आपराधिक मामले में व्हाट्सएप या ई-मेल से आरोपी या संदिग्धों को नोटिस नहीं भेज सकती है पुलिस- सुप्रीम कोर्ट
प्रभात कुमार नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पुलिस अपराध
प्रभात कुमार नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पुलिस अपराध प्रक्रिया संहिता(सीआरपीसी) 1973 की धारा 41ए या फिर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 की धारा 35 के तहत आपराधिक मामले में आरोपी या संदिग्ध व्यक्तियों को व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से पेशी या पूछताछ के लिए नोटिस जारी नहीं कर सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि पुलिस सिर्फ सीआरपीसी की धारा 41ए या नये कानून बीएनएसएस की धारा 35 के तहत निर्धारित तरीके से ही नोटिस जारी कर सकती है। नये कानून बीएनएसएस में परीक्षण/जांच करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधनों के उपयोग की अनुमति देती है, लेकिन इस कानून की धारा 35 के तहत आरोपी या संदिग्धों को ई-नोटिस यानी व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की नोटिस की तामील करने की अनुमति नहीं देती है।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और राजेश बिंदल की पीठ ने इस बारे में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी करते हुए यह टिप्पणी की है। पीठ ने अपने आदेश में ‘यह स्पष्ट किया है कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से आरोपी या संदिग्ध व्यक्ति को पेशी के लिए जारी नोटिस को सीआरपीसी-41ए /बीएनएसएस की धारा 35 के तहत मान्यता प्राप्त और निर्धारित सेवा के तरीके के विकल्प या विकल्प के रूप में नहीं माना या मान्यता नहीं दी जा सकती है। पीठ ने कहा है कि कहा है कि सीआरपीसी की धारा 160/बीएनएसएस, की धारा 179 और सीआरपीसी की धारा 175/बीएनएसएस की धारा 195 के तहत आरोपी को सीआरपीसी /बीएनएसएस के तहत निर्धारित सेवा के तरीके के जरिए ही नोटिस जारी किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई मामले में ये दिशा-निर्देश पारित किए। इसी मामले में शीर्ष अदालत ने अनावश्यक गिरफ्तारी को रोकने और योग्य विचाराधीन कैदियों को जमानत देने में आसानी के लिए निर्देश जारी किए थे। शीर्ष अदालत ने समय-समय पर इस मामले को राज्यों और उच्च न्यायालयों द्वारा निर्देशों के पालन सुनिश्चित करने के लिए मामले को लंबित रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने अब यह दिशा निर्देश तब पारित किया, जब मामले में न्यायमित्र नियुक्त किए गए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने व्हाट्सएप के माध्यम से पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 41ए सीआरपीसी के नोटिस देने के मुद्दे को उठाया। उन्होंने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक कार्यालय द्वारा 26 जनवरी, 2024 के स्थायी आदेश का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि पुलिस महानिदेशक के कार्यालय द्वारा जारी आदेश पुलिस अधिकारियों को सीआरपीसी की धारा 41-ए/बीएनएसएस, 2023 की धारा 35 के तहत व्यक्तिगत रूप से या व्हाट्सएप, ई-मेल, एसएमएस या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक मोड के माध्यम से नोटिस देने की अनुमति देता है। वरिष्ठ अधिवक्ता लूथरा ने पीठ को बताया कि सतेंदर कुमार अंतिल के मामले में 2022 के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने राकेश कुमार बनाम विजयंत आर्य (डीसीपी) और अन्य मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें कहा गया था कि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से दिया गया नोटिस सीआरपीसी, 1973 की धारा 41-ए (जो अब बीएनएसएस, 2023 की धारा 35 है) के तहत सेवा के तरीके के रूप में नहीं माना जाता है क्योंकि यह सीआरपीसी, 1973 के अध्याय VI के अनुसार नहीं है। उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि पुलिस को नोटिस की तामील करने में सामान्य तरीके का पालन करने के बजाय व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से नोटिस देकर सीआरपीसी, /बीएनएसएस के प्रावधानों को दरकिनार करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके बाद पीठ ने विस्तृत दिशा निर्देश जारी किया।
प्रमुख दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को पुलिस द्वारा आरोपी संदिग्धों को सिर्फ सीआरपीसी की धारा 41-ए/बीएनएसएस, 2023 की धारा 35 के तहत नोटिस जारी करने के लिए एक स्थायी आदेश जारी करने का आदेश दिया। साथ ही, यह सुनिश्चित करने को कहा है कि कानून में निर्धारित तरीके के जरिए ही नोटिस की तामील हो क्योंकि व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से नोटिस की तामील को कानून के तहत मान्यता प्राप्त या निर्धारित तरीके के विकल्प के रूप में नहीं माना जा सकता है।
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सीआरपीसी की धारा 41-ए/बीएनएसएस की धारा 35 से संबंधित अपने-अपने पुलिस तंत्र को स्थायी आदेश जारी करते समय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ध्यान रखे।
- सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अपने-अपने पुलिस तंत्र को सीआरपीसी की धारा 160/बीएनएसएस की धारा 179 और सीआरपीसी की धारा 175/बीएनएसएस की धारा 195 के तहत आरोपी व्यक्तियों को नोटिस जारी करने के लिए एक अतिरिक्त स्थायी आदेश जारी करना चाहिए या सिर्फ कानून के तहत निर्धारित तरीके के माध्यम से।
- सभी उच्च न्यायालयों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी स्तरों पर जारी किए गए पिछले और भविष्य के निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने के लिए मासिक आधार पर ‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अपनी संबंधित समितियों की बैठकें आयोजित करनी चाहिए। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित अधिकारियों द्वारा मासिक अनुपालन रिपोर्ट पेश की जा रही है।
मामले पर अनुपालन के लिए अगली बार 18 मार्च, 2025 को विचार किया जाएगा।
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