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म्यांमार की मदद के लिए भारत ने शुरू किया 'ऑपरेशन ब्रह्मा', यांगून के CM को सौंपी पहली खेप

  • म्यांमार में शुक्रवार को आए 7.7 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप और इसके बाद 6.4 तीव्रता के झटके ने भारी तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा में 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 29 March 2025 01:18 PM
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म्यांमार की मदद के लिए भारत ने शुरू किया 'ऑपरेशन ब्रह्मा', यांगून के CM को सौंपी पहली खेप

भारत ने म्यांमार में आए विनाशकारी भूकंप के बाद मानवीय सहायता के लिए 'ऑपरेशन ब्रह्मा' शुरू किया है। इस अभियान के तहत, भारतीय वायु सेना के एक विमान ने शनिवार सुबह लगभग 15 टन राहत सामग्री म्यांमार के यांगून हवाई अड्डे पर पहुंचाई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि यह पहली खेप यांगून के मुख्यमंत्री यू सोए थिन को भारत के राजदूत अभय ठाकुर द्वारा औपचारिक रूप से सौंपी गई। यह सहायता भारतीय वायु सेना (IAF) के C-130J विमान के जरिए शनिवार को हिंडन वायु सेना स्टेशन से म्यांमार के लिए रवाना की गई थी। इस राहत सामग्री में तंबू, स्लीपिंग बैग, कंबल, तैयार भोजन, पानी शुद्ध करने के उपकरण, स्वच्छता किट, सौर लैंप, जनरेटर सेट और आवश्यक दवाइयां जैसे पैरासिटामोल, एंटीबायोटिक्स, सिरिंज, दस्ताने और पट्टियां शामिल हैं।

म्यांमार में शुक्रवार को आए 7.7 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप और इसके बाद 6.4 तीव्रता के झटके ने भारी तबाही मचाई। इस प्राकृतिक आपदा में 1000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हुए हैं। म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र के पास इस भूकंप का केंद्र था, जिसके प्रभाव से थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में भी एक निर्माणाधीन 30 मंजिला इमारत ढह गई, जिसमें 10 लोगों की जान चली गई। म्यांमार में इमारतें, पुल और सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं, जिससे राहत और बचाव कार्यों में मुश्किलें बढ़ गई हैं।

भारत का यह मिशन संकट के समय पड़ोसी देशों को समय पर सहायता प्रदान करने में भारत की सक्रिय भूमिका को दर्शाता करता है। एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि NDRF और भारतीय वायु सेना के वरिष्ठ अधिकारी इस खेप के दौरान मौजूद थे, जिन्होंने सुचारू समन्वय और सहायता की त्वरित तैनाती सुनिश्चित की। भारत सरकार अपने आपदा राहत प्रयासों के माध्यम से संकटग्रस्त देशों को सहायता प्रदान करने में दृढ़ है।

भारत का आपदा सहायता में लंबा इतिहास

भारत ने हमेशा अपने पड़ोसी देशों और वैश्विक समुदाय के लिए आपदा के समय मदद का हाथ बढ़ाया है। यह पहल भारत की "फर्स्ट रिस्पॉन्डर" की नीति को दर्शाती है। इससे पहले भी भारत ने कई मौकों पर त्वरित सहायता प्रदान की है। उदाहरण के लिए, 2004 में हिंद महासागर में आए सुनामी के दौरान भारत ने श्रीलंका, मालदीव और इंडोनेशिया को राहत सामग्री और चिकित्सा सहायता भेजी थी। 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद भारत ने ऑपरेशन मैत्री शुरू किया था, जिसमें राहत सामग्री के साथ-साथ बचाव दल और चिकित्सा विशेषज्ञों को भेजा गया था।

इसी तरह, 2023 में तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के बाद भारत ने ऑपरेशन दोस्त के तहत 6 टन से अधिक राहत सामग्री और NDRF (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) की टीमें भेजी थीं। भारत ने कोविड-19 महामारी के दौरान भी "वैक्सीन मैत्री" पहल के तहत कई देशों को टीके और चिकित्सा आपूर्ति प्रदान की थी। यह परंपरा भारत की मानवीय भावना और क्षेत्रीय एकजुटता को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

म्यांमार को सहायता का महत्व

विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत म्यांमार के अधिकारियों के संपर्क में है और उनकी जरूरतों के आधार पर और सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, "भारत हमेशा अपने पड़ोस में प्राकृतिक आपदाओं के समय पहला सहायता करने वाला देश रहा है। हम म्यांमार में नुकसान की रिपोर्ट का विश्लेषण कर रहे हैं और उनकी आवश्यकताओं के अनुसार सहायता बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं।"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस आपदा पर चिंता जताते हुए कहा, "म्यांमार और थाईलैंड में आए भूकंप से हुई तबाही से मैं बहुत दुखी हूं। भारत सभी संभव सहायता के लिए तैयार है। हमारी संवेदनाएं पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं।"

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म्यांमार और थाइलैंड में स्थिति

म्यांमार में भूकंप के बाद कई इमारतें ढह गईं, जिनमें मांडले का मशहूर माहमुनी बुद्ध मंदिर और नायप्यीडॉ की एक मस्जिद शामिल हैं। वहां की सैन्य सरकार ने छह क्षेत्रों में आपातकाल घोषित कर दिया है और अंतरराष्ट्रीय सहायता की अपील की है। थाइलैंड में भी बचाव कार्य जारी हैं, जहां ढही हुई इमारत के मलबे में अभी भी कई लोग फंसे हो सकते हैं।

भारत की यह सहायता म्यांमार के लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आई है, जो इस संकट से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की संवेदनशील और जिम्मेदार छवि को भी रेखांकित करता है।

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