What next for Justice Yashwant Varma as Cash at home disappeared before probe जांच से पहले ही जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से गायब हो गया था कैश, किसका हाथ? बढ़ने वाली है मुसीबत, India News in Hindi - Hindustan
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जांच से पहले ही जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से गायब हो गया था कैश, किसका हाथ? बढ़ने वाली है मुसीबत

जस्टिस वर्मा का मामला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। इस मामले ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े किए हैं।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीTue, 13 May 2025 08:44 AM
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जांच से पहले ही जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से गायब हो गया था कैश, किसका हाथ? बढ़ने वाली है मुसीबत

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से भारी मात्रा में कैश बरामद होने के मामले में एक नया खुलासा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक इन-हाउस जांच समिति ने पुष्टि की है कि 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के घर में आग लगने की घटना के बाद वहां से कैश बरामद किया गया था। हालांकि, जांच शुरू होने से पहले ही यह कैश रहस्यमय तरीके से 'गायब' हो गया, और इसके पीछे जस्टिस वर्मा के आवास पर कार्यरत कर्मचारियों का हाथ होने का संदेह जताया जा रहा है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, आग बुझाने के बाद जब कमरे को खोला गया, तो वहां बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी मिलने की बात सामने आई। बताया जा रहा है कि यह कमरा लॉक था और उसे तोड़कर खोला गया। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा गया है कि जब इस बारे में जस्टिस वर्मा से सवाल किया गया तो उन्होंने गलत और भ्रामक जानकारी दी। बरामद नकदी की सही राशि अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है, क्योंकि जांच से पहले ही नकदी "गायब" हो चुकी थी।

पद से हटाने की सिफारिश

सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच समिति ने इस पूरे मामले में गंभीरता को देखते हुए जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने प्रारंभिक जांच करवाई और तुरंत प्रभाव से जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया। इसके बाद उन्हें बिना किसी न्यायिक जिम्मेदारी के इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।

जांच समिति की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा है। उच्च न्यायालय के जजों के लिए निर्धारित इन-हाउस जांच प्रक्रिया के तहत, यदि कोई जज इस्तीफा नहीं देता, तो मुख्य न्यायाधीश को ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखना होता है।

हालांकि, जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने अपने जवाब में लिखा कि जिस कमरे से नकदी मिली, वह कई लोगों के लिए खुला रहता था और उनका इस नकदी से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने इसे “पूरी तरह से बेबुनियाद और हास्यास्पद” करार दिया। अब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा इस मामले में क्या कदम उठाए जाएंगे, इस पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

जस्टिस यशवंत वर्मा के लिए आगे क्या?

8 मई को सीजेआई संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया, जो इस बात का संकेत है कि जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है। SC की समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थे। उन्होंने जस्टिस वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की। सूत्रों के अनुसार, सीजेआई ने जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने या महाभियोग की प्रक्रिया का सामना करने को कहा था।

इन-हाउस प्रक्रिया के तहत, यदि कोई जज इस्तीफा देने से मना करता है और जांच में गंभीर अनियमितताएं पाई जाती हैं, तो मामला संसद में महाभियोग के लिए भेजा जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 218 के अनुसार, किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज को केवल संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद ही हटाया जा सकता है। इसके लिए "सिद्ध कदाचार" या "अक्षमता" के आधार की आवश्यकता होती है।

अब गेंद केंद्र सरकार और संसद के पाले में है। सरकार को जजेस (इन्क्वायरी) एक्ट, 1968 के तहत आगे की कार्रवाई करनी होगी, जिसमें लोकसभा या राज्यसभा के अध्यक्ष द्वारा एक जांच समिति गठित की जा सकती है। यदि संसद महाभियोग प्रस्ताव पारित करती है, तो राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश जारी करेंगे। हालांकि, भारत में महाभियोग की प्रक्रिया जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील रही है, और यह जरूरी नहीं कि यह प्रक्रिया पूरी हो।

इन-हाउस प्रक्रिया क्या है?

इन-हाउस प्रक्रिया की शुरुआत 1995 में सुप्रीम कोर्ट के सी. रविचंद्रन अय्यर बनाम जस्टिस ए.एम. भट्टाचार्जी मामले में हुई थी, जब बॉम्बे हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जजों के खिलाफ मामूली कदाचार के मामलों में महाभियोग जैसा कठोर कदम उचित नहीं है। इसके लिए 1999 में एक औपचारिक इन-हाउस प्रक्रिया तैयार की गई, जिसमें गंभीर आरोपों की जांच के लिए तीन जजों की समिति गठित की जाती है।

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इस प्रक्रिया में कुछ कदम शामिल हैं:

प्रारंभिक जांच: हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश आरोपों की प्रारंभिक जांच करता है और जज से जवाब मांगता है।

समिति का गठन: यदि मामला गंभीर पाया जाता है, तो सीजेआई दो हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और एक हाई कोर्ट जज की समिति गठित करता है।

जांच और रिपोर्ट: समिति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए जांच करती है और अपनी रिपोर्ट सीजेआई को सौंपती है।

परिणाम: समिति तीन निष्कर्ष निकाल सकती है: (i) आरोप निराधार हैं, (ii) आरोप गंभीर हैं और महाभियोग की जरूरत है, या (iii) कदाचार है, लेकिन यह महाभियोग जितना गंभीर नहीं है।

जस्टिस वर्मा के मामले में, समिति ने गंभीर निष्कर्ष निकाले हैं, जिसके बाद सीजेआई ने मामला सरकार को भेज दिया। यदि जस्टिस वर्मा इस्तीफा नहीं देते, तो संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

पिछले मामले: क्या कहता है इतिहास?

भारत में जजों के खिलाफ महाभियोग या इन-हाउस जांच के कई उदाहरण रहे हैं, जो इस प्रक्रिया की जटिलता को दर्शाते हैं।

जस्टिस वी. रामास्वामी (1993): सुप्रीम कोर्ट के पहले जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन यह लोकसभा में राजनीतिक कारणों से विफल रहा।

जस्टिस सौमित्र सेन (2011): कलकत्ता हाई कोर्ट के जज पर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे। इन-हाउस जांच के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिससे महाभियोग की प्रक्रिया रुक गई।

जस्टिस पी.डी. दिनाकरण (2011): जमीन हड़पने के आरोपों के बाद इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन कोई आपराधिक मुकदमा नहीं चला।

जस्टिस सी.एस. कर्णन (2017): कलकत्ता हाई कोर्ट के जज ने सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। उनकी गिरफ्तारी और सजा हुई, लेकिन यह मामला असाधारण था।

इन मामलों से पता चलता है कि इन-हाउस प्रक्रिया अक्सर जजों को इस्तीफा देने के लिए प्रेरित करती है, ताकि महाभियोग की लंबी और जटिल प्रक्रिया से बचा जा सके। हालांकि, जस्टिस वर्मा के मामले में उनका इस्तीफा न देना इस प्रक्रिया को और जटिल बना सकता है।