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क्या है ताशकंद समझौता, इसे भी रद्द कर सकता है पाकिस्तान; भारत को फायदा या नुकसान? समझिए

शिमला समझौते के निलंबन ने भारत-PAK संबंधों को नए मोड़ पर ला दिया। अगर पाकिस्तान ताशकंद समझौते को रद्द करता है, तो भारत हाजी पीर जैसे रणनीतिक क्षेत्रों पर दावा कर सकता है, जो सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 25 April 2025 10:13 AM
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क्या है ताशकंद समझौता, इसे भी रद्द कर सकता है पाकिस्तान; भारत को फायदा या नुकसान? समझिए

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर है। भारत ने इस हमले के जवाब में कड़े कदम उठाए हैं, जिसमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना और तीन पाकिस्तानी सैन्य राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश देना शामिल है। जवाब में, पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते को निलंबित करने का फैसला किया है, और अब खबरें हैं कि वह 1966 के ताशकंद समझौते को भी रद्द कर सकता है। अगर पाकिस्तान ताशकंद संधि को भी निलंबित करता है तो इससे भारत को फायदा होगा या नुकसान? आइए विस्तार से समझते हैं।

क्या है ताशकंद समझौता?

ताशकंद समझौता 10 जनवरी, 1966 को भारत और पाकिस्तान के बीच उज्बेकिस्तान के ताशकंद में साइन की गई एक शांति संधि थी। यह समझौता 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को समाप्त करने के लिए हुआ, जिसकी मध्यस्थता सोवियत संघ के प्रीमियर अलेक्सी कोसिगिन ने की थी। इस समझौते पर भारत की ओर से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए।

ताशकंद समझौते में क्या-क्या लिखा है?

  1. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि दोनों पक्ष भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे पड़ोसी संबंध बनाने के लिए सभी प्रयास करेंगे और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से निपटाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हैं। वे इस बात पर भी सहमत हैं कि भारत-पाकिस्तान उपमहाद्वीप में शांति उनके क्षेत्र और लोगों के हित में नहीं है, और इसके खिलाफ जम्मू-कश्मीर पर चर्चा हुई, जिसमें दोनों पक्षों ने अपने-अपने रुख को स्पष्ट किया।
  2. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि 25 फरवरी 1966 तक दोनों देशों के सशस्त्र बल 5 अगस्त 1965 से पहले की अपनी स्थिति में वापस चले जाएंगे और दोनों पक्ष युद्धविराम की शर्तों का पालन करेंगे।
  3. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत पर आधारित होंगे।
  4. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ किसी भी तरह का प्रचार बंद करेंगे और ऐसा प्रचार करेंगे जो दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा दे।
  5. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त और पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त अपने पदों पर लौट आएंगे और दोनों देश 1961 के वियना सम्मेलन के अनुसार राजनयिक संबंधों को सामान्य करेंगे।
  6. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि वे आर्थिक और व्यापारिक संबंधों, संचार, साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बहाल करने और इनके कार्यान्वयन के लिए उपायों पर विचार करेंगे।
  7. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि वे अपने-अपने अधिकारियों को युद्धबंदियों की वापसी के लिए निर्देश देंगे।
  8. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि दोनों पक्ष शरणार्थियों और अवैध अप्रवासियों से संबंधित समस्याओं पर चर्चा जारी रखेंगे। वे इस बात पर भी सहमत हैं कि दोनों पक्ष लोगों के पलायन से बचने के लिए परिस्थितियां बनाएंगे। इसके अलावा, वे संपत्ति और परिसंपत्तियों की वापसी पर भी चर्चा करेंगे जो एक-दूसरे के द्वारा अपने कब्जे में ली गई हैं।
  9. भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हैं कि दोनों पक्ष उच्चतम और अन्य स्तरों पर मुलाकातें जारी रखेंगे और दोनों देशों के आपसी हित के मामलों पर चर्चा करेंगे। दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हैं कि आगे के कदमों को तय करने और संयुक्त भारत-पाकिस्तान निकाय स्थापित करने की आवश्यकता होगी।

लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मौत, समझौते पर विवाद और आलोचना

बता दें कि यह वही समझौता है जिसके अगले ही दिन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई थी। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु 11 जनवरी 1966 को ताशकंद, उज्बेकिस्तान में रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी। वे 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए वहां गए थे। आधिकारिक तौर पर उनकी मृत्यु का कारण दिल का दौरा बताया गया, लेकिन उनकी अचानक मृत्यु ने कई सवाल खड़े किए। उनकी मृत्यु के आसपास की परिस्थितियों, जैसे पोस्टमॉर्टम न होना और परिवार की शंकाओं ने, आज भी इसे एक विवादास्पद विषय बनाए रखा है।

ताशकंद समझौते की बात करें तो इसको भारत में व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से हाजी पीर दर्रे जैसे रणनीतिक क्षेत्रों को वापस करने के फैसले के लिए। स्वतंत्रता सेनानी व केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने इस समझौते के विरोध में इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इसे भारत की रणनीतिक हार बताया था। उन्होंने तर्क दिया कि पाकिस्तान ने समझौते का गलत अर्थ निकाला, खासकर कश्मीर में हस्तक्षेप न करने की शर्त को नजरअंदाज किया।

पाकिस्तान द्वारा ताशकंद समझौता निलंबन की संभावना

पाकिस्तान का शिमला समझौते को निलंबित करने का फैसला उसके बौखलाहट का परिणाम माना जा रहा है। शिमला समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बनाए रखने और नियंत्रण रेखा (LoC) को स्थायी सीमा के रूप में मान्यता देने का आधार था। इसके निलंबन से पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश करेगा। लेकिन भारत की कूटनीति मजबूत है और ऐसा होना लगभग नामुमकिन है। अब यदि पाकिस्तान ताशकंद समझौते को भी निलंबित करता है, तो यह एक और बड़ा कदम होगा, जो दोनों देशों के बीच युद्ध-विरोधी और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों को कमजोर करेगा।

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भारत के लिए संभावित लाभ

यदि पाकिस्तान ताशकंद समझौते को निलंबित करता है, तो भारत को कई सामरिक, राजनयिक और क्षेत्रीय लाभ हो सकते हैं।

1. सामरिक स्वतंत्रता और LoC पर कार्रवाई

ताशकंद समझौते का एक प्रमुख पहलू युद्ध-पूर्व स्थिति को बनाए रखना और LoC पर स्थिरता सुनिश्चित करना था। यदि यह समझौता निलंबित होता है, तो भारत को LoC पर अपनी सैन्य रणनीति को और आक्रामक बनाने का मौका मिल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों के खिलाफ कार्रवाई करने की स्वतंत्रता मिल सकती है। शिमला समझौते के निलंबन के बाद भारत अब LoC को स्थायी सीमा के रूप में मानने की बाध्यता को खारिज कर सकता है। ताशकंद समझौते का रद्द होना इस रुख को और मजबूत करेगा।

2. कश्मीर मुद्दे पर भारत का रुख मजबूत

ताशकंद समझौता कश्मीर को द्विपक्षीय वार्ता के दायरे में रखने का आधार था। इसके निलंबन से पाकिस्तान कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन भारत की मौजूदा वैश्विक स्थिति और कूटनीतिक ताकत इसे विफल कर सकती है। भारत लगातार कहता रहा है कि कश्मीर उसका अभिन्न हिस्सा है, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने से बचता है। ताशकंद समझौते का निलंबन भारत को यह दावा करने का मौका देगा कि पाकिस्तान शांति के लिए प्रतिबद्ध नहीं है, जिससे भारत की स्थिति और मजबूत होगी।

3. आर्थिक और जल संसाधन दबाव

भारत ने पहले ही सिंधु जल संधि को निलंबित कर पाकिस्तान पर आर्थिक दबाव बढ़ा दिया है। ताशकंद समझौते में आर्थिक और व्यापारिक संबंधों की बहाली का प्रावधान था। इसका निलंबन भारत को पाकिस्तान के साथ व्यापार और आर्थिक सहयोग को पूरी तरह बंद करने का अवसर देगा। इससे पाकिस्तान की पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़ेगा, क्योंकि वह भारत से आयात और सीमा व्यापार पर निर्भर है।

4. अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर सवाल

पाकिस्तान का समझौतों को एकतरफा निलंबित करने का कदम अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी विश्वसनीयता को कमजोर करेगा। ताशकंद समझौता सोवियत संघ (अब रूस) की मध्यस्थता में हुआ था, और इसका निलंबन रूस जैसे देशों के साथ पाकिस्तान के संबंधों को प्रभावित कर सकता है। भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर पाकिस्तान को एक "अविश्वसनीय" और "आतंकवाद-प्रायोजक" राष्ट्र के रूप में पेश कर सकता है, जिससे वैश्विक मंचों पर उसका अलगाव बढ़ेगा।

5. क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की नेतृत्वकारी भूमिका

ताशकंद समझौते का निलंबन दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह भारत को क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर देगा। भारत पहले ही सार्क जैसे मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफल रहा है। इस स्थिति में भारत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत कर सकता है, जिससे क्षेत्र में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका बढ़ेगी।

पाकिस्तान की बढ़ेगी खीझ

बौखलाहट में पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को और बढ़ा सकता है, जिससे भारत को आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। समझौते के निलंबन से LoC पर सैन्य तनाव बढ़ सकता है, जिससे सीमित संघर्ष या पूर्ण युद्ध का खतरा पैदा हो सकता है।

ताशकंद समझौता और शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान संबंधों के दो महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं, जिन्होंने युद्ध के बाद शांति स्थापित करने और कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय बनाए रखने में भूमिका निभाई। पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को निलंबित करने और ताशकंद समझौते को रद्द करने की संभावना उसके लिए जोखिम पैदा कर सकती है। भारत के लिए, यह स्थिति कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर हो सकता है।

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