बोले प्रयागराज : अंतिम संस्कार में परेशानियां बेशुमार, मुक्तिधाम को सुविधाओं की दरकार
Prayagraj News - प्रयागराज के दारागंज श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए आने वाले लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। गर्मी में घाट तक पहुंचने के लिए कच्चे और बालू भरे रास्ते से गुजरना पड़ता है। यहां पीने...
प्रयागराज, हिन्दुस्तान टीम। दारागंज श्मशान घाट त्रिवेणी के करीब होने की वजह से इसकी विशेष मान्यता है। यही कारण है कि न सिर्फ शहर बल्कि जिले के ग्रामीण इलाकों के साथ ही प्रतापगढ़, जौनपुर, कौशाम्बी से लेकर रीवा तक से लोग अंत्येष्टि के लिए यहां आते रहते हैं लेकिन दूरदराज से पार्थिव शरीर लेकर आने वालों को यहां सुविधाओं के अभाव में काफी तकलीफ उठानी पड़ती है जिससे उनकी परेशानी और बढ़ जाती है। गर्मी के दिनों में मुख्य मार्ग से नदी का पाट करीब छह सौ मीटर से अधिक दूर हो जाता है। घाट तक पहुंचने के लिए लोगों को बालू भरे कच्चे रास्ते से होकर जाना पड़ता है पड़ता है।
चकर्ड प्लेट हटा दिए जाने कारण अंत्येष्टि में आए लोगों की गाड़ियां और शव वाहन, एम्बुलेंस आदि बालू में फंस जाते हैं। यहां आने वालों के लिए पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है। शेड न होने के कारण लोग शास्त्री पुल के नीचे अथवा चाय-पान की ओट में किसी तरह समय काटते हैं। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने बोले प्रयागराज के तहत इस मुक्तिधाम पर आने वालों से यहां की दिक्कतों के बारे में पूछता तो लोगों ने क्रमवार समस्या गिनाने के साथ यहां भी रसूलाबाद की तरह पक्का घाट और सुविधाएं मुहैया कराए जाने की जरूरत बताई। दारागंज श्मशान पर अंतिम संस्कार के लिए आने वालों को तमाम परेशानियों से गुजरना पड़ता है। गर्मी में गंगा के सिमटने के चलते वह मुख्य मार्ग से काफी दूर हो गई हैं। ऐसे में उन तक पहुंचने के लिए बालू भरे मार्ग पर आधा किलोमीटर से अधिक दूरी तय करना पहाड़ चढ़ने से कम नहीं है। चकर्ड प्लेट न होने के कारण आए दिन वाहन बालू में फंस जाते हैं। हर दूसरे दिन शव वाहन एवं एम्बुलेंस बालू में फंसे दिखते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि कुम्भ मेला के दौरान बिछाई गई चकर्ड प्लेटें मेला के बाद हटा दी गईं। लोगों ने ऐतराज किया तो बताया गया कि यह चकर्ड प्लेटें मेला की हैं, श्मशान घाट के लिए चकर्ड प्लेटें नगर निगम की ओर से लगाई जाएंगी। दो माह बीत गए लेकिन नगर निगम ने चकर्ड प्लेट नहीं लगाई जिसका खामियाजा शव लेकर आने वालों को भुगतना पड़ रहा है। स्थिति की गंभीरता का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि घाट पर रिक्शा या ट्रॉली लकड़ी लेकर नहीं पहुंच पाते, ट्रॉली बालू में फंस जाती है। विक्रेता घोड़ा गाड़ी से लकड़ी पहुंचाते हैं। लोगों ने नगर निगम के जोनल अधिकारी, तत्कालीन जिलाधिकारी कुम्भ मेला , नगर आयुक्त एवं महापौर को समस्या से अवगत कराया लेकिन चकर्ड प्लेटें नहीं बिछ पाई। इसके साथ ही पेयजल की कोई व्यवस्था न होने के चलते यहां आने वाले या तो पानी अपने साथ लेकर आएं या फिर दुकान से खरीद कर पीएं। अरसे पहले यहां एक हैंडपम्प लगा था जिसके अब अवशेष ही बचे हैं। भीषण गर्मी में लोग पानी की तलाश में परेशान होते हैं। नहीं बन सका शेड, शास्त्री पुल ही सहारा इस श्मशान घाट पर लोगों के बैठने के लिए न तो बेंच है न ही शेड लगाए गए हैं। शेड न होने के कारण लोगों को धूप से बचने के लिए शास्त्री पुल का सहारा लेना पड़ता है। कुछ लोग शव जलने तक चायपान की दुकान की शरण लेते हैं। कुछ दिन पूर्व यहां शेड बनना शुरू हुआ तो लोगों को उम्मीद थी कि इसके बाद लोगों को छांव की तलाश में इधर उधर नहीं भटकना पड़ेगा, लेकिन ढांचा खड़ा रह गया और शेड नहीं लग पाया। स्थानीय लोगों का कहना है कि जिस स्थान पर शेड डाला जा रहा था उसे सेना ने अपनी भूमि बता कर निर्माण रोक दिया जिससे शेड का निर्माण अधर में रह गया। बालू में फंस चुकी है महापौर की गाड़ी करीब सप्ताह पूर्व यहां अंतिम संस्कार में शामिल होने आए महापौर की गाड़ी भी कच्चे मार्ग पर बालू में फंस चुकी है। स्थानीय लोगों ने बताया कि महापौर की गाड़ी फंसने पर लोगों ने किसी तरह पहिये के नीचे से बालू निकाली तब कहीं जाकर उनकी कार आगे बढ़ पाई। लोगों का कहना है कि महापौर की गाड़ी फंसने के बाद भी चकर्ड प्लेट न बिछना तमाम सवाल खड़े कर रहा है। निगम चाहे तो चकर्ड प्लेटें बिछाकर समस्या का समाधान कर सकता है लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो सका यह सवाल अनुत्तरित है। घाट पर नहीं रहती नाव श्मशान घाट पर नाव की व्यवस्था होने से परेशानी होती हैं। दाह संस्कार के बाद दिवंगत की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने के लिए परिजनों को गंगा में उतराना पड़ता है जिसमें हमेशा खतरा बना रहता है। कुछ लोग तो मजबूरी में दूर से अस्थियां विसर्जित कर चले जाते हैं। लोगों का कहना है कि अगर घाट पर नाव की व्यवस्था हो तो यह परेशानी न उठानी पड़े गुजरना पड़े। घाट पर नाव रहे और उसका शुल्क निर्धारित हो तो काफी सहूलियत होगी। प्रशासन के नियंत्रण में हो सभी मूल्य अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पर आने वालों को लकड़ी और अंतिम संस्कार में प्रयुक्त अन्य सामानों के मूल्य की जानकारी नहीं रहती। उन्हें यह भी पाता नहीं रहता कि कहां, कितना खर्च होना है, इसका फायदा भी कुछ लोग उठाते हैं। लोगों का कहना है कि यदि मूल्य निर्धारित कर दिए जाए और उन पर प्रशासन का नियंत्रण हो लोग मनमाना दाम देने से बच सकेंगे और उन्हें काफी राहत मिल सकेगी। मजबूरी में विद्युत शवदाह गृह का करते हैं रुख एक तरफ जहां दारागंज श्मशान घाट पर तमाम समस्याएं हैं वही बांध के ऊपर बने विद्युत शवदाह गृह में बिजली, पानी, लोगों के बैठने के लिए बेंच और शेड आदि की मुकम्मल व्यवस्था है। यहां शवदाह का खर्च भी घाट के खर्च से काफी कम आता है। यहां का खर्च कम होने और घाट पर सुविधाएं न होने के कारण मजबूरी में लोग यहां आते हैं। लोगों ने बताया कि अधिकतर यहां पोस्टमार्टम वाले शव ही आते हैं। ऐसे लोग जो अधिक खर्च वहन नहीं कर पाते वह भी इसी को तरजीह देते हैं। शिकायतें और सुझाव शिकायतें -- -घाट तक जाने के लिए रास्ता नहीं है, कच्चे मार्ग पर चकर्ड प्लेट नहीं बिछाई गई है, वाहन बालू में फंस जाते हैं। -दूरदराज से आए लोगों के लिए पीने के पानी का कोई इंतजाम नहीं है, हैंडपम्प भी खराब हो चुका है। -शेड न होने के कारण लोगों को शास्त्री पुल के नीचे या चायपान की दुकान पर बैठना पड़ता है। -घाट पर नाव न होने से लोगों को अस्थि विसर्जन में दिक्कत होती है। -लकड़ी व अन्य सामग्री का मूल्य निर्धारित न होने से लोग परेशान रहते हैं। समाधान -घाट तक जाने वाले कच्चे मार्ग को समतल कराकर उस पर चकर्ड प्लेटें बिछाई जाएं। -पेयजल के लिए दो हैंडपम्प लगे और पचास मीटर की दूरी पर पम्प से जोड़कर नल लगे। -बेंच की व्यवस्था की जाए ताकि लोग बैठ सकें, छांव के लिए शेड लगाया जाए। -घाट पर नाव की व्यवस्था हो और उसका शुल्क निर्धारित किया जाए। -लकड़ी एवं अंतिम संस्कार में प्रयुक्त वस्तुओं के मूल्य निर्धारित हो, सूची भी लगाई जाए। --हमारी भी सुनें--- दारागंज पुराने श्मशान घाटों में से है, यहां की काफी मान्यता है इसलिए लोग दूर-दूर से आते हैं। जरूरी सुविधाएं न होने से लोगों को काफी परेशानी होती है।-बागीश दुबे घाट पर सभी सुविधाएं हों तो लोग विद्युत शवदाह गृह के स्थान पर वहीं जाना चाहेंगे। घाट तक जाने का रास्ता बहुत मुश्किल है, लोग परेशान रहते हैं।-राम सुजावन कुशवाहा लोग परेशानी से बचने के लिए घाट की बजाय विद्युत शवदाह गृह पर आते हैं। अगर घाट पर सुविधा मिले तो लोग वहीं जाना पसंद करेंगे।-अशोक कुमार श्मशान घाट तक पहुंचने का रास्ता बेहद खराब है, पेयजल की भी व्यवस्था नहीं है जबकि शवदाह गृह में बिजली, पानी, शेड सभी सुविधाएं हैं।-विजय कुमार घाट पर आने वालों के लिए जरूरी सुविधाएं होनी चाहिए। लोग दूर-दूर से यहां आते हैं जिन्हें हर तरफ समस्याएं झेलनी पड़ती हैं।-दिनेश कुमार रसूलाबाद की तरह यहां भी पक्का घाट बनाकर जरूरी सुविधाएं प्रदान की जाएं तो दूरदराज से आए लोगों को काफी सहूलियत होगी।-ननकऊ घाट पर आने-जाने में परेशानी होती है, पानी भी नहीं मिलता, बैठने की भी व्यवस्था नहीं है जबकि विद्युत शवदाह गृह में सभी सुविधाएं हैं।-हरिलाल यहां लोग दो-तीन सौ किमी से भी आते हैं जिन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। कम से कम रास्ते पर चकर्ड प्लेट ही बिछा दी जाए तो काफी सहूलियत होगी।-वीरेन्द्र यहां की मुख्य समस्या घाट तक जाने वाले मार्ग पर चकर्ड प्लेट का न होना है, लोगों के वाहन बालू में फंस जाते हैं। चकर्ड प्लेट बिछ जाए तो राहत मिले।-मनी देवी लोग दूर-दूर से यहां दु:ख में आते हैं जिनकी तकलीक यहां की समस्याएं और बढ़ा देती हैं। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि लोगों को सहूलियत मिल सके।-आदित्य यहां न तो नल लगे हैं न हैंडपम्प की व्यवस्था है। पानी के लिए लोगों को इधर-उधर भटकतना पड़ता है। दुकान से पानी खरीदते हैं तब प्यास बुझाते हैं।-मौजी लाल यहां पीने के पानी का इंतजाम हो जाए और मार्ग पर चकर्ड प्लेटें बिछ जाए तो शव लेकर आने वालों को काफी सहूलियत हो जाएगी। शेड भी बनाना जरूरी है।-गोरेलाल शेड न होने से लोग धूप में इधर-उधर छांव तलाशते रहते हैं। शास्त्री पुल ही धूप से बचने का एकमात्र आसरा है जिसके नीचे लोग बैठे रहते हैं। शेड होता तो यह परेशानी न होती।-राज मार्ग को समतल कराकर चकर्ड प्लेट लगे, पानी की व्यवस्था हो, प्रसाधन केन्द्र बने, शेड का निर्माण हो और घाट पर नाव लगे तो काफी राहत हो जाएगी।-नीरज गंगा स्नान के लिए सुबह-शाम इसी बालू भरे मार्ग से होकर जाना पड़ता है। दुपहिया और चार पहिया वाहन बालू में फंस जाते हैं जिससे लोग परेशान होते हैं।-गया प्रसाद यहां भी रसूलाबाद की तरह पक्का निर्माण कर सुविधाएं दी जाएं तो लोगों को काफी राहत मिल सकती है। यहां न शेड हैं न पानी की व्यवस्था, सड़क भी नहीं है।-राजेन्द्र पासी मार्ग पर चकर्ड प्लेट हटने के बाद से लोग परेशान हैं, बालू भरे मार्ग पर गाड़ियां फंस जा रही हैं। चकर्ड प्लेटें लग जाए तो काफी सहूलियत हो जाए।-धर्मेंद्र लोग प्रतापगढ़, जौनपुर, कौशाम्बी और रीवा से शव लेकर अंतिम संस्कार के लिए यहां आते हैं। समस्याएं काफी हैं जिनका समाधान जरूरी है।-नितिन घाट तक आने-जाने के लिए रास्ता होना चाहिए। रास्ता बालू भरा है जिससे काफी परेशानी होती है। चकर्ड प्लेटें लग जाए तो आने जाने की समस्या दूर हो जाए।-राज भारतीया
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