पाकिस्तान ने क्यों लिया पहलगाम वाला रिस्क; भारत ने ऐक्शन लिया, तब भी 3 फायदों की उम्मीद
नरेंद्र मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री अच्छी है। इसके अलावा चीन से भी भारत ने तनाव कम कर लिया है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को लग रहा है कि कश्मीर का मसला दब जाएगा। ऐसा ही डर हमास को था कि सऊदी अरब से इजरायल के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं। ऐसे में गाजा का मसला पीछे छूट सकता है।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान प्रेरित आतंकियों ने खूंखार हमला किया। इस हमले में उन्होंने पर्यटकों से उनका धर्म पूछकर मार डाला। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए 26 लोग इस हमले में कत्ल कर डाले गए। अब इस हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान जंग के मुहाने पर खड़े दिख रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने कल्पना से परे वाला जवाब देने की बात कह दी है तो वहीं पाकिस्तान का कहना है कि उसका रोल नहीं है। लेकिन जिस तरह से उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बयान से द रेजिस्टेंस फोर्स का नाम हटवाने के लिए लॉबिंग की और फिर TRF ने शुरुआती कबूलनामे के बाद पल्ला झाड़ लिया, उससे कई सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा है कि पाकिस्तान एक सोची-समझी रणनीति के तहत यह हमला कराया है।
कश्मीर के नाम पर एकजुटता की कोशिश
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पाकिस्तान ने सालों की शांति के बाद यह हमला इसलिए कराया ताकि वह आंतरिक संघर्ष से उबर सके। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में लंबे समय से एक उग्र आंदोलन चल रहा है। बलूचिस्तान में तो ट्रेन तक को बंधक बनाया जा रहा है और पंजाबी मूल के लोगों की टारगेट किलिंग की जा रही है। सिंध प्रांत में सिंधु नदी पर नहरों और बांध बनाने का तीखा विरोध है। यहां तक कि हाईवेज को स्थानीय लोगों ने जाम कर रखा है। इस तरह पंजाब को छोड़कर अन्य सभी तीन राज्यों में उपद्रव की स्थिति जारी है। इस आंतरिक संघर्ष के चलते रह-रहकर पाकिस्तान के टूटने की भी चर्चाएं होती रहती हैं। ऐसे में पाकिस्तान को लगता है कि कश्मीर और इस्लाम के नाम पर देश में उबाल आएगा और एक कृत्रिम एकजुटता कुछ अरसे के लिए फिर से स्थापित की जा सकेगी।
इस्लाम के कवर में आंतरिक संघर्ष छिपाने का प्रयास
पाकिस्तान के पास एकता के लिए इस्लाम ही सबसे बड़ी वजह रहा है। बलूच, सिंधी, मोहाजिर, पख्तून अस्मिता जब भी जोर पकड़ती है या फिर भाषा एवं नस्ल के नाम पर टकराव की स्थिति होती है तो वह इस्लाम के कवर में सब कुछ ढकने का प्रयास करता है। पहलगाम अटैक से ठीक पहले आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने हिंदू और मुसलमान के नाम पर द्विराष्ट्र सिद्धांत की बात की थी। तमाम समस्याओं को ढकने वाला यह सांप्रदायिक कवर ही था, जिसकी कोशिश में इन दिनों पाकिस्तान जुटा हुआ है। पाकिस्तान को लगता है कि इस्लाम के नाम पर वह पंजाब से खैबर तक देश में एकता ला सकेगा। हालांकि पाकिस्तान में पंजाब को छोड़कर सभी प्रांतों में स्थानीय लोगों का अंसतोष जगजाहिर है।
इस वजह हो रही है इजरायल पर हमास के अटैक से तुलना
इजरायल ने पहलगाम के आतंकी हमले की तुलना 7 अक्टूबर, 2023 में अपने ऊपर हुए हमास के अटैक से की है। इजरायल की इस तुलना को आधार मानते हुए कुछ वजहें भी गिनाई जा रही हैं। दरअसल पाकिस्तान की कोशिश हमेशा रही है कि कश्मीर के मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण किया जाए। पिछले कुछ सालों में अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते बेहतर हुए हैं। नरेंद्र मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री अच्छी है। इसके अलावा चीन से भी भारत ने तनाव कम कर लिया है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को लग रहा है कि कश्मीर का मसला दब जाएगा। ऐसा ही डर हमास को था कि सऊदी अरब से इजरायल के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं। ऐसे में गाजा का मसला पीछे छूट सकता है। इसलिए उसने 23 अक्टूबर का हमला कराया और ऐसा ही कदम पाकिस्तान ने उठाया है।