Hindi Newsधर्म न्यूज़Dev Uthani Ekadashi Katha Read Here story Dev Uthani Ekadashi ki kahani Dev Uthani Ekadashi ki Katha in hindi

Dev Uthani Ekadashi Katha: देव उठनी एकादशी के दिन पढ़ी जाती है ये कहानी, यहां पढें देवउठनी एकादशी की कथा

  • Dev Uthani Ekadashi Katha : इस साल 12 नवंबर के दिन मंगलवार को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। देवउठनी एकादशी का व्रत बिना कथा सुनें ये कहे अधूरा माना जाता है। इसलिए जरूर पढें देवउठनी एकादशी की व्रत कथा-

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 12 Nov 2024 05:13 AM
share Share

Dev Uthani Ekadashi Katha : हर साल कार्तिक महीने में देव उठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु इस दिन योग निद्रा से जागकर संसार का दायित्व संभालते हैं। इस साल 12 नवंबर के दिन देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी। देवउठनी एकादशी का व्रत बिना कथा सुनें ये कहे अधूरा माना जाता है। इसलिए 12 नवंबर के दिन देवउठनी एकादशी पर जरूर पढें देवउठनी एकादशी की व्रत कथा-

ये भी पढ़ें:सुबह से लेकर शाम तक इन मुहूर्त में करें देवउठनी एकादशी पूजा, जानें पूजा-विधि
ये भी पढ़ें:देवउठनी एकादशी पर करें 6 उपाय, प्रसन्न होंगे भगवान विष्णु

देवउठनी एकादशी व्रत कथा

एक राज्य में सभी लोग देवउठनी एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो।

राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजन करके भगवान अंतर्धान हो गए और वह अपने काम पर चला गया।

ये भी पढ़ें:कब है तुलसी विवाह? जानें डेट, मुहूर्त, पूजा विधि व सामग्री

15 दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।

राजा की बात सुनकर वह बोला महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।

ये भी पढ़ें:केतु सूर्य के नक्षत्र में, 3 राशियों के लिए लाभकारी
ये भी पढ़ें:राशिफल : 12 नवंबर को मेष से लेकर मीन राशि का दिन कैसा रहेगा?

भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के लिए नदी की तरफ आगे बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें