गुंडों का समूह हैं बैंक के वसूली एजेंट, लोन चुकाने के बावजूद बस नहीं लौटाने पर भड़का सुप्रीम कोर्ट
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने देबाशीष बोसु रॉय चौधरी नामक व्यक्ति को मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। पीठ ने बैंक ऑफ इंडिया को वसूली एजेंट से यह राशि वसूलने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने एक बैंक की वसूली एजेंट फर्म को "गुंडों का समूह" करार दिया। कोर्ट ने कहा कि बैंक की इस वसूली फर्म ने लोन राशि का एकमुश्त निपटान करने के बावजूद एक व्यक्ति से जब्त किया गया वाहन उसे वापस नहीं किया। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस को दो महीने के भीतर कंपनी के खिलाफ आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने पीड़ित देवाशीष बसु रॉय चौधरी को मुआवजा देने का निर्देश दिया। पीठ ने बैंक ऑफ इंडिया को रिकवरी एजेंट से राशि वसूलने का भी निर्देश दिया। चौधरी ने कोलकाता में बस चलाने के इरादे से 15.15 लाख रुपये का ऋण लिया था। पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों और याचिकाकर्ताओं द्वारा रखी गयी दलीलों के मद्देनजर हम पाते हैं कि प्रतिवादी संख्या-चार (एक रिकवरी एजेंट) वास्तव में गुंडों का एक समूह है, जो याचिकाकर्ता-बैंक की ओर से ऋण लेने वाले लोगों को परेशान करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल करता है।’’
इसने इस बात का भी संज्ञान लिया कि वाहन को उचित स्थिति में वापस न करने के लिए रिकवरी एजेंट कंपनी ‘‘मेसर्स सिटी इन्वेस्टिगेशन एंड डिटेक्टिव’’ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पीठ ने कहा, ‘‘संबंधित क्षेत्र के पुलिस आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406, 420 और 471 के तहत पश्चिम बंगाल के पुलिस स्टेशन सोदेपुर में पांच जुलाई, 2023 को दर्ज प्राथमिकी की जांच बिना किसी देरी के तार्किक निष्कर्ष पर ले जाए और दो महीने की अवधि के भीतर आरोप-पत्र दायर किया जाए।’’
पीठ ने आगे निर्देश दिया, ‘‘यदि प्रतिवादी संख्या-चार को वसूली एजेंट के रूप में कार्य करने के लिए किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा कोई लाइसेंस/प्राधिकरण पत्र दिया गया है, तो याचिकाकर्ता-बैंक को उस प्राधिकारी को ऐसी अनुमति/प्राधिकरण पत्र रद्द करने के संबंध में एक अलग शिकायत करने का निर्देश दिया जाता है।’’ शीर्ष अदालत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के 16 मई के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसके तहत बैंक को वाहन वापस न करने के अपने निर्णय के लिए चौधरी को पांच लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने के लिए कहा गया था। उच्च न्यायालय ने लोन लेने वाले शख्स को अधिक मुआवजे के लिए सिविल न्यायालय में जाने की स्वतंत्रता दी थी।
चौधरी ने 15.15 लाख रुपये के लोन के लिए बैंक से संपर्क किया था और उनकी साख की संतुष्टि के बाद, उनका ऋण स्वीकृत कर दिया गया था और दिसंबर 2014 से 26,502 रुपये की 84 समान मासिक किस्तों में ब्याज सहित चुकाया जाना था। संबंधित वाहन (बस) बैंक के पास बंधक था।
बैंक ने दलील दी कि जनवरी 2018 से चौधरी मासिक किस्त का भुगतान नहीं कर पा रहे थे और 31 मई, 2018 को उनके खाते को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति यानी एनपीए घोषित कर दिया गया। एनपीए की तारीख तक ऋण की बकाया राशि 10.23 लाख रुपये थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि बैंक ने मेसर्स सिटी इन्वेस्टिगेशन एंड डिटेक्टिव यानी तथाकथित रिकवरी एजेंट की सेवाएं लीं, जिन्हें बैंक की ओर से चौधरी के वाहन को जब्त करने में सरकारी अधिकारियों द्वारा सहायता प्रदान की गई थी।
बैंक ने हाईकोर्ट में दावा किया कि 31 जुलाई 2019 तक वाहन का बाजार मूल्य केवल 2.37 लाख रुपये था और संकटकालीन बिक्री मूल्य केवल 1.66 लाख रुपये था। मार्च 2021 में, चौधरी ने पूरे बकाया के लिए 1.8 लाख रुपये के वन-टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) के लिए बैंक से संपर्क किया। बैंक ने ओटीएस प्रस्ताव को स्वीकार करने के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की, हालांकि यह बकाया राशि का केवल 17.75 प्रतिशत था।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, "बैंक के अधिकारियों को पता था कि बैंक और बोस के बीच 1,80,000 रुपये की मामूली राशि के लिए एकमुश्त समझौता (ओटीएस) किया गया था। उक्त राशि बोस द्वारा बैंक में जमा की गई थी।" न्यायालय ने कहा कि वाहन को बोस को नहीं सौंपा गया, जबकि बैंक ओटीएस स्वीकार करने के बाद ऐसा करने के लिए बाध्य था। पीठ ने कहा, "बहुत प्रयासों के बाद वाहन/बस बरामद कर ली गई, लेकिन उस समय तक इसका चेसिस नंबर और इंजन नंबर बदल दिया गया था और कुछ स्पेयर पार्ट्स भी निकाल लिए गए थे। साथ ही, वाहन चालू हालत में भी नहीं था।"
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