Struggling Carpenter Community Seeks Government Support to Sustain Traditional Craft बोले सहारनपुर : बढ़ई समाज योजनाओं के लाभ से वंचित, रोज झेल रहा परेशानी, Saharanpur Hindi News - Hindustan
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बोले सहारनपुर : बढ़ई समाज योजनाओं के लाभ से वंचित, रोज झेल रहा परेशानी

Saharanpur News - जनपद में लगभग 20 हजार बढ़ई अपनी पारंपरिक कला को जीवित रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। महंगी लकड़ी, घटती आमदनी और 18% जीएसटी के कारण उनकी स्थिति दयनीय हो गई है। सरकार से सस्ती दर पर लोन, जीएसटी में कमी...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहारनपुरMon, 28 April 2025 12:56 AM
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बोले सहारनपुर : बढ़ई समाज योजनाओं के लाभ से वंचित, रोज झेल रहा परेशानी

जनपद में बढ़ई समाज से जुड़े करीब 20 हजार लोग आज भी जीवनयापन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह समाज अपनी पारंपरिक कला और मेहनत के बावजूद समाज और विकास से नहीं जुड़ पा रहा है। लकड़ी की डिजाइन नक्काशी, फर्नीचर निर्माण और घर की आंतरिक सजावट में अहम भूमिका निभाने वाले इन कारीगरों की समस्याएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं, जबकि आमदनी बेहद सीमित है। महंगी लकड़ी और घटती आमदनी के चलते कई लोग पुश्तैनी काम से मुंह मोड़ रहे हैं और दूसरे कामों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यदि बढ़ई समाज को आसान किस्तों पर लोन की सुविधा उपलब्ध कराई जाए तो यह पुश्तैनी कला बड़े रोजगार साधन में तब्दील हो सकती है। बढ़ई समाज के अधिकांश कारीगरों की मासिक आय मात्र 10 से 15 हजार रुपये के बीच सिमटी हुई है। महंगाई के इस दौर में इतनी कम आमदनी से परिवार का भरण-पोषण कर पाना आसान नहीं है। वहीं लकड़ी और औजारों की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। एक बढ़िया किस्म की लकड़ी और आधुनिक औजारों की कीमत इतनी अधिक है कि उसे खरीदना आम बढ़ई के लिए असंभव हो गया है। बढ़ई समाज के लोगों को सबसे बड़ी समस्या सस्ते दर पर लोन न मिल पाने की है। बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान इन्हें लोन देने से कतराते हैं, क्योंकि इनके पास पक्की आमदनी का कोई प्रमाण नहीं होता। इसके कारण ये कारीगर न तो अपना काम बढ़ा पाते हैं और न ही नई तकनीक अपना सकते हैं।

वहीं बढ़ई समाज के लोगों का कहना है कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी समाज को उतनी तेजी से नहीं मिल पा रहा है जिससे वे विकास की मुख्यधारा से जुड़कर अपनी पहचान बन सके। समाज को आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भी इन्हें अब तक पक्के मकान का लाभ नहीं मिल सका है। कई बढ़ई आज भी कच्चे मकानों में रह रहे हैं। फर्नीचर पर 18% तक की जीएसटी दर बढ़ई समाज के उत्पादों को बाजार में महंगा बना देती है, जिससे ग्राहकों की संख्या कम होती जा रही है। इससे बिक्री प्रभावित होती है और उनकी आमदनी में और गिरावट आती है। इन सभी समस्याओं को देखते हुए बढ़ई समाज ने सरकार से सस्ती दरों पर लोन की सुविधा, जीएसटी दरों में कटौती, आयुष्मान भारत योजना के तहत कार्ड की व्यवस्था और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिए जाने की मांग की है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि इन कारीगरों को उनकी कला को संरक्षित करने और आगे बढ़ाने के लिए आधुनिक औजार और प्रशिक्षण की सुविधा दी जाए। सरकार यदि इस हुनरमंद समाज की ओर ध्यान देती है, तो न केवल हजारों परिवारों की जिंदगी बेहतर हो सकती है, बल्कि देश की सांस्कृतिक और शिल्प विरासत भी सुरक्षित रह सकती है। बढ़ई समाज की यह मांगें केवल उनके हक की नहीं, बल्कि एक परंपरा को जीवित रखने की पुकार हैं।

बढ़ती लागत, घटती आमदनी

जनपद में करीब 20 हजार बढ़ई अपने पारंपरिक पेशे को किसी तरह जिंदा रखे हुए हैं। बढ़ती लकड़ी और औजारों की कीमतों के कारण उनका काम घाटे का सौदा बनता जा रहा है। जबकि उनकी आय 10-15 हजार रुपये से अधिक नहीं है, लकड़ी पर 18% जीएसटी उनकी परेशानी को और बढ़ाता है।

सस्ती दर पर मिले लोन

बढ़ई समाज के लोग छोटे स्तर पर काम करते हैं, लेकिन लोन न मिलने से वो अपने काम को बढ़ा नहीं पाते। सरकार से इनकी मांग है कि इन्हें बिना गारंटी के सस्ता लोन उपलब्ध कराया जाए, ताकि ये आत्मनिर्भर बन सकें। राकेश ने बताया कि लोन की प्रक्रिया काफी जटिल है। बैंक वाले इतने कागत मांगते हैं जिन्हें पूरा करना संभव नहीं है।

जीएसटी ने घटा दी बढ़ई की कमाई, सरकार से दर कम करने की मांग

फर्नीचर और लकड़ी पर 18% जीएसटी बढ़ई समाज की आमदनी में कटौती कर रहा है। लकड़ी पहले से ही मंहगी है उस पर 18 प्रतिशत जीएसटी ने मंहगाई को ग्राहक महंगे फर्नीचर से दूरी बना रहे हैं, जिससे इन कारीगरों की बिक्री घटती जा रही है।

युवा बढ़ई पलायन को मजबूर, पारंपरिक काम छोड़ रहे हैं

काम में मुनाफा न होने की वजह से युवा अब शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं और दूसरा काम पकड़ रहे हैं। यह परंपरा और हुनर के लिए खतरे की घंटी है। घटती आमदनी के कारण पुश्तैनी काम करने वाले बढ़ई अपने बच्चों को पारंपरिक काम से दूर कर रहे हैं।

बढ़ई मांग रहे हैं सरकार से राहत पैकेज

बढ़ई समाज ने प्रशासन से गुहार लगाई है कि उन्हें आर्थिक पैकेज, प्रशिक्षण और रोजगार सहायता दी जाए ताकि वे अपने व्यवसाय को फिर से खड़ा कर सकें। जनपद में करीब 20 हजार बढ़ई हैं जिन्हें सरकारी मदद की अत्यंत आवश्यकता है।

लकड़ी के बढ़े दामों ने बढ़ाई परेशानी

राजू ने बताया कि दो प्रकार की लकड़ी का इस्तेमाल होता है। चाप की लकड़ी की कीमत 1100 रुपये प्रति घन फीट थी जिसकी कीमत बढ़कर 1600 रुपये प्रति घनफीट हो गई है। इसी तरह सागवान लकड़ी की कीमत भी 1600 रुपये से बढ़कर 2100 रुपये प्रति घनफीट हो गई है।

मजदूरी से कम आमदनी

देवी दयाल ने बताया एक बढ़ई की आय औसतन एक दिहाड़ी मजदूर से भी कम रह गई है। मंहगाई, जीएसटी और योजनाओं से वंचित होने के कारण उनका जीवन कठिन होता जा रहा है। बढ़ई समाज की हालत दयनीय हो गई है। सरकार मांगों पर ध्यान दे।

प्लास्टिक और लोहे के दरवाजों से मिल रही चुनौती

लकड़ी की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी से खरीरदार भी लकड़ी के विकल्पों को अपना रहे हैं। लोग अपने घरों पर लकड़ी की बजाए प्लास्टिक और लोहे, एल्युमिनियम के दरवाजे बनवा रहे हैं जिसका असर बढ़ई का काम करने वालों पर हो रहा है।

-शिकायतें और समाधान

शिकायतें

1. बढ़ती लकड़ी और औजारों की कीमतों के कारण काम घाटे का सौदा बनता जा रहा है।

2. समाज के लोग छोटे स्तर पर काम करते हैं, लेकिन लोन न मिलने से वो अपने काम को बढ़ा नहीं पाते।

3. लकड़ी पर 18% जीएसटी बढ़ई समाज की आमदनी में कटौती कर रहा है।

4. प्रधानमंत्री आवास योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा।

5. कम आमदनी वाले बढ़ई परिवार गंभीर बीमारियों में इलाज नहीं करवा पाते।

6. औजार और लकड़ी की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि अब काम करना भी मुश्किल हो गया है।

7. बढ़ई समाज के कई लोग आज भी कच्चे या किराए के मकानों में रह रहे हैं।

8. ग्राहक महंगे फर्नीचर से दूरी बना रहे हैं, जिससे कारीगरों की बिक्री घटती जा रही है।

समाधान

1. सरकार द्वारा लकड़ी और औजारों पर सब्सिडी दी जाए या कीमतों पर नियंत्रण लगाया जाए।

2. सरकार बिना गारंटी के सस्ते लोन उपलब्ध कराए ताकि बढ़ई समाज अपने व्यवसाय को बढ़ा सके।

3. सरकार लकड़ी पर जीएसटी की दर कम करे या बढ़ई समाज के लिए विशेष छूट दे।

4. सरकार विशेष कैंप आयोजित करे ताकि बढ़ई समाज को योजनाओं की जानकारी और लाभ मिल सके।

5. सरकार आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य कार्ड बनाए और उन्हें निःशुल्क इलाज की सुविधा दे।

6. सरकार कीमतों पर नियंत्रण लगाए और बढ़ई समाज को सब्सिडी दे।

7. सरकार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बढ़ई समाज को मकान उपलब्ध कराए।

8. सरकार बढ़ई समाज को आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन दे ताकि यह कला बनी रहे।

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हमारी भी सुनो

1. बढ़ती लकड़ी और औजारों की कीमतों के कारण उनका काम घाटे का सौदा बनता जा रहा है। जबकि आय 10-15 हजार रुपये से अधिक नहीं है, लकड़ी पर 18% जीएसटी ने परेशानी को बढ़ाया है। राकेश, बढई

2- समाज के लोग छोटे स्तर पर काम करते हैं, लेकिन लोन न मिलने से वो अपने काम को बढ़ा नहीं पाते। सरकार से मांग है कि बिना गारंटी के सस्ता लोन उपलब्ध कराया जाए ताकि हम आत्मनिर्भर बन सकें। राजू प्रजापति, बढ़ई

3. लकड़ी पर 18% जीएसटी बढ़ई समाज की आमदनी में कटौती कर रहा है। ग्राहक महंगे फर्नीचर से दूरी बना रहे हैं, जिससे कारीगरों की बिक्री घटती जा रही है। शिवम प्रजापति, बढ़ई

4. प्रधानमंत्री आवास योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। सरकारी योजनाओं की जानकारी व लाभ के लिए विशेष कैंप आयोजित किए जाएं। वाजिद, बढ़ई

5. कम आमदनी वाले बढ़ई परिवार गंभीर बीमारियों में इलाज नहीं करवा पाते। सरकार से मांग है कि आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य कार्ड बनाए जाएं। सारुल, बढ़ई

6. औजार और लकड़ी की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि अब काम करना भी मुश्किल हो गया है। मुनाफा नहीं, केवल नुकसान हो रहा है। सरकार को कीमतें कम करने पर ध्यान देना चाहिए। सोनू धीमान, बढ़ई

7.बढ़ई समाज के कई लोग आज भी कच्चे या किराए के मकानों में रह रहे हैं। हमारी मांग है कि हमें भी प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिले। देवी दयाल, बढ़ई

8.बढ़ई समाज एक सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। लेकिन सरकारी उपेक्षा और आर्थिक तंगी के कारण यह कला लुप्त होने की कगार पर है। हमें मदद की आवश्यकता है। महेंद्र, बढ़ई

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