MBBS छात्रों को पढ़ाएंगे नॉन मेडिकल ग्रेजुएट, NMC ने असिस्टेंट प्रोफेसर योग्यता नियम किए आसान, पढ़ें नई पात्रता शर्तें
- एमएससी और पीएचडी डिग्री वाले गैर मेडिकल स्नातकों को MBBS छात्रों को एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी पढ़ाने की अनुमति दी गई है।
नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) ने हाल ही में मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता के लिए ड्राफ्ट गाइडलाइंस ( टीईक्यू -मेडिकल संस्थानों में शिक्षक पात्रता अर्हता रेगुलेशन ) जारी की हैं। इन मसौदा दिशानिर्देशों में एनएमसी ने सरकारी अस्पतालों में काम करने वाले नॉन टीचिंग कंसल्टेंट /स्पेशलिस्ट / मेडिकल ऑफिसर के लिए पात्रता शर्तों में ढील दी है। साथ ही मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजीडेंट या सरकारी मेडिकल कॉलेज में स्पेशलिस्ट / मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने वाले डिप्लोमा धारकों के लिए मानदंडों को आसान बनाया गया है।
एनएमसी ने 2024 के लिए अपने शिक्षक पात्रता योग्यता नियमों के मसौदे में दो साल पुराने प्रावधान को बरकरार रखा है जिसके तहत एमएससी और पीएचडी डिग्री वाले गैर मेडिकल स्नातकों को मेडिकल छात्रों को एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी पढ़ाने की अनुमति दी गई है। इसके मुताबिक
8 जून 2017 से पहले से सीनियर रेजिडेंट के रूप में नियुक्त डिप्लोमा धारक और जो उसी संस्थान में सीनियर रेजिडेंट के रूप में लगातार काम कर रहे हैं, वे असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए पात्र होंगे। सरकारी मेडिकल कॉलेज में छह साल तक स्पेशलिस्ट/ मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम करने वाले डिप्लोमा धारक असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए योग्य होंगे।
हालांकि एनएमसी के इन नए पात्रता नियमों का काफी मेडिकल प्रोफेशनल्स विरोध भी कर रहे हैं। कुछ ने इनसे सहमति व्यक्त की है। कुछ समूहों ने इस प्रावधान की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि इससे मेडिकल एजुकेशन की क्वालिटी कम हो सकती है जबकि अन्य ने कहा कि तीनों विभागों में संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए यह एक जरूरी कदम था। देश में मेडिकल एजुकेशन की निगरानी करने वाले एनएमसी ने 17 जनवरी को टीईक्यू 2024 का मसौदा जारी किया था और एक सप्ताह के भीतर प्रतिक्रियाएं मांगी थीं। यदि यह लागू हो जाता है तो यह मौजूदा विनियमन 2022 की जगह लेगा। अपने 2022 के मानदंडों में एनएमसी ने सबसे पहले एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री में एमएससी और पीएचडी डिग्री वाले उम्मीदवारों को असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त करने की इजाजत दी थी जबकि सीनियर टीचिंग रोल्स में प्रमोशन के लिए मेडिकल विषयों में पीएचडी की डिग्री को अनिवार्य बना दिया। टीईक्यू 2024 ने शिक्षण संबंधी प्रावधानों को बरकरार रखा, लेकिन ऐसे उम्मीदवारों की भूमिका को फैकल्टी के रूप में सीमित कर दिया है।
एनएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमेशा कोशिश यही रहेगी कि एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) की डिग्री वाले उम्मीदवारों को नियुक्त किया जाए। लेकिन अगर वे उपलब्ध नहीं हैं, तो एनएमसी द्वारा मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेजों से इन विषयों में एमएससी और पीएचडी वाले उम्मीदवारों को विभागों में कुल पदों के 15 फीसदी की सीमा के साथ नियुक्त किया जाएगा।
अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डर्मेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. कबीर सरदाना ने कहा कि इससे मेडिकल में रिसर्च खत्म हो जाएगी। यह तथाकथित फैकल्टी की संख्या बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। जिन्हें एमडी कोर्स पाने के लिए रैंक या मेरिट नहीं मिल पाई, उन्हें फैकल्टी में शामिल किया जाएगा। देश के डॉक्टर और मरीज के अत्यधिक अनुपात को कम करने की आड़ में यह पिछले दरवाजे से लोगों को फैकल्टी में घुसाने की कोशिश है। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (एफएआईएमए) के मुख्य संरक्षक डॉ. रोहन कृष्णन ने कहा कि डिप्लोमा धारकों और नॉन मेडिकल ग्रेजुएट्स को एमबीबीएस छात्रों को पढ़ाने की इजाजत देना हास्यस्पद है।
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