Hindi Newsदेश न्यूज़Cash for vote scandal When BJP MPs waved bundles of notes in the Lok Sabha Congress embarrassed

जब भरी लोकसभा में भाजपा सांसदों ने लहराए थे नोटों के बंडल, शर्मसार हुई थी कांग्रेस; 'कैश फॉर वोट' कांड समझिए

  • 2008 में तत्कालीन कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने संसद में विश्वास प्रस्ताव जीता, लेकिन इस दौरान भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार कर देने वाला 'कैश फॉर वोट' घोटाला सुर्खियों में रहा।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीFri, 6 Dec 2024 04:16 PM
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जब भरी लोकसभा में भाजपा सांसदों ने लहराए थे नोटों के बंडल, शर्मसार हुई थी कांग्रेस; 'कैश फॉर वोट' कांड समझिए

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को बताया कि बृहस्पतिवार को उच्च सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद एंटी सेबोटाज टीम (तोड़फोड़ निरोधक दस्ता) को नियमित जांच के दौरान कांग्रेस के सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी की सीट के पास 500 रुपये के नोटों की गड्डी मिली। इसे लेकर कुछ देर सदन में हंगामा हुआ और सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के सदस्यों में तीखी नोकझोंक भी हुई। सिंघवी ने इस बात पर हैरानी जताई और कहा कि इस तरह के मामलों पर राजनीति होना हास्यास्पद है। उन्होंने यह भी कहा कि वह सदन में जाते हैं तो उनके पास 500 रुपये का एक नोट होता है और अगर सुरक्षा से जुड़ा कोई विषय है तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए।

क्या है संसद में नकदी ले जाने के नियम?

संसद भवन में कैश या व्यक्तिगत सामान लाने के संबंध में सख्त दिशानिर्देश हैं। हालांकि, सांसदों के लिए धन ले जाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, लेकिन संसद के भीतर बड़ी मात्रा में कैश दिखाने या इस्तेमाल पर सख्त रोक है। 2008 के "नोट के बदले वोट" घोटाले के बाद यह नियम और कड़े कर दिए गए, जब लोकसभा में सांसदों को महत्वपूर्ण विश्वास मत के दौरान नकदी के बंडल दिखाते हुए देखा गया था। इस घटना ने व्यापक विवाद खड़ा किया और संसद की गरिमा बनाए रखने के लिए कड़े दिशानिर्देश बनाए गए।

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यूपीए सरकार का 2008 का विश्वास प्रस्ताव और कैश फॉर वोट स्कैम

2008 में तत्कालीन कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने संसद में विश्वास प्रस्ताव जीता, लेकिन इस दौरान भारतीय लोकतंत्र को शर्मसार कर देने वाला 'कैश फॉर वोट' घोटाला सुर्खियों में रहा। इंडो-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर वाम मोर्चा ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार अल्पमत में आ गई। 543 सदस्यीय लोकसभा में यूपीए को बहुमत के लिए 272 सांसदों की आवश्यकता थी, जबकि उसके पास केवल 226 सांसद थे। ऐसे में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (39 सांसद) का समर्थन निर्णायक साबित हुआ। इस बीच, वाम दलों ने लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी से इस्तीफा देने की मांग की, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप, चटर्जी को सीपीआई(एम) से निष्कासित कर दिया गया।

विश्वास प्रस्ताव और घोटाले का खुलासा

22 जुलाई 2008 को विश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान यूपीए ने 275 मतों के साथ जीत दर्ज की, जबकि 256 मत विरोध में पड़े। इसी बीच बीजेपी के तीन सांसद – अशोक अर्जल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा – ने भरी लोकसभा में नोटों के बंडल लहराते हुए दावा किया कि यह उन्हें यूपीए सरकार द्वारा रिश्वत के रूप में दिए गए थे। बीजेपी ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस्तीफे की मांग की। पार्टी ने दावा किया कि उनके पास इस लेन-देन का वीडियो सबूत है।

जांच और गिरफ्तारी

घटना के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने दिल्ली पुलिस को मामले की जांच के आदेश दिए। जांच के तहत बीजेपी ने अपने सांसदों द्वारा रिश्वत लिए जाने के वीडियो और ट्रांसक्रिप्ट्स पेश किए। पार्टी ने दावा किया कि उसके वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के एक सहयोगी सुधींद्र कुलकर्णी ने मनमोहन सिंह सरकार को बेनकाब करने के लिए तीनों सांसदों को रिश्वत देने के लिए सपा के राज्यसभा सांसद अमर सिंह को शामिल किया था। इसने यह भी दावा किया कि कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अहमद पटेल भी इसमें शामिल थे।

हालांकि, 2008 में संसद की एक जांच समिति ने अमर सिंह और अहमद पटेल के खिलाफ कोई सबूत नहीं पाया। लेकिन, समिति ने अमर सिंह के सहयोगी संजीव सक्सेना, सोहेल हिंदुस्तानी और पत्रकार सुधींद्र कुलकर्णी की भूमिका की जांच की सिफारिश की। 2011 में सक्सेना और हिंदुस्तानी को गिरफ्तार किया गया। कुलकर्णी ने खुद को 'व्हिसलब्लोअर' बताते हुए कहा कि उन्होंने भ्रष्टाचार उजागर करने के लिए पूरी योजना बनाई थी।

पुलिस ने दावा किया कि उसके पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि सक्सेना ने तीन भाजपा सांसदों को पैसे पहुंचाए थे और आरोप लगाया कि उसने उन्हें गुमराह किया था। पुलिस ने यह भी कहा कि उन्होंने भगोरा और कुलस्ते से पूछताछ की थी, जो अब सांसद नहीं हैं। पुलिस ने बताया कि वह अमर सिंह और अर्गल से पूछताछ नहीं कर सकी क्योंकि वे अभी सांसद थे। अगस्त 2011 में, पुलिस ने अमर सिंह, सक्सेना, हिंदुस्तानी, कुलकर्णी, कुलस्ते और भगोरा के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। सितंबर 2011 में कुलकर्णी को कथित तौर पर इस ऑपरेशन की “मास्टरमाइंडिंग” के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने दावा किया कि वह “एक मुखबिर” थे, जो भ्रष्टाचार को उजागर करना चाहते थे, उन्होंने भाजपा सांसदों को रिश्वत देने के लिए सपा के अमर सिंह से संपर्क किया था, और फिर कथित रिश्वत देने की घटना को एक टीवी चैनल से फिल्माया था। अमर सिंह को घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए उसी महीने गिरफ्तार किया गया था।

अदालती फैसला

22 नवंबर, 2013 को दिल्ली की एक अदालत ने अमर सिंह, कुलस्ते, अर्गल और भगोरा के बयानों को स्वीकार कर लिया कि उनकी हरकतें “व्हिसलब्लोअर” के तौर पर थीं, और उन्हें क्लीन चिट दे दी। इसने कुलकर्णी और हिंदुस्तानी को भी बरी कर दिया। मई 2015 में, मामले में मूल रूप से आरोपी सात लोगों में से आखिरी आरोपी सक्सेना को भी बरी कर दिया गया।

घटना के बाद के प्रभाव

फग्गन सिंह कुलस्ते: वर्तमान में मंडला से सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं।

अशोक अर्गल: 2014 और 2019 में टिकट न मिलने के बाद सक्रिय राजनीति से दूर।

महावीर भगोरा: 2021 में कोविड-19 के कारण निधन।

अमर सिंह: 2020 में निधन।

सुधींद्र कुलकर्णी: वर्तमान में बीजेपी के आलोचक।

नकदी का क्या हुआ?

2015 में दिल्ली की अदालत ने लोकसभा में लहराए गए 1 करोड़ रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करने का आदेश दिया। कैश फॉर वोट घोटाला भारतीय राजनीति में नैतिकता के संकट की एक मिसाल है, जिसने संसदीय परंपराओं पर सवाल खड़े किए।

सांसद क्या-क्या ला सकते हैं?

सांसदों को अपनी विधायी जिम्मेदारियों के लिए आवश्यक वस्तुएं लाने की अनुमति है, जैसे:

दस्तावेज: महत्वपूर्ण कागजात, नोट्स, रिपोर्ट्स, या विधेयक।

भाषण सामग्री: बहस या चर्चा में भाग लेने के लिए तैयार सामग्री।

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस: मोबाइल फोन, टैबलेट, और लैपटॉप, बशर्ते वे अनुमति लेकर और जिम्मेदारी से इस्तेमाल किए जाएं।

व्यक्तिगत सामान: छोटे पर्स, स्टेशनरी, या अन्य आवश्यक वस्तुएं।

हल्के नाश्ते: पानी और हल्के नाश्ते की अनुमति है।

किन चीजों पर है प्रतिबंध?

संसद की गरिमा और कार्यवाही की पवित्रता को बनाए रखने के लिए कुछ चीजों पर स्पष्ट प्रतिबंध है:

नगदी का प्रदर्शन: बड़ी धनराशि, विशेष रूप से नकदी के बंडल।

असभ्य सामग्री: कोई भी सामग्री जो संसद की गरिमा का अपमान करती हो।

प्रदर्शन सामग्री: तख्तियां, पोस्टर, या बैनर।

अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: बिना अनुमति के रिकॉर्डिंग या फोटो खींचने वाले उपकरण।

नियमों के उल्लंघन पर क्या होती है कार्रवाई?

यदि किसी सांसद को प्रतिबंधित वस्तुएं लाते हुए पाया जाता है या वह संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला आचरण करता है, तो उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। संसद की अनुशासन समिति मामले की जांच कर सकती है, और दोषी पाए जाने पर सांसद को निलंबन या अन्य दंड का सामना करना पड़ सकता है।

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