INDIA गठबंधन में शामिल कई दलों ने राष्ट्रपति भवन के न्योते में 'भारत' लिखे जाने को सरकार का डर बताया है। इस गठबंधन में समाजवादी पार्टी भी शामिल है। इस बीच सपा का ही 2004 का घोषणापत्र है।
मुलायम के बिना वह रणनीतिक रूप से कितने कुशल हैं, कैसे परिवार को साधते हैं और कैसे पार्टी को, यह सीट के चुनाव से पता चलेगा। मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट से 5 बार जीत हासिल की थी।
मुलायम सिंह यादव के सियासी दांव अकसर अप्रत्याशित होते थे और उन्हें सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती से लेकर तमाम नेताओं को अपने फैसलों से चौंकाया था। हालांकि इसके बाद भी उनके सबसे रिश्ते अच्छे थे।
बाबा रामदेव ने इस दौरान मीडिया से बात करते हुए कहा, 'नेताजी ने अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों को आगे बढ़ाया। उन्हें गरीब और पिछड़े लोग नेताजी कहते थे। राजनाथ सिंह भी इस मौके पर मौजूद थे।
सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का नाम समाजवादी राजनीति और पिछड़ों एवं वंचितों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए जाना जाएगा। शायद यही वजह है कि उनके निधन पर भी एक संयोग देखने को मिला है।
मुलायम सिंह यादव गांव में पंचतत्व में विलीन होने वाले हैं। इसे संयोग ही कहेंगे कि किशोरावस्था के दिनों में वह सैफई के जिस मेलाग्राउंड में अखाड़े में पहलवानी करते थे, वहीं उनका अंतिम संस्कार होना है।
मुलायम सिंह यादव अपने बेटे अखिलेश से ही खफा नजर आए, लेकिन जब चुनाव आयोग में पार्टी पर दावेदारी के लिए पत्र लिखने की बात आई तो पीछे हट गए। यही नहीं वह पार्टी में एकता की बातें करने लगे।
चंद्रशेखर की नाराजगी मोल लेकर वीपी सिंह को समर्थन देना हो या फिर न्यूक्लियर डील में फंसी कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार को बचाने के लिए समर्थन देना हो, मुलायम राजनीतिक अखाड़े के एक कुशल पहलवान थे।
मुस्लिम मतदाताओं के लिए मुलायम सबसे पसंदीदा राजनेता बने। बतौर मुख्यमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के पहले ही साल में मुलायम सिंह यादव ने एक ऐसा फैसला लिया जिसने देश और प्रदेश की राजनीति बदल दी।
मुलायम सिंह यादव ने 1996 में ज्योति बसु को संयुक्त मोर्चा की सरकार का प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, बसु शीर्ष पद पर काबिज नहीं हो पाए क्योंकि उनकी पार्टी सीपीएम ही इसके खिलाफ थी।