बढ़ती लागत और कठोर नियम मुश्किल बना रहे कारोबार
देशभर में ताले, हार्डवेयर और मूर्तिकला के लिए पहचाने जाने वाले अलीगढ़ के लघु व अति लघु उद्योग आज नीतिगत उलझनों के चलते अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्षों से जो छोटे कारीगर और पारंपरिक उद्यमी इस शहर की पहचान बनाए हुए थे।
सरकारी योजनाएं, जो उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए बननी चाहिए थीं, वे अब लघु उद्योगों के लिए बाधा बनती जा रही हैं। यह चिंता सोमवार को ‘बोले अलीगढ़’ अभियान के अंतर्गत ब्रज औद्योगिक व्यापार मंडल के पदाधिकारियों और उद्यमियों के साथ संवाद में खुलकर सामने आई।
ताला और तालीम के लिए देश दुनिया में अपनी पहचान बनाए अलीगढ़ का उद्योग तमाम समस्याओं से जूझ रहा है। बोले अलीगढ़ अभियान के तहत हुए संवाद में व्यापारियों ने बताया कि जीएसटी विभाग की कार्यशैली से ईमानदार व्यापारी बेहद परेशान हैं। विभाग द्वारा सर्वे, नोटिस और छापों के ज़रिये ऐसे व्यापारियों को निशाना बनाया जा रहा है जो पूरी तरह नियमों का पालन करते हैं। इसके उलट अवैध परिवहन, बिना पंजीकरण के संचालन और टैक्स चोरी में लिप्त इकाइयों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यह दोहरी नीति पूरे व्यापारिक तंत्र में असंतुलन पैदा कर रही है। छोटे व्यापारियों में भय का माहौल है और वे अपने उद्योगों को बंद करने की कगार पर पहुंच रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी नीतियों को यदि नीचे तक के उद्यमी की जरूरत के अनुरूप नहीं बनाया गया, तो अलीगढ़ की वो पहचान जो देश और विदेश में सालों से चमक रही है, धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। नीति में बदलाव और जमीनी समझदारी के साथ अगर सरकार ने हस्तक्षेप किया, तो न केवल अलीगढ़ की लघु औद्योगिक ताकत फिर से खड़ी होगी। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में यह एक ठोस और स्थायी कदम भी होगा।
नीलामी की नीति ने बढ़ाई मुश्किलें
-व्यापारियों ने बताया कि हाल ही में अलीगढ़ के ख्यामई क्षेत्र में डिस्टिक इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन द्वारा विकसित किए गए नए औद्योगिक क्षेत्र में भूखंडों को नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से वितरित करने की योजना बनाई गई है। इस योजना में न्यूनतम आरक्षित दर 3300 रुपए प्रति वर्ग मीटर रखी गई है। जो लघु और कारीगर आधारित उद्योगों के लिए व्यावहारिक नहीं है। इस नीलामी प्रक्रिया को लेकर व्यापारियों ने गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि नीलामी में बड़े पूंजीपति ही सफल हो पाएंगे, जिससे असली छोटे उद्यमी पीछे रह जाएंगे। लघु कारीगरों के पास सीमित पूंजी होती है, वे इतनी ऊंची दरों पर भूमि नहीं खरीद सकते। इसके अलावा कास्टिंग जैसे उद्योग छोटे भूखंडों में परिवार सहित संचालित होते हैं। ये लघु व्यवसाय इतनी महंगी और व्यावसायिक भूमि पर स्थानांतरित नहीं हो सकते।
डिफेंस कॉरिडोर में भी हाशिए पर लघु उद्योग
-सरकार द्वारा घोषित डिफेंस कॉरिडोर परियोजना में भी भूमि आवंटन केवल बड़े और रक्षा उत्पाद निर्माण करने वाले उद्यमियों तक सीमित रहा। पारंपरिक इकाइया जैसे ताले, मूर्तिया, हार्डवेयर निर्माण जो वर्षों से अलीगढ़ की पहचान रहे हैं, इनसे वंचित रह गए। इससे न केवल क्षेत्रीय असंतुलन पैदा हुआ। आत्मनिर्भरता के प्रयास भी अधूरे रह गए।
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कुछ प्रमुख मांगे
-औद्योगिक भूखंडों की नीलामी प्रक्रिया तत्काल समाप्त की जाए।
-भूमि का सीधा आवंटन लघु एवं अति लघु उद्यमियों को किया जाए। जिससे वे उचित दर पर अपने उद्योग स्थापित कर सकें।
-काशीराम आवास योजना की तर्ज पर, फ्री ऑफ कॉस्ट या न्यूनतम दर पर भूमि आवंटन कर एक माइक्रो इंडस्ट्रियल हब की स्थापना की जाए।
-डिफेंस कॉरिडोर जैसी योजनाओं में पारंपरिक उद्योगों को भी समान अवसर मिले ताकि स्थानीय इकाइया राष्ट्रीय उत्पादन में भागीदारी कर सकें।
-पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए इन उद्योगों का नियोजित रूप से पुनर्स्थापन किया जाए। जिससे शहरी प्रदूषण भी कम हो और उद्योग भी टिकाऊ रूप से विकसित हो सकें।
बोले कारोबारी
हम ईमानदारी से व्यापार करते हैं। टैक्स भरते हैं, फिर भी विभागीय नोटिस और छापों का डर बना रहता है। नई जमीन लेने की सोच भी नहीं सकते, क्योंकि नीलामी प्रक्रिया से छोटा व्यापारी पहले ही बाहर है।
-सौरभ सिक्स संस, प्रांतीय अध्यक्ष, ब्रज औद्योगिक व्यापार मंडल
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सरकार कहती है आत्मनिर्भर बनो, लेकिन नीतियां पूंजीपतियों के अनुकूल हैं। 3300 रुपए /मीटर की दर पर छोटे व्यापारी कैसे प्लॉट लेंगे। हम चाहकर भी अपनी यूनिट नहीं बढ़ा सकते। ये साफ भेदभाव है।
पंकज वार्ष्णेय, प्रांतीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष
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जो व्यापारी वर्षों से अलीगढ़ में कारोबार कर रहे हैं। उन्हें ही नए इंडस्ट्रियल एरिया से बाहर किया जा रहा है। नीलामी से केवल बाहरी और बड़े पूंजीपति लाभ ले सकेंगे। हमें हक से वंचित न किया जाए।
संदीप सिक्स संस
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जीएसटी का आतंक खत्म ही नहीं हो रहा। रिटर्न सही भरने के बाद भी बेवजह नोटिस आ जाते हैं। विभाग सहयोग नहीं करता। उल्टा जुर्माने की धमकी देता है। इससे व्यापार में अस्थिरता आ रही है।
मनीष डबल नाइन
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हमारे जैसे मध्यम स्तर के व्यापारी नई जमीन पर यूनिट लगाना चाहते हैं। लेकिन नीलामी की शर्तें इतनी कठिन हैं कि हम हिस्सा ही नहीं ले सकते। क्या ये ''मेक इन इंडिया'' का तरीका है।
कपिल अग्रवाल
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व्यापारी को सुविधा नहीं, सिर्फ जांच और नोटिस मिलते हैं। नए प्लॉट के नाम पर नीलामी की तलवार लटका दी गई है। ये पूरी नीति छोटे व्यापारियों को पीछे धकेलने का प्रयास है।
अरुण बंसल
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हमारे व्यापार की नींव स्थानीय बाजारों में है। सरकार को चाहिए कि वो स्थानीय व्यापारियों को प्राथमिकता दे। लेकिन नीलामी में बाहर से आकर लोग जमीन ले लेंगे, तो अलीगढ़ का उद्योग कैसे बचेगा।
अमित गुप्ता
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हर साल कोई न कोई नियम बदल जाता है। व्यापारी को विभागीय नियमों के बीच ही जीना है। ऊपर से नीलामी में हिस्सा लेना ये हमारे लिए असंभव है। हम सरकार से सरल नीति की अपेक्षा रखते हैं।
दिनेश कुमार
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छोटे व्यापारियों के पास इतनी पूंजी नहीं होती कि ऊची दरों पर जमीन खरीद सकें। सरकार को चाहिए कि वह उन्हें रियायती दरों पर प्लॉट आवंटित करे ताकि वे भी विकास में भागीदार बन सकें।
मनोज गोयल
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हमारे शहर की पहचान छोटे उद्योगों से है, लेकिन अब लगता है सरकार इसे भूल रही है। जो लोग दशकों से यहां व्यापार कर रहे हैं, उन्हें ही नए विस्तार से बाहर किया जा रहा है।
संजीव गुप्ता
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प्लॉट्स की नीलामी में न पारदर्शिता है, न स्थानीय व्यापारी को मौका। हर बार वही लोग जमीन लेते हैं जिनके पास राजनीतिक या पूंजीगत पहुंच है। ये नीति छोटे व्यापारियों को खत्म कर रही है।
अमरदीप गुप्ता
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जीएसटी से पहले व्यापार में स्थिरता थी। अब हर वक्त डर का माहौल रहता है। कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए। इसके ऊपर प्लॉट की नीलामी, छोटे व्यापारी कहां जाएंगे।
पिंटू गुप्ता
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अलीगढ़ में व्यापार करना अब आसान नहीं रह गया। हर विभाग अपनी मनमानी करता है। सरकार को समझना चाहिए कि छोटे व्यापारी ही शहर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
बंटी सीमेंट
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हम तो बस यही चाहते हैं कि छोटे व्यापारी के लिए भी जमीन उपलब्ध हो। लेकिन नीलामी ने सारी उम्मीदें तोड़ दी हैं। बड़े लोग ही अब हर नीति में फिट बैठते हैं।व्यापारी हर मोर्चे पर परेशान है।
अनिल कुमार अन्नू
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किसी भी योजना का लाभ लेने के लिए फॉर्म तो भरते हैं। लेकिन फिर वही बड़े व्यापारी ही चयनित होते हैं। छोटे व्यापारी सिर्फ आंकड़ों में दिखाए जाते हैं। ऐसे तो व्यापार खत्म हो जाएगा।
विष्णु गोपाल
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हम सालों से सरकार से मांग कर रहे हैं कि जमीन हमें सीधी मिले। लेकिन हर बार नीलामी की बात सामने आ जाती है। इससे व्यापारी और भी हतोत्साहित हो गया है।
मनीष वार्ष्णेय
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अगर सरकार वास्तव में लघु व्यापारियों की परवाह करती है, तो उसे हमें प्राथमिकता पर रियायती दरों पर प्लॉट देने चाहिए। बिना जमीन के व्यापार कैसे बढ़ेगा।
सुगम बंसल
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सरकार सिर्फ बड़े उद्योगों को ध्यान में रखती है, जबकि असल रोजगार छोटे व्यापारियों से पैदा होता है। हमें न अनुदान मिल रहा है, न जमीन, न सुविधा। केवल विभागों का शोषण झेल रहे हैं।
मनोज लालाजी
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बाजार में मंदी है, ऊपर से नीतिया ऐसी कि व्यापारी कोई विस्तार नहीं कर सकता। प्लॉट लेना तो सपना बन गया है। सरकार से अपील है कि नीलामी हटाकर सीधा आवंटन करे।
हरिओम शर्मा
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व्यापार के लिए माहौल नहीं मिल रहा। विभागों की जांच, बिजली दरें, नीलामी हर तरफ से व्यापारी ही घिरा है। हम कैसे नए व्यापार की शुरुआत करें। जब माहौल की अनुकूल नहीं है।
सुमित अग्रवाल
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छोटे व्यापारी अगर जमीन नहीं ले सकते, तो नए उद्यम कैसे शुरू करेंगे। सरकार को चाहिए कि उन्हें आसान किश्तों में जमीन दे। ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
अमित अग्रवाल
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अब ऐसा लगता है कि सरकार सिर्फ कागजों में व्यापारी हितैषी है। असल में जब नीतियों की बात आती है, तो छोटे व्यापारी सबसे पहले दरकिनार कर दिए जाते हैं।
अंकित मित्तल
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अलीगढ़ के व्यापार की रीढ़ छोटे व्यापारी हैं। यदि इन्हें ही नई जमीन से वंचित रखा गया, तो शहर का उद्योग पीछे रह जाएगा। सरकार को यह समझना चाहिए। छोटे उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए।
रवि गोयल
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हमारे पास संसाधन सीमित हैं लेकिन हौसला बहुत है। सरकार को चाहिए कि वो हमारी ताकत बढ़ाए, न कि नीलामी जैसी नीतियों से हमारा रास्ता रोके।
राहुल गोयल
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