है।

पीठ ने कहा कि विवाहेतर संबंध दहेज हत्या के लिए पति को फंसाने का आधार नहीं है। पीठ ने कहा कि यदि मृतक महिला की मौत का कारण विवाहेतर संबध थे तो इसमें दहेज की मांग बीच में कहां से आ सकती है। किसी एक आरोप पर ही विचार किया जाना उचित है। विवाहेतर संबंध व दहेज की मांग के बीच साक्ष्यों पर आधारित संबंध साबित किया जाना चाहिए।

पेश मामले में दंपति की शादी को करीब पांच साल हुए थे। 18 मार्च, 2024 को पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी। पति को महिला की ससुराल में अप्राकृतिक मौत के बाद आत्महत्या के लिए उकसाना के अलावा धारा दहेज हत्या व दहेज उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अभियोजन पक्ष का कहना था कि मृतक के परिवार के अनुसार आरोपी पति एक महिला के साथ विवाहेतर संबंध में था।

इसके समर्थन में कुछ वीडियो और चैट रिकॉर्ड का हवाला दिया गया है लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोप का क्रम उचित नहीं है। हालांकि पीठ ने यह भी कहा कि मामले में आरोपपत्र दायर किया जा चुका है। ऐसे में आरोपी को जेल में रखने से कोई फायदा नहीं है। पीठ ने आरोपी पति को सशर्त जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं।

पीठ ने इस मामले में आरोपी पति की जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा कि जब तक महिला जीवित थी, उस दौरान महिला या उसके मायके वालों की तरफ से दहेज उत्पीड़न की शिकायत नहीं की गई थी। इसलिए इस तरह के आरोप भरोसे के योग्य नहीं हैं। वहीं पीठ ने कहा कि सत्र अदालत मामले में पूरी सुनवाई के बाद ही अंतिम निर्णय सुनाएगी। उनकी टिप्पणी मुख्य मामले पर लागू नहीं होती।