दूसरे दिन भी गुलजार रहा ठुठवा मेला
कार्तिक पूर्णिमा से शुरू हुआ ठुठवा मेला दूसरे दिन भी भीड़भाड़ से भरा रहा। हजारों लोग मेले में पहुंचे, जबकि स्नान घाटों पर सन्नाटा था। लोग खरीददारी कर रहे थे और बच्चे झूलों का आनंद ले रहे थे। यह मेला...
कार्तिक पूर्णिमा से शुरू हुआ ठुठवा मेला दूसरे दिन भी गुलजार रहा। शनिवार को दूसरे दिन हजारों लोग मेला पहुंचे। अलबत्ता स्नान के लिए बने घाटों पर सन्नाटा रहा। लोगों ने खरीददारी की,बच्चों ने झूला और खेल तमाशों का लुत्फ उठाया। धौरहरा क्षेत्र में घाघरा नदी के तट पर पिछले 419 सालों से ऐतिहासिक मेला लगता आ रहा है। एक सप्ताह से ज्यादा समय तक चलने वाले इस मेले के दूसरे दिन भी करीब एक लाख लोग मेला पहुंचे। मेले में खरीददारी की इच्छा रखने वाले ज्यादातर लोग दूसरे दिन मेला पहुंचे। लोगों ने अपनी जरूरत की चीजों की जमकर खरीददारी की। बच्चों ने भी खेल तमाशों और झूलों का लुत्फ उठाया। ठुठवा मेला क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला है। जिसे 419 साल पहले ईसानगर स्टेट के राजाओं ने शुरू कराया था। तब से यह मेला लगातार लगता आ रहा है। इस प्रसिद्ध मेले में घर गृहस्थी का सारा सामान मिलता है।
स्थानीय शिल्पकार और कारीगर लकड़ी और विभिन्न धातुओं से तमाम सामान बनाकर मेले में बिक्री के लिए लाते हैं। दूर दराज के लोग मेले से इन चीजों को खरीदकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। भले ही बाजारवाद की मार इस ऐतिहासिक मेले पर भी पड़ी है। पर कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले इस मेले में रोजाना जरूरतों के अलावा दान-दहेज के भी सामान ख़रीद क्षेत्रवासियों की पहली प्राथमिकता रहती है। घाघरा तट पर मेला खत्म होने के बाद यही मेला यहां से उठकर शारदा नदी के किनारे डेबर गांव के पास लगेगा। डेबर में भी करीब हफ्ते भर तक मेला लगा रहता है। कार्तिक पूर्णिमा को कल्पवास और धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्णाहुति हो गई थी। अलबत्ता संत समुदाय द्वारा भोज और भंडारों का आयोजन जारी रहा। मेला स्थल पर धार्मिक प्रवचनों और कथा,रामायण का भी सिलसिला दूसरे दिन बना रहा।
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