Street Vendors in Rampur Struggle Despite Vending Zones बोले रामपुर : शहर में वेडिंग जोन, फिर भी दुश्वारियां, Rampur Hindi News - Hindustan
Hindi NewsUttar-pradesh NewsRampur NewsStreet Vendors in Rampur Struggle Despite Vending Zones

बोले रामपुर : शहर में वेडिंग जोन, फिर भी दुश्वारियां

Rampur News - रामपुर में वेंडिंग जोन बनने के बाद भी रेहड़ी-पटरी वालों को समान अवसर नहीं मिल रहे हैं। हजारों सब्जी और फल विक्रेताओं में से कई को अभी तक पीएम स्वनिधि योजना के तहत दुकान नहीं मिली है। प्रशासन की उपेक्षा...

Newswrap हिन्दुस्तान, रामपुरThu, 13 March 2025 12:41 AM
share Share
Follow Us on
बोले रामपुर : शहर में वेडिंग जोन, फिर भी दुश्वारियां

शहर में वेंडिंग जोन बनने के बाद भी समान अवसर नहीं। हर रोज कुआं खोदकर हर रोज पानी पीते हैं रेहड़ी वाले। सवेरे घर से निकले लेकिन शाम की कमाई का पता नहीं। जी हां, हर शहर की तरह रामपुर में भी यही हाल है। शहर में यूं तो हजारों सब्जी और फलों के ठेले वाले हैं लेकिन, आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो 28 सौ रेहड़ी-पटरी वाले हैं। इनमें सैंकड़ों ऐसे हैं जिन्हें अभी तक पीएम स्वनिधि गलियारे में दुकान तक नहीं मिल सकी है। जिसकी वजह से यह लोग सड़क किनारे अपने ठेले लगाकर गुजर बसर कर रहे हैं। बातचीत में टीलों वालों के दर्द छलक पड़े। शहर में जुबान के जायके का जिो तो रामपुर का नाम आना लाजिमी । देश में शायद स्ट्रीट फूड के चलन में आने से पहले से यहां खोमचों-ठेलों पर मसालों के तड़के और घी के के बाजार में कुछ कमी आई है। शहर में जगह जगह तेल में अदरक-मिर्चे की छौंक के दूर तक खुशबू जागी थी। कचौड़ी- सब्जी बस तैयार होने के बाद लोग दूर तक लाइन लगाकर बड़े शोक से खाकर चटकारा मारते थे। सूरज की पहली किरण के साथ चला स्वाद का सफर चलता रहता है। ठंडई होने बाद नवाबों के शहर में लोग लाइन लगाकर हब्शी हल्वा खरीदते थे। परंतु जनसंख्या बढ़ने और सड़कें चौड़ी होने के कारण तड़के में कमी आई है। जायके वाले व्यंजनों के साथ चाइनीज चाउमीन-मोमो और चॉप्सी से लेकर हब्शी हल्वा और दम बिरयानी तक नए-नए अंदाज में देखने-चखने को मिल रही है। दुनियाभर के लोग जब भी रामपुर आते तो सड़क किनारे लगे ठेलों पर तीखे और स्वादिष्ट व्यंजनों को बड़े ही शोक से खाते हैं। शहर में हजारों सब्जी ओर फलों के ठेले वाले ऐसे हैं जिन्हें अभी तक स्वनिधि गलियारे योजना के तहत दुकान नहीं मिल सकी है । जिसकी वजह से यह लोग सड़क किनारे अपने ठेले लगाकर गुजर बसर कर रहे हैं। बातचीत में टीलों बालों ने बताया की सब्जी और फल बेचने के लिए उनके पास प्रयाप्त स्थान नहीं है जिसकी वजह से वह लोग सड़क किनारे ठेले लगाकर अपना ओर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। सब्जी विक्रेताओं ने बताया कि पूर्व में प्रशासन से स्वनिधि गलियारे के तहत दुकान की मांग की थी परंतु दुकान नहीं मिली। ठेले लगाने के लिए के लिए स्थान उपलब्ध कराने की मांग भी कर चुके हैं।कहा कि चल फिरकर ही ठेले से सब्जी और फल बेच रहे हैं। कभी कभार शहर में भीड़ ज्यादा होने कारण या सड़क किनारे खड़ी वाहनों और दुकानदारों द्वारा सामान बाहर रखने से जाम की समस्या हो जाती है। जिसके बाद पुलिस प्रशासन द्वारा उन्हें वहां से फटकारकर भगा दिया जाता है। शहर में पार्किंग की व्यवस्था पर्याप्त न होने से जाम लगने का डर भी बना रहता है। जिस कारण प्रशासन द्वारा उन्हें वहां पर ठेला लगाने नहीं दिया जाता है। यात्री वाहनों से बाजार में आवागमन होने के कारण हमेशा जाम के हालात बन जाते हैं। नगर में जाम न लगे इस कारण बसों को बाजार में खड़ा नहीं किया जाए। सड़क के दोनों ओर सब्जी की दुकानें और ठेले खड़े होते हैं। ऐसे में प्रमुख बाजार में रोजाना ट्रैफिक जाम की स्थितियां बनती है। लोगों द्वारा भी इसकी शिकायत की लेकिन इसके बावजूद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका है। सब्जी व अन्य ठेले बदस्तूर सड़क किनारे और जहां जगह मिले वहां आकर खड़े हो जाते हैं। जिससे भीड़ भाड़ वाले क्षेत्रों में जाम के हालात आए दिन बनते रहते हैं। सड़क के दोनों ओर कई सौ गरीब मजदूर अपने ठेले और जमीन पर दुकान लगाकर अपना गुजर बशर कर रहे हैं। शहर में सरकार द्वारा अब तक 300 स्वनिधि गलियारे के तहत दुकानें बनाई जा चुकी हैं, परंतु अभी सिर्फ 200 दुकानों का ही आवंटन हो पाया है। जबकि रेहड़ी और ठेले लगाने बालों की तादात हजारों में है।

दूसरे राज्यों की सरकारें करती हैं मदद, तीना सौ दुकानें नाकाफी

ज्वालानगर में सब्जी का ठेला बालों के मुताबिक दूसरे राज्यों की सरकारें शेड, पानी, बिजली और सुरक्षा की व्यवस्था देती है। इसके बाद वह उम्मीद करती है कि वेंडिंग जोन को सभी वेंडर व्यवस्थित रखें। वेंडर इसका खास ख्याल भी रखते हैं। शहर के लोग ज्यादातर चाट, मोमो, चाउमीन वर्गर का व्यवसाय करते हैं। शहर में कई हजार लोग ठेला और रेहड़ी लगाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इतने बड़े शहर में सरकार ने स्वनिधि गलियारे के तहत सिर्फ 300 दुकानें बनाई हैं जो नाकाफी हैं।

रेस्टोरेंट में हर रोज लंच-डिनर करना संभव नहीं

ज्वालानगर में कोचिंग संस्थान होने की वजह से कोचिंग के कारण बच्चे वहीं पर कमरे किराए पर लेकर पढ़ाई करते हैं । जिसमें ज्यादातर बच्चे किसान और मजदूरों के होते हैं,इसीलिए उनका बड़े रेस्टूरेंट में हर रोज लंच-डिनर करना संभव नहीं। इसीलिए लोगों को कम पैसों में ठेलों पर स्वादिष्ट खाना मिलता है। इसके बाद स्ट्रीट फूड वेंडर उन्हें सस्ता जायका परोसते हैं। हालांकि जब सेहत और पेट में गड़बड़ होती है तो सबसे पहले स्ट्रीट फूड वेंडर कोसे जाते हैं।

ठेलों पर शौक से खाते हैं स्वादिष्ट व्यंजन लेकिन जगह नाकाफी

जायके वाले व्यंजनों के साथ चाइनीज चाउमीन-मोमो और चाट से लेकर हब्शी हल्वा और दम बिरयानी तक नए-नए अंदाज में देखने-चखने को मिल रही है। दुनियाभर के लोग जब भी रामपुर आते तो सड़क किनारे लगे ठेलों पर तीखे और स्वादिष्ट व्यंजनों को बड़े ही शोक से खाते हैं। परंतु सड़कों किनारे जगह न होने के कारण इनकी रेहड़ी और ठेले बालों की तादात धीरे-धीरे कम होती जा रही है। सरकार को रेहड़ी और ठेले वाले मजदूरों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अधिक से अधिक स्वनिधि गलियारे बनाना चाहिए। जिससे रेहड़ी पटरी वालों की समस्याओं का समाधान हो सके।

साथ जुड़कर ही मजबूत रह सकते हैं स्ट्रीट वेंडर

सब्जी का ठेला लगाने वाले कहते हैं कि देश के अन्य हिस्सों में फेरी-पटरी कानून के तहत वेंडरों को उनके अधिकार मिलते हैं। जबकि अपने यहां अभी यह जागरूकता नहीं आ सकी है। वेंडरों में कई बार व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता या आपसी तनातनी भी इस फूट का कारण बनती है। पड़ोसी के नुकसान या कार्रवाई पर साथ खड़े न होना आपके लिए भी नुकसानदायक है। उन्हें गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना होगा । शहर के लोग आज भी चटपटे स्वाद के लिए ठेले ही खोजते हैं। ठेले व रेहड़ी वालों की एकता से ही उनका विकास संभव है।

सुझाव एवं शिकायतें

1. प्रशासनिक विभाग और अधिकारी बिना जांच कार्रवाई जुर्माना करते हैं।

2. स्ट्रीट वेंडरों को अब भी असंगठित व्यवसाय में गिना जाता है

3. बिजली-पानी, रोशनी के लिए हमें अपनी व्यवस्था करनी पड़ती है

4. दिन के 16 घंटे सड़क पर रहने वाले हम लोगों के लिए कोई स्वास्थ्य योजना नहीं

5. स्थानीय लोगों और विभागों का रुख स्ट्रीट वेंडरों के प्रति मानवीय नहीं

6. प्रशासन और आसपास के लोग हमें हमेशा अलग ही निगाह से देखते हैं।

7. इलाके में गंदगी की बात आती है तो सीधा आरोप स्ट्रीट वेंडरों पर आता है

8. शहर में वेंडिंग जोन की कमी, इससे व्यवसाय करने वालों पर दबाव ज्यादा

1. रेहड़ी और ठेलों पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए बने कार्ड और पास

2. सड़कों पर निर्माण या तोड़फोड़ की दशा में रेहड़ी और ठेले बालों को जगह दी जाए।

3. अन्य शहरों की तरह शेड, सफाई और शौचालय की व्यवस्था हों

4. बिल के आधार पर बिजली-पानी का कनेक्शन दे प्रशासन

5. स्ट्रीट वेंडरों को संगठित व्यवसाय का दर्जा मिले, इनका रजिस्ट्रेशन भी हो

6. शिकायतों पर एकपक्षीय कार्रवाई न हो दोनों पक्षों की सुने सरकार

7. साफ-सफाई की व्यवस्था कराई जाए, कूड़ा फेंकने की जगह दी जाए

8. वेंडरों का स्वास्थ्य बीमा कराए सरकार, मिले पहचान।

बोले दुकानदार

ज्वालानगर में इसी जगह पर 5 साल ठेला लगा रहा हूं। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते स्वनिधि गलियारे में दुकान नहीं ले पाया। इसी दुकान से बच्चों की परवरिश का खर्च निकालता हूं।

-देवीराम, फल विक्रेता

यहीं फल और सब्जी बेचते हैं, सरकार सड़क चौड़ी करती है तो हमें उठाकर भगा दिया जाता है। कहीं और ठिया जमाते हैं फिर कुछ समय बाद हटा दिया जाता है।

-उवैस, फल विक्रेता

किसी भी मेहनतकश से हम कम मेहनत नहीं करते। मगर यहां जगह की बड़ी मारामारी है। बड़ी दुकान और घर वाले अपने दरवाजे के सामने नहीं टिकने देते।

-गुड्डू, सब्जी विक्रेता

हमारी कोशिश हमेशा लोगों को बेहतर स्वाद देने की होती है। दो दिन दुकान न लगे तो लोग पूछते भी हैं कि क्यों नहीं आ रहे। हम अतिक्रमणकारी ही रह जाते है।

-राजकुमार, फास्ट-फूड विक्रेता

हम स्वाद के रखवाले हैं। मांग के हम अर्थव्यवस्था में भी एक आम व्यवसायी जितना योगदान करते हैं। सिस्टम को भी यह बात ध्यान में रखना चाहिए।

-हरीश रस्तोगी, शॉक्स, मफरल विक्रेता

हमारे पास न बिजली का कनेक्शन है न पानी का। सरकारी विभाग जाम, गंदगी, प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जबकि हम अपने आसपास साफ सफाई रखते ह।

-शाने अब्बास, दुकानदार

हम भले समाज के निचले पायदान पर काम कर रहे हों। मगर हमारा योगदान कम नहीं है। हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे भी यह काम करें, इसलिए उनकी पढ़ाई अच्छे स्कूलों में करा रहे हैं।

-राकेश रस्तोगी, गर्म कपड़े विक्रेता

समय के साथ हमने बदलाव किया है। अब कूड़ा सड़क पर नहीं फेंका जाता। रात में ठेला बंद करने से पहले आसपास की पूरी सफाई की जाती है। हम सुरक्षा की उम्मीद करते हैं। -जगदीश, पकौड़े वाला

स्वनिधि गलियारे में दुकान तो मिली है, परंतु वहां तक ग्राहक नहीं पहुंच पाते। इसलिए वह ठेले से ही फल बेचकर अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं।

-प्रेमशंकर, सब्जी विक्रेता

कई साल से ठेला लगाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं, परंतु अभी तक स्वनिधि गलियारे में दुकान आवंटित नहीं हुई, जिसकी वजह से सड़क किनारे लगाना पड़ता है। -जागन, सब्जी विक्रेता

रेहड़ी लगाने के बाद हमेशा डर बना रहता है कि प्रशासन हमें कब यहां से खदेड़ दे। कई साल से अभी तक हमें दुकान आवंटित नहीं हुई है। इससे हमें समस्या का सामना करना पड़ता है।

-आसिफ, चप्पल विक्रेता

स्थाई ठिया न होने के कारण सड़क किनारे ठेले लगा लेते, परंतु भीड़ ज्यादा होने जाम की स्थिति बन जाती है। जिसके बाद पुलिस लाठियां भांजकर भगा देती है।

-विकास, सब्जी विक्रेता

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।