पोप फ्रांसिस ने की थी किस भारतीय संत की तारीफ, कौन थे वो और समाज में क्या योगदान?
संत नारायण गुरु भारत के महान चिंतक, दार्शनकि और समाजसुधारक थे।उन्होंने केरल में जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था।

ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरू पोप फ्रांसिस का ईस्टर के पवित्र त्योहार के अगले दिन यानी सोमवार (21 अप्रैल) की सुबह कासा सांता मार्टा स्थित उनके निवास पर निधन हो गया। इस खबर के साथ ही दुनिया भर में ईसाई जगत में शोक की लहर छा गई है। पोप फ्रांसिस 88 साल के थे और पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। हालांकि, उनकी तबियत में सुधार हो रहा था लेकिन अचानक आज उनका देहांत हो गया। सुबह पौने दस बजे अपोस्टोलिक चैंबर के कैमरलेंगो, कार्डिनल केविन फैरेल ने पोप फ्रांसिस के निधन की घोषणा की। वह मूलत: अर्जेंटीना के रहने वाले थे। पोप की पदवी हासिल करने के पहले उनका नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था।
दुनिया के सबसे बड़े ईसाई धर्मगुरु अपनी दयालु स्वभाव और मानव सेवा के लिए जाने जाते रहे हैं। उन्होंने पिछले साल के आखिर में यानी दिसंबर 2024 में एक भारतीय संत की भी जमकर तारीफ की थी। उस संत का नाम है श्री नारायण गुरु। पोप फ्रांसिस ने तब कहा था कि संत नारायण गुरु का सार्वभौमिक मानव एकता का संदेश आज बहुत प्रासंगिक है क्योंकि दुनिया में हर तरफ और हर जगह नफरत बढ़ रही है। पोप ने ये बातें तब कहीं थीं, जब केरल के एर्नाकुलम जिले के अलुवा में श्री नारायण गुरु के सर्व-धर्म सम्मेलन के शताब्दी समारोह के मौके पर धर्मगुरुओं का भारी जुटान हुआ था। पोप ने तब वेटिकन में भी जुटे धर्मगुरुओं और प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए ये बातें कही थीं।
दुनिया में अशांति की वजह धर्म की शिक्षाओं के न अपनाना
पोप ने कहा था कि आज दुनिया में हर तरफ अशांति का माहौल है, इसके पीछे एक बड़ी वजह धर्म की शिक्षाओं को न अपनाना है। तब उन्होंने श्री नारायण गुरु की तारीफ करते हुए कहा था कि संत नारायण गुरु ने अपने संदेश के माध्यम से सामाजिक और धार्मिक जागृति को बढ़ावा देने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। पोप ने कहा कि गुरु ने अपने संदेश में कहा था कि सभी मनुष्य, चाहे उनकी जातीयता, उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं कुछ भी हों, लेकिन एक ही मानव परिवार के सदस्य हैं। पोप ने तब नारायण गुरु के उस संदेश को दोहराया कि किसी भी तरह का किसी भी स्तर पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए लेकिन दुख की बात यह है कि आज हर स्तर पर हर जगह हरेक के साथ किसी न किसी तरह का भदभाव हो रहा है।
कौन थे संत श्री नारायण गुरु?
संत श्री नारायण गुरु एक भारतीय दार्शनिक, समाज सुधारक और कवि थे। उन्होंने केरल में जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने अद्वैत वेदांत दर्शन को बढ़ावा दिया और सभी के लिए समानता और शिक्षा का समर्थन किया था। श्री नारायण गुरु का जन्म 22 अगस्त, 1856 को केरल के तिरुवनंतपुरम के एक छोटे से गांव चेम्पाजंथी में मदन आसन और उनकी पत्नी कुट्टियाम्मा के घर हुआ था। उस समय के सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार,वे मूल रूप से एझावा जाति से थे जिन्हें नीची जाति का माना जाता था।
SNDP की स्थापना की थी
उन्हें एकांत पसंद था और बचपन से ही उन्होंने गंभीर चिंतन में बहुत समय बिताया था। वे स्थानीय मंदिरों में पूजा-अर्चना करते थे और भजन और भक्ति गीत लिखते थे। केरल में जातिगत भेदभाव के खिलाफ उन्होंने लड़ाई लड़ी थी और "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" का नारा दिया था। उन्होंने श्री नारायण धर्म परिपालन योगम (SNDP) की स्थापना की थी, जो सामाजिक सुधार के लिए काम करने वाला संगठन था। वे अद्वैत वेदांत के प्रस्तावक थे और सभी प्राणियों में एक ही ईश्वर को मानते थे। उन्होंने अद्वैत दीपिका, आत्मविलासम, दैव दसकम और ब्रह्मविद्या पंचकम जैसी कई महत्वपूर्ण रचनाएँ कीं थीं।