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बोले सहारनपुर : अस्तित्व की जंग लड़ रहे हुनरमंद दर्जी

Saharanpur News - समाज में मास्टर जी कहे जाने वाले दर्जी आज हाशिये पर हैं। रेडीमेड कपड़ों की बढ़ती मांग के कारण दर्जियों की पहचान और काम का महत्व घट गया है। युवा इस पेशे को अपनाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, जिससे...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरMon, 28 April 2025 12:58 AM
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बोले सहारनपुर : अस्तित्व की जंग लड़ रहे हुनरमंद दर्जी

समाज में मास्टर जी कहे जाने वाले दर्जी आज हाशिये पर हैं। दर्जियों के हुनर को मशीनों और फैक्ट्रियों में बने रेडीमेड कपड़े निगलता जा रहा है। कपड़े की खरीदारी से लेकर सिलाई तक का खर्चा, रेडीमेड के मुकाबले लगभग दोगुना हो जाता है। दूसरी तरफ दर्जी का अपना खर्च भी बढ़ गया है-धागा, बटन, जिप और सिलाई मशीनों की मरम्मत जैसी जरूरतें महंगी हो गई हैं। कई दर्जी तो ग्राहकों की कमी के कारण अपना पुश्तैनी धंधा बंद करने पर विचार कर रहे हैं। आज दर्जी हाशिये पर हैं। अब दर्जियों के हुनर को मशीनों और फैक्ट्रियों में बने रेडीमेड कपड़े निगलता जा रहा है। आज के दौर में जब हर चीज ‘फास्ट और ‘इंस्टेंट हो गई है, तब सिलाई की बारीकी और दर्जी के धैर्य को कम महत्व मिलने लगा है। कपड़े खरीदने की प्रक्रिया अब ‘चुनो और पहन लो तक सीमित रह गई है। ऐसे में पुश्तों से दर्जी का काम कर रहे परिवारों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा है-क्या उनका यह पारंपरिक कार्य आगे भी जिंदा रह पाएगा?

रेडीमेड गारमेंट्स इंडस्ट्री ने फैशन को सुलभ और तेज बना दिया है। मॉल्स, ऑनलाइन स्टोर्स और ब्रांडेंड दुकानों पर आसानी से उपलब्ध रेडीमेड कपड़े आम जनता की पहली पसंद बन गए हैं। युवाओं को अब फैशन के लिए दर्जी के पास बैठकर माप देने और हफ्तों इंतजार करने की जरूरत नहीं लगती। यही वजह है कि दर्जी से सिले कपड़ों की मांग तेजी से घटी है। इस बदलाव का असर सीधे दर्जी समाज पर पड़ा है। जिनके लिए यह कार्य केवल आजीविका नहीं, बल्कि सम्मान और गर्व का विषय था, वे अब ग्राहकों की बाट जोहते हैं। कभी मास्टर जी कहकर जिनकी इज्जत की जाती थी, वे आज दुकान पर ग्राहकों के इंतजार में घंटों बैठे रहते हैं। कई दर्जी तो ग्राहकों की कमी के कारण अपना पुश्तैनी धंधा बंद करने पर विचार कर रहे हैं। ग्राहकों के लिए रेडीमेड कपड़े न सिर्फ सुविधा देते हैं, बल्कि सस्ते भी होते हैं। यही वजह है कि दर्जियों के सिलाए कपड़े महंगे लगते हैं। कपड़े की खरीदारी से लेकर सिलाई तक का खर्चा, रेडीमेड के मुकाबले लगभग दोगुना हो जाता है। दूसरी तरफ, दर्जी का अपना खर्च भी बढ़ गया है-धागा, बटन, ज़िप और सिलाई मशीनों की मरम्मत जैसी ज़रूरतें महंगी हो गई हैं। ऐसे में अगर वे अपनी मेहनत का उचित मूल्य माँगते हैं, तो ग्राहक मुंह मोड़ लेते हैं।

पुश्तैनी कार्य को आगे बढ़ाने में पीछे हट रहे युवा

दर्जी समुदाय का यह संकट केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक भी है। आज की युवा पीढ़ी अपने पुश्तैनी दर्जी के काम को अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही। पहले यह काम घर के बच्चों को विरासत में मिलता था, लेकिन अब युवा इस पेशे को अपनाने के बजाय नौकरी, व्यापार या तकनीकी क्षेत्र में जाना बेहतर समझते हैं। इस रुझान से दर्जियों का पुश्तैनी कार्य धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है। दर्जी मास्टर बताते हैं कि पहले उनके पास दो-दो तीन-तीन शागिर्द हुआ करते थे, जो उनके साथ रहकर सिलाई की बारिकियां सीखते थे। लेकिन अब कोई लड़का यह पेशा अपनाना नहीं चाहता। उन्हें यह काम कठिन, थकाऊ और कम मुनाफे वाला लगता है।

आधुनिक युग में पुरखों का काम जिंदा रखना कठिन

आज के आधुनिक और डिजिटल युग में दर्जियों की पहचान खोती जा रही है। एक समय था जब मोहल्ले के दर्जी को घर के हर सदस्य के नाप याद रहते थे। त्योहारों पर उन्हीं से कपड़े सिलवाना परंपरा हुआ करती थी। शादी-ब्याह के मौकों पर तो दर्जी के पास महीनों पहले से ऑर्डर बुक हो जाते थे, लेकिन अब लोग शादी या त्योहार के लिए भी रेडीमेड ब्रांड्स का रुख कर लेते हैं। दर्जियों के लिए यह सिर्फ काम का नुकसान नहीं है, बल्कि उनकी पहचान और आत्मसम्मान का भी ह्रास है। मास्टर दर्जी बताते हैं कि वे आजादी से पहले किए गए पुरखों के इस काम को अब तक अपने हुनर से जिंदा रखे हुए हैं, लेकिन उन्हें अब भविष्य नजर नहीं आता।

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पुश्तैनी कार्यों को जिंदा रखने की जद्दोजहद में दर्जी

इन तमाम मुश्किलों के बावजूद कई दर्जी आज भी दिन-रात मेहनत करके अपने पुश्तैनी काम को जिंदा रखने की जद्दोजहद में जुटे हैं। वे इस पेशे को केवल रोज़गार नहीं, बल्कि एक ‘हुनर और ‘परंपरा मानते हैं। उनका विश्वास है कि हाथ से सिले कपड़ों की अपनी एक अलग अहमियत होती है, जो रेडीमेड से नहीं मिलती। कई युवा दर्जी अब डिजाइनिंग और कस्टम टेलरिंग की ओर झुकाव दिखा रहे हैं। कुछ युवाओं ने सोशल मीडिया के ज़रिए अपने टेलरिंग ब्रांड्स खड़े किए हैं। वे इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि पर अपने काम को प्रमोट कर रहे हैं और युवा ग्राहकों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

रेडीमेड गारमेंट्स के साथ प्रतिस्पर्धा को मिले डिजिटल ट्रेनिंग

युवाओं को इस पेशे की ओर आकर्षित करने के लिए सिलाई और डिज़ाइनिंग के कोर्सों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा मुफ्त प्रशिक्षण केंद्र खोले जाएं, जहां पारंपरिक सिलाई को आधुनिक डिजाइनिंग से जोड़ा जाए। दर्जियों ने आयुष्मान भारत, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन जैसी योजनाओं से जोड़ने की मांग की है। दर्जी समुदाय को रेडीमेड गारमेंट्स के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए ऑनलाइन प्लेटफार्म और डिजिटल मार्केटिंग की ट्रेनिंग मिले तो उनके लिए पुश्तैनी कार्य को बचाने में मदद मिलेगी।

0-निष्कर्ष

दर्जी केवल एक कपड़ा सिलने वाला व्यक्ति नहीं है, बल्कि वह एक कलाकार है, जो कपड़ों में जीवन डालता है। उसका यह पुश्तैनी कार्य उनकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। समय की तेज रफ्तार में अगर यह कार्य कहीं पीछे छूट गया है, तो हमारा दायित्व है कि हम उसे फिर से आगे लाएं। यह न केवल दर्जियों के लिए सम्मान और आजीविका का विषय है, बल्कि हमारी पारंपरिक पहचान को भी बचाने का एक ज़रिया है। हमें दर्जियों के हुनर को पहचान कर, उन्हें मंच देना होगा, ताकि “मास्टर जी” फिर से समाज में अपनी पहचान पा सकें।

शिकायतें

1.रेडीमेड कपड़ों के कारण ग्राहकों की संख्या घटी

2.दर्जी से सिलवाना अब महंगा पड़ता है, इसीलिए ग्राहक बचते हैं

3.नई पीढ़ी दर्जी का काम सीखने को तैयार नहीं

4.मास्टर जी कहकर बुलाने वाले पुराने ग्राहक अब दूरी बना रहे

5.दर्जी सामान जैसे धागा, बटन, अस्तर आदि के दाम बढ़ गए हैं

6.सरकारी योजनाओं जैसे आयुष्मान योजना का लाभ नहीं मिल रहा

7.सिलाई के कार्य को समाज में अब सम्मान नहीं मिल रहा

8.डिजिटल मार्केटिंग और ऑनलाइन बिक्री का ज्ञान नहीं

9.स्थायी आय और सामाजिक सुरक्षा नहीं

10.दुकानों में ग्राहकों की कमी दर्जियों को करती है निराश

समाधान

1.पारंपरिक टेलरिंग को बढ़ावा देने के लिए विशेष अभियान चलाए जाएं

2.दर्जी कार्य के लिए सब्सिडी या आर्थिक सहायता दी जाए

3.प्रशिक्षण केंद्रों में युवा वर्ग को दर्जी कार्य सिखाने की योजना बने

4.दर्जी समुदाय को ब्रांडिंग और प्रचार के लिए मंच प्रदान किया जाए

5.कच्चे माल पर छूट या थोक में खरीद की सुविधा उपलब्ध कराई जाए

6.दर्जियों को स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक योजनाओं में शामिल किया जाए

7.हस्तकला और पारंपरिक पेशों को स्कूल स्तर से बढ़ावा दिया जाए

8.डिजिटल मार्केटिंग व ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का प्रशिक्षण मिले

9.दर्जी समुदाय के लिए पेंशन और स्थायी आय योजना चलाई जाए

10.स्थानीय मेलों और आयोजनों में दर्जियों को शामिल कर बढ़ावा दिया जाए

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0-हमारी भी सुनों

1.वर्तमान समय में अब लोग रेडीमेड कपड़ों को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह दुखद है कि आज का युवा सिलाई के इस हुनर को अपनाना नहीं चाहता। हमें सरकार और समाज दोनों से सहयोग की जरूरत है ताकि ये कला जिंदा रह सके। -इकबाल

2.रेडीमेड कपड़ों की भरमार ने हमारी रोज़ी-रोटी छीन ली है। हमने वर्षों मेहनत से जो पहचान बनाई थी, वह अब मिटती जा रही है। अगर अब भी कुछ नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी दर्जी नाम से ही अनजान रह जाएगी। -शशिकांत

3.हमने नाप लेकर लोगों के लिए परफेक्ट कपड़े बनाए, त्योहारों को सजाया, शादियों को खास बनाया। अब वही लोग हमें भूल गए हैं। पुश्तैनी काम को बचाना है तो हमें नए ज़माने के साथ चलने का मौका और प्रशिक्षण मिलना चाहिए। -आजम

4.हर दिन दुकान पर घंटों बैठते हैं, ग्राहक नहीं आते। पुश्तैनी कार्य को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा हूं। सरकार यदि हमें डिज़ाइनिंग व मार्केटिंग में प्रशिक्षित करे तो हम फिर से खड़े हो सकते हैं। -मौ इब्राहिम

5.मेरे दादा, पिता और अब मैं, तीन पीढ़ियों ने ये काम किया। अब लगता है मेरे बेटे के लिए कुछ नहीं बचेगा। यह सिर्फ रोज़गार नहीं, हमारी पहचान है। हमें इसे बचाने के लिए मिलकर प्रयास करना होगा। -मौ इमरान

6.रेडीमेड की चमक ने हमारे हुनर को अंधेरे में डाल दिया। युवा वर्ग इस कला को कमतर समझता है। हमें चाहिये मंच, जहां हम अपने हुनर को फिर से समाज के सामने रख सकें। हमारी पहचान को मरने न दें। -मौ हैदर

7.ग्राहक अब मास्टर जी नहीं कहते, सिर्फ दाम पूछते हैं। सिलाई की कद्र खत्म हो रही है। अगर स्कूलों में सिलाई-कढ़ाई की कक्षाएं फिर से शुरू हों तो नई पीढ़ी को इससे जोड़ सकते हैं। -मौ नौशाद

8.हम दर्जी सिर्फ कपड़े नहीं सिलते, रिश्ते भी सिलते हैं। अब लोग मशीन से बने कपड़े पहनते हैं, पर आत्मीयता नहीं मिलती। सरकार व समाज को चाहिए कि इस भारतीय हस्तकला को महत्व दें। -मौ अरशद

9.हमारी दुकानें खाली हैं, पर दिल में उम्मीद है। अगर हमें डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जोड़ दिया जाए तो नए ग्राहक मिल सकते हैं। पुराने हुनर को नए दौर से जोड़ने का समय आ गया है। -नसीम

10.हर साल लागत बढ़ती है, कमाई घटती है। हम मेहनत कर सकते हैं, लेकिन मौके चाहिए। अगर सरकारी स्तर पर कोई सहायक योजना हो, तो हम अपने पुश्तैनी काम को दोबारा खड़ा कर सकते हैं। -मौ साजिद

11.हमने कभी सोचा नहीं था कि हुनर भी भूखा रखेगा। सिलाई करते-करते जिंदगी गुजार दी, लेकिन अब बच्चों को इसमें भविष्य नहीं दिखता। हमें अपने काम को सम्मान और समर्थन दोनों चाहिए। -मौ शाहनवाज

12.रेडीमेड कपड़े जितने आसान हैं, उतने ही बेदिल भी। हम अपने हाथों से जो बनाते हैं, उसमें प्यार होता है। अगर यही काम हम आधुनिक रूप में करें, तो शायद ग्राहक भी फिर लौट आएं। -साकिब

13.सालों से मेहनत की, लेकिन अब सिलाई से घर चलाना मुश्किल हो गया है। हम कोई मदद नहीं चाहते, बस इतना चाहते हैं कि हमें सीखने और बढ़ने का मौका मिले। तभी पुश्तैनी काम बचेगा। -मौ इरफान

14.बच्चे कहते हैं-पापा यह काम छोड़ दो, इसमें कुछ नहीं बचा। दिल टूटता है। यह काम हमारे खून में है। अगर हमें ट्रेनिंग और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स मिलें, तो हम फिर से टिक सकते हैं। -शिवकुमार

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